समाज के कड़वे सच से पर्दा उठाती है अनुपम खेर की ‘सांचा’

मनोरंजन
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अनिल बेदाग

मुंबई। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के आने की वजह से बहुत सारी फिल्में सिनेमाघर तक नहीं पहुंच पाई। इन फिल्‍मों को ओटीटी पर रिलीज किया गया है। अनुपम खेर, रघुवीर यादव, मुकेश तिवारी, विजय राज, सुधा चंद्रन जैसे कलाकारों से सजी फिल्म ‘सांचा’ एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई है, जिसे दर्शकों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है।

फिल्म आज के प्रगतिशील और सभ्य समाज में इंसान की भावनाओं के कड़वे सत्य को पेश करने का प्रयास है। सांचा सिर्फ एक इंसान की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक विचार है, जो हर उस इंसान से संबंधित है जो संकट से गुजरता है। हर माता-पिता ईश्वर से प्रार्थना करते है कि उन्हें एक बुद्धिमान और सेहतमंद बच्चा हो। यदि यह लड़की हो तो खूबसूरत हो। हालांकि क्या आप सोच सकते हैं कि भगवान की यह बहुत उदारता कुछ माता-पिता के लिए एक अभिशाप बन जाती है। 

सांचा की एक गरीब महिला चंदा की कहानी है। वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ईंट भट्ठा में काम करती है। जैसे हर मां अपने बच्चे की हिफाजत करती है, उसी तरह चंदा भी इस दुनिया की वासनापूर्ण निगाहों से बेटी को बचाती है। इसके लिए अपनी बेटी की चमकती त्वचा पर हर दिन भट्ठी की राख लगा देती है, ताकि उसकी बेटी चकोरी गोरी या खूबसूरत नजर नहीं आए। इस तरह वह दुनिया की हवस से बच जाए। चंदा अपने आत्मसम्मान के लिए सबसे मजबूत मां के रूप में खड़ी दिखाई देती है। दुर्भाग्यवश अपने पति की बीमारी के कारण वह ईंट भट्टी के ठेकेदार शंभू (मुकेश तिवारी) से पैसा उधार लेती है। अनजाने में उन मजबूर महिलाओं के बीच खुद को ले आती है, जो जब भी चाहें उसके कर्ज के बदले में शारीरिक दुरुपयोग से गुजरती हैं।

कहानी में मोड़ तब आता है, जब एक दिन शंभू की आंखें चंदा की बेटी चकोरी के आकर्षण को देखने के लिए चमकती हैं। जिसकी सुंदरता वर्षों से राख की परतों के नीचे छिपी हुई थी। इस भयानक स्थिति से निकलने और शम्भू के दुष्ट इरादे को महसूस करते हुए चंदा ने अपनी बेटी के सम्मान की रक्षा करने के लिए एक समाधान पाया। विजय राज चंदा को समझाता है कि चकोरी की शादी जल्दी से कर दो, उसके जानने वालों में एक लड़का है। जब विजय राज से चकोरी के पिता रघुबीर यादव लड़के की उम्र पूछते हैं तो वह बताता है कि 50- 55 वर्ष की उम्र होगी। इस पर चकोरी के मां बाप नाराज हो जाते हैं, मगर उस शंभू के गंदे इरादे से बचाने के लिए एक अधेड़ व्यक्ति रामखिलावन (अनुपम खेर) से अपनी बेटी की शादी करा देते हैं।

चकोरी का पति रामखिलावन अपने वैवाहिक जाल में एक कुंवारी लडकी को फंसाने के लिए बहुत खुश लगता है। लेकिन उसे एहसास होता है कि चकोरी उसे अपना पति नहीं, बल्कि पिता जैसा मानती है तो वह अधेड़ आदमी एक अहम निर्णय लेता है। उसे यह एहसास हो जाता है कि उसने अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ शादी करके बड़ी गलती की है। इसलिए वह अपनी साइकिल की दुकान पर काम करने वाले एक युवा लड़के से चकोरी की शादी करा देता है। वह जाते-जाते कहता है यह घर, ये दुकान और चकोरी अब तेरी जिम्मेदारी है। 

इस फिल्म के जरिये यह मैसेज देने का प्रयास किया गया है कि किसी की गरीबी या मजबूरी का फायदा उठाकर बेटी की उम्र की लड़की से शादी करना कितना गलत है। फिल्म एमएक्स प्लेयर पर देखी जा सकती है। सामाजिक मुद्दे और समाज के कड़वे सच पर आधारित यह एक आंख खोलने वाला सिनेमा है।