मिट्टी के स्वास्थ्य और बेहतर उत्पाद के लिए प्राकृतिक कृषि अपनाएं : डॉ पाल

कृषि झारखंड
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रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि संकाय के डीन डॉ एसके पाल ने मिट्टी के स्वास्थ्य संरक्षण-संवर्धन और अधिक पोषक तत्वों से युक्त बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद प्राप्त करने के लिए जैविक एवं प्राकृतिक खेती अपनाने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि इसमें बाहर से किसी रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल नहीं होता। केवल जीवाणु और जैविक खाद का प्रयोग होता है। डॉ पाल शनिवार को राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से बीएयू द्वारा ‘सतत विकास के लिए नवीन कृषि पद्धतियां’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। प्रशिक्षण में दुमका, गिरिडीह और पलामू जिलों के कुल 66 किसान भाग ले रहे हैं।

डॉ पाल ने कहा कि सन 1950 में देश में प्रति हेक्टेयर रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल 12.5 किलो था, जो अब बढ़कर 190 किलो प्रति हेक्टेयर हो गया है। ज्यादा रासायनिक खाद, कीटनाशक एवं खरपतवार नाशी दवाओं का इस्तेमाल होने से ना केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित हो रही है। इसी प्रकार मिट्टी में जैविक कार्बन की उपलब्धता भी पिछले 7 दशकों में 2.5 प्रतिशत से घटकर 0.4  प्रतिशत रह गई है। जबकि अच्छी खेती के लिए मिट्टी में एक से डेढ़ प्रतिशत जैविक कार्बन की उपलब्धता जरूरी है।

निदेशक अनुसंधान डॉ ए वदूद ने किसानों को पशुपालन, बागवानी, मत्स्यपालन, मधुमक्खीपालन और वानिकी आदि से युक्त समेकित कृषि पद्धति अपनाने की सलाह दी, ताकि समय पर बारिश नहीं होने या मौसम की अन्य प्रतिकूलता की स्थिति में भी उत्पादन और लाभ मिलता रहे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक किसान को एक-दो क्षेत्र में विशेष ज्ञान और कौशल हासिल करना चाहिए जिससे उस क्षेत्र में विशिष्ट पहचान बने।

वानिकी संकाय के डीन डॉ एमएस मलिक ने कहा कि पुरानी पद्धति, बीज और औजारों का प्रयोग करने से कृषि में समय, ऊर्जा और संसाधन ज्यादा खर्च होता है, इसलिए हमेशा नवीनतम तकनीक सीखने का प्रयास करते रहना चाहिए।

नाबार्ड के पदाधिकारी अभिनव कृष्ण ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्देश्यों और रूपरेखा पर प्रकाश डाला। स्वागत डॉ विनय कुमार और धन्यवाद प्रशिक्षण समन्वयक डॉ बीके झा ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ नेहा पाण्डेय ने किया।