जमशेदपुर। विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर सोमवार को टाटा स्टील फाउंडेशन ने जनजातीय लोगों की ताकत, लचीलापन, गरिमा और गौरव का सम्मान करने के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया।
सामाजिक कार्यकर्ता व बायो-केमिकल इंजीनियर मुकेश बिरुआ और रांची जिला बार एसोसिएशन के सदस्य व कवि रश्मि कात्यायन ने पैनलिस्ट के रूप में वेबिनार में हिस्सा लिया। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि आने वाले समय में किस प्रकार जनजातीय लोगों के पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं के संरक्षण व प्रोत्साहन का इष्टतम लाभ उठाया जा सकता है।
बिरुआ ने कहा, ‘ग्रामीण इलाकों में आदिवासी समुदाय हमेशा सामूहिक रूप से आगे बढ़े हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई पिछड़ न जाए, लेकिन बड़े निकायों के लिए यह महसूस करने का समय आ गया है कि वे अब अपने स्तर पर नीतियां बनाएं और पहल करें।‘
इस अवसर पर फिल्म प्रतियोगिता ‘समुदाय के साथ’ का भी शुभारंभ किया गया। भारत में आदिवासी समुदायों के इर्द-गिर्द बुने विकास पर एक वैकल्पिक परिप्रेक्ष्य को बढ़ावा देने के लिए सिनेमा की शक्ति को समझने, इसका इस्तेमाल व प्रसार करने के जोशिले इरादे के साथ आदिवासी सम्मेलन ‘संवाद’ के तहत वर्ष 2015 में एक नयी पहल ‘समुदाय के साथ’ की शुरुआत की गई थी।
आदिवासी मुद्दों को फिल्माने के उत्साही जनजातीय फिल्म निर्माताओं या फिल्म के छात्र-छात्राओं के विचारों, उनके आइडिया, उनका परिप्रेक्ष्य समझने के लिए 2016 में फिल्म प्रतियोगिता की स्थापना की गई थी। ‘समुदाय के साथ’ पहल ने हमारे डेटाबेस में 80 से अधिक फिल्मों को अधिकृत करने और 28,000 से अधिक व्यक्तियों तक पहुंचने में मदद की है।
चीफ, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी सौरव रॉय कहते हैं, ‘उन मामलों पर निष्कर्ष तक पहुंचने में समय लगता है, जिन पर चिंतन की आवश्यकता होती है, लेकिन फिर भी दृढ़ प्रयास जारी रहने चाहिए। और, सिनेमा में लोगों से ऐसी भाषा में बात करने की क्षमता होती है, जिसमें लोग सहज हों और यह इस तरह की बातचीत जारी रखने का एक मजबूत माध्यम है।‘
इस अवसर पर टाटा स्टील द्वारा तैयार किया गया अखिल भारतीय आदिवासी संगीत समूह ‘रिदम ऑफ द अर्थ (आरओटीई)’ की एक नवीनतम रचना का भी विमोचन किया गया। 12 कलाकारों का यह गीत इस दिवस के थीम पर आधारित है।
गौरतलब है कि ‘संवाद’ के मंच पर रिदम ऑफ द अर्थ (आरओटीई) का जन्म हुआ था, जो छह राज्यों से 16 से अधिक जनजातियों के 90 से अधिक संगीतकारों एक समूह है। फरवरी 2018 में, आरओटीआई ने नेशनल सेंटर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स, मुंबई में प्रस्तुति दी थी और इसी वर्ष नवंबर में श्री बिक्रम घोष और श्री पूर्बयन चटर्जी के साथ संगीतमय जुगलबंदी की थी। नवंबर 2019 में आरओटीआई के पारंपरिक संगीत ने ‘स्वरथमा’ के समकालीन बीट्स के साथ मिल कर एक संगीतमय सिम्फनी को जीवंत किया था।
वेबिनार में विभिन्न वर्गों के दर्शक शामिल हुए और पैनलिस्टों के साथ बातचीत की। हमारे समूचे परिचालन स्थानों में आदिवासी समुदायों के साथ परस्पर तालमेल और उनके साझा संदर्भ से दुनिया को परिचित कराने की हमारी यात्रा में हम उनकी संस्कृति और प्रथाओं के साथ निकटता से जुड़ने के मामले में भाग्यशाली रहे हैं, जो उन्हें इतना अनूठा और उदात्त बनाते हैं। सत्र का संचालन झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में कार्यरत गुंजाल इकिर मुंडा ने किया।