आम जन के साथ पानी के प्रबंधन को लेकर संवाद, उभरे ये विचार

झारखंड
Spread the love

आनंद कुमार सोनी

लोहरदगा। उपायुक्त दिलीप कुमार टोप्‍पो ने कहा कि आज से 50 वर्ष पहले भूगर्भ जल को बचाने की चर्चा कहीं नहीं होती थी। पानी खरीद कर पीना तो कोई सोच भी नहीं सकता था। आज हम 10-12 रुपये में पानी की बोतल भी खरीद कर पीते हैं। पानी के बिना जीवन मुश्किल है। सृष्टिकर्ता ने हमें जीवन जीने के लिए तीन महत्वपूर्ण चीजें पानी, हवा और सूर्य की रोशनी दी है, जो अमूल्य उपहार है। यह निःशुल्क है। वह सोमवार को नगर भवन में आयोजित जन संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे। इसका आयोजन जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग, केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के सौजन्य से केंद्रीय भूमि जल बोर्ड, मध्य-पूर्व क्षेत्र पटना, राज्य एकक कार्यालय, रांची ने किया था। इसमें जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन विषय पर चर्चा की गई। कार्यक्रम का उद्घाटन उपायुक्त, उप विकास आयुक्त अखौरी शशांक सिन्हा, पेयजल एवं स्वच्छता प्रमंडल कार्यपालक अभियंता सुशील कुमार टुडू, केंद्रीय भूमि जल बोर्ड रांची के भूजल वैज्ञानिक सुशील टोप्पो, अनुकरण कुजूर और अतुल बेक ने किया।

हमारी अगली पीढ़ी को पानी नहीं मिलेगा

पहले कुआं में पूरे वर्ष भर पानी उपलब्ध रहता था। अब पानी सूख जाता है। इसकी वजह है कि हम अब पानी का संरक्षण नहीं करते हैं। सदुपयोग की जगह दुरूपयोग हो रहा है। अगर हम पानी का संरक्षण नहीं करेंगे तो हमारी अगली पीढ़ी को पानी नहीं मिलेगा। पानी का इस्तेमाल पीने, धोने, सिंचाई समेत कई अनेक कार्य में आते हैं। आज हमें आपस में बैठकर पानी की समस्या पर बात करने और इसे संरक्षित करने के उपाय पर चर्चा करने की जरूरत है।

बारिश का पानी बहकर बर्बाद हो जाता है

उपायुक्त ने कहा कि इस धरती पर 70 प्रतिशत जल है, जिसमें अधिकतर महासागरों में है। वह पानी पीने लायक नहीं है। जो पानी धरती के अंदर जलस्त्रोत के रूप में है, वह पीने के लायक है। उपर नदियां बहती हैं, लेकिन जलस्त्रोत के रूप में धरती के अंदर पीने के लायक पानी मिलता है। कुआं की खुदाई के दौरान इस जलस्त्रोत को हम देख पाते हैं। बारिश का पानी कृषि कार्यों में इस्तेमाल हो जाता है। कुआं-तालाब के पानी से हम कृषि कार्य करते हैं। पेयजल जल के रूप में बारिश का पानी हम इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। 98 प्रतिशत बारिश का पानी बर्बाद हो जाता है। पानी बरसने के बाद घर के आंगन, खेत, नदी होते हुए अंततः समुद्र में चला जाता है।

नदियों के किनारे विकसित हुई सभ्‍यता

उपायुक्‍त ने कहा कि आज से सदियों पहले सिंधु घाटी, मेसोपोटामिया, मिस्त्र, चीन की सभ्यता नदियों के किनारे ही विकसित हुई थी। लोगों ने अपना ठिकाना नदियों के किनारे बसाया। इसकी मुख्य वजह पानी का उपलब्धता थी। पानी के बिना जीवन मुश्किल है। हमें पानी का उपयोग ठीक से करना है।

