- गिरिडीह के जमुआ प्रखंड के पोबी में 1830 से शुरू हुई परंपरा अब भी बरकरार
गिरिडीह। दास्तान-ए-कर्बला सुनकर आंखें मेरी भर आई, मैं तो हिंदू ही रहा मेरी आंखें हुसैनी हो गई। इन पंक्तियों को जमुआ का एक ब्राह्मण परिवार पूरे अकीदत और एहतराम के साथ चरितार्थ कर रहा है। जी हां, कर्बला के मैदान में नेकी के लिए शहीद होने वाले हजरत इमाम हुसैन अली मकान एक ऐसी मंजर छोड़ गए हैं, जिसके कायल हिन्दू भी हैं। इमाम हुसैन की शहादत बाद में मुहर्रम के मौके पर की जाने वाली ताजियादारी में हिंदू ना सिर्फ शिरकत करते हैं, बल्कि खुद भी ताजिया उठाकर इमाम हुसैन और कर्बला को याद करते हैं।
जिले के जमुआ प्रखंड के पोबी निवासी जनार्दन पांडेय 35 सालों से मुहर्रम के मौके पर ताजिया उठाते आ रहे हैं। इस कार्य में उनका पूरा परिवार शरीक होता है। इतना ही नहीं आज पड़ोस के अन्य हिंदू परिवार भी इमाम हुसैन की इबादत में शिरकत करते हैं। ताजियादारी की पूरी कार्रवाई तय नियमों के अनुसार ही की जाती है।
इस बाबत जनार्दन पांडेय ने बताया कि 1830 से ही यहां मुहर्रम मनाया जा रहा है। पोबी के तत्कालीन जमींदार महाराजा सहाय, दुर्गा सहाय और विष्णु सहाय ने इस गांव में मुहर्रम मनाने की परंपरा शुरू की थी। जमींदार भाइयों के निधन के बाद उनके मुंशी रज्जक अली यहां ताजिया उठाने लगे। रज्जक अली की मौत के बाद यात्री यहां ताजिया नहीं उठने लगा। पांडेय ने बताया कि वर्ष 1980 में उन्हें ऐसा लगा कि कोई उन्हें गांव में ताजिया उठाने के लिए प्रेरित कर रहा है। तब से वे लगातार मुहर्रम के मौके पर तजिया उठा रहे हैं।
घर के बगल में ही दरगाह बना हुआ है। जहां ताजियादारी की पूरी रस्म अदा की जाती है। स्थानीय ग्रामीण मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर विधिवत रूप से दुआ सलाम करते हैं। इस कार्य में रैयोडीह के मुजाविर सुभान मियां की देखरेख में ताजियादारी की सभी रस्में निभाई जाती है। पांडेय के मुताबिक पूर्व में यहां बड़े ताजिये का निर्माण किया जाता था, लेकिन विद्युत तार के कारण अब आलम झंडा उठाया जाता है। ताजिये को दफन के लिए रैयोडीह स्थित कर्बला ले जाया जाता है, जहां सभी इस आलम को सलामी देकर इस बेजोड़ तहजीब को इबादत करते हैं।
कौमी एकता के प्रतीक युवा समाजसेवी योगेश कुमार पांडेय ने कहा कि सर्वधर्म सद्भाव में ही शांति, समृद्धि, मानवता विश्व कल्याण निहित है। जाति, धर्म, मजहब के नाम पर घृणित राजनीति करने वाले से सावधान, सतर्क रहने की जरूरत है।