मिलें बिहार के ‘ लोंगिया मांझी’ से, जिन्होंने 30 साल तक कुदाल चलाकर खोद डाली नहर

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गया। फौलाद हौसलों के विधाता बने लौंगी भुईयां उर्फ लोंगिया मांझी ने बिहार में मिसाल कायम कर दी है। बिहार के जिस इलाके में आजादी के 70 वर्ष से भी ऊपर बीत जाने के बाद बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंची है।

वहां के लोगों के जीवन में लौंगी मांझी खुशहाली का पर्याय बन कर अवतरित हुए हैं। बिहार के गया जिले के सुदूरवर्ती पहाड़ी और जंगली इलाकों में 70 वर्षीय लौंगी भुईंया ने न सिर्फ जीने की राह आसान की है बल्कि लोगों का हौसला भी बढ़ाया है। गया जिले के बांके बाजार के कोठिलवा गांव के रहने वाले लौंगी मांझी ने 30 वर्षों तक लगातार कुदाल और फ़व्वाड़े चलाकर नहर खोद डाली।

पहाड़ियों से निकलने वाली जलस्रोत को खेत और खलिहानों की ओर मोड़ने के लिए उन्होंने पहाड़ काटकर पांच किलोमीटर लंबी नहर खोद डाली। मांझी की बदौलत, बरसात का पानी जो जंगल में बरबाद हो रहा था, अब नहर से होकर खेतों में पहुंचने लगा है। जुनून के पक्के और लक्ष्य के धुनी 70 वर्षीय लौंगी मांझी ने जब नहर खोदने का संकल्प ठाना था, तब लोग इन्हें पागल समझते थे लेकिन आज उनकी कोशिशों ने इलाके से होनेवाले पलायन को रोक दिया है। यही नहीं नक्सल प्रभावित क्षेत्र इमामगंज के दुर्गम जंगली पहाड़ों में नक्सलवाद का राह पकड़े भटके युवाओं को मुख्यधारा में जोड़ने की अहम भूमिका भी अदा कर रहे हैं।

आज इस इलाके में बारिश के पानी से नहर लबालब है और किसान खेती कार्य में जुटे हुए हैं। बिहार के गया जिले के ही निवासी दशरथ मांझी भी ऐसे ही हौसलों के बुलंद और इरादों के पक्के थे, जिन्होंने 22 वर्षों तक पहाड़ों का सीना चीर कर आम जनमानस के लिए दुर्गम रास्तों को सुगम और सहज रास्तों में तब्दील कर दिया था।