केपटाउन शहर में सूख गया है भूगर्भ जल

उपायुक्त ने दक्षिण अफ्रीका के बड़े शहर केपटाउन का उदाहरण देते हुए कहा कि केपटाउन शहर दुनिया में हीरा और सोना उत्पादन में अग्रणी देशों है। अत्यधिक खनन कार्य और भूमिगत जल का दोहन होने के कारण वहां भूगर्भ जल सूख गया है। स्थिति ऐसी है कि वहां पानी खरीद कर पीना पड़ता है। इससे हमें सीख लेने की जरूरत है। सभी को पानी बचाना होगा। पानी इधर-उधर बहता है, जिसे जमीन में ही वाटर हार्वेस्टिंग के जरिये संरक्षित करना होगा।

जलस्रोतों को बंद करने से बचना होगा

उपायुक्त ने कहा कि पूर्व के वर्षों में राज्य में काफी संख्या में तालाब थे। अब इसे धीरे-धीरे पाट कर कई निर्माण कार्य किये जा रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि भूगर्भ जल नीचे चला गया। हमें जलस्रोतों को बंद करने से बचना होगा। लोहरदगा जिले में कई नदिया हैं, लेकिन यह पहाड़ी क्षेत्र है। मैदानी क्षेत्रों में काफी नदियां बहती हैं, जिसके कारण उन क्षेत्रों में भूगर्भ जल स्तर वाली समस्या कम है या नहीं है।

प्रत्येक वर्ष भूगर्भ जल नीचे जा रहा

उप विकास आयुक्त ने कहा कि प्रत्येक वर्ष भूगर्भ जल नीचे जा रहा है। आज सड़क और भवन तो बनवाते हैं, लेकिन कोई वाटर हार्वेस्टिंग की आवश्यकता पर ध्यान नहीं देता जो कि सबसे महत्वपूर्ण जरूरत है। बड़े शहरों में लोग पीने का साफ पानी खरीद कर पी रहे हैं। आज सभी को जल संरक्षण के बारे जानने की जरूरत है।

जल संरक्षण एवं स्वच्छता पर जागरूक हो

भूजल वैज्ञानिक सुशील टोप्पो ने कहा कि कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल संरक्षण एवं स्वच्छता पर जागरूक करना है। 50 साल पहले जो कुआं नहीं सूखता था, आज गर्मी पड़ने से पहले ही सूख जा रहा है। भूजल स्रोत का स्तर काफी नीचे जा रहा है, जिससे आने वाले समय में जल संकट होने की आशंका बढ़ रही है। उसे कैसे रोकना है, बारिश का पानी, घर का पानी आदि को मेढ़, ट्रेंच आदि बनाकर रोकने की विभिन्न पद्धतियों के बारे में जानकारी दी गयी।

भूमिगत जल के रिचार्ज करने की जरूरत

कार्यक्रम में पेयजल एवं स्वच्छता कार्यपालक अभियंता ने कहा कि भूमिगत जल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। इसे बचाया जाना अति आवश्यक है। अगर यही स्थिति रही तो हमें 40-50 वर्षों के बाद पीने का पानी नहीं मिलेगा। इसलिए हमें भूमिगत जल के रिचार्ज की दिशा में कार्य करने की जरूरत है।

सावरीन खातून

जानकारी को घरों में प्रयोग करना है

जल सहिया सावरीन खातून ने कहा कि कार्यक्रम में मिली जानकारी का प्रयोग सबसे पहले अपने-अपने घरों में प्रयोग करें, ताकि हम ग्रामीण यह सवाल नहीं खड़ा करें कि क्या आप अपने घर में सोखता गड्ढा का निर्माण किए हैं। घर का पानी घर में, खेत का पानी खेत में जमा होने से हम जल संरक्षण कर सकते हैं। घर का पानी घर में ही जमा होने से हमारे कुआं का जलस्‍तर बढ़ेगा।

कार्यक्रम में ये भी थे मौजूद

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में जलसहिया युवंती गोस्वामी, संगीता देवी, अनिता देवी, खदीजा खातून, पूनम, साबरीन खातून, पूजा, किरण अबिता टोप्पो, नीता लकड़ा, सुबानी उरांव, तारामणि देवी, सीमा देवी सहित अन्य उपस्थित थे।