विंध्यधाम की खूबसूरती में लगेंगे चार चांद, योजना तैयार

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  • 140 करोड़ रुपये की लागत से होगा मां विंध्यवासिनी देवी कॉरीडोर का विकास

लखनऊ। पतित पावनी गंगा के किनारे विंध्य की पहाड़ियों की गोद में स्थित विंध्यधाम अपनी भौगोलिक स्थित के कारण खुद ही प्राकृतिक रूप से खूबसूरत है। अब योगी सरकार विंध्यधाम कॉरीडोर के तहत होने वाले विकास कार्यों से इसकी खूबसरती में चार चांद लगाने जा रही है। इसके लिए पर्यटन विभाग ने 140 करोड़ रुपये की कार्ययोजना तैयार की है। एक अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह इनका शिलान्यास करेंगे। साथ ही पूरी हो चुकी कुछ परियोजनाओं का लोकार्पण भी।

योजना के तहत होंगे ये कार्य

मां विंध्यवासिनी देवी कॉरीडोर के विकास के लिए बनाई गई है। कार्ययोजना के मुताबिक मंदिर परकोटा का निर्माण, परिक्रमा पथ का निर्माण, सड़क एवं मुख्य द्वार का सुदृढ़ीकरण एवं सुंदरीकरण, मंदिर की गलियों के फसाड ट्रीटमेंट का निर्माण कार्य, मां विंध्यवासिनी मंदिर को जाने वाले मार्गों को जोड़ने वाले पहुंच मार्गों का सुदृढ़ीकरण एवं निर्माण होगा। विंध्याचल मेला परिक्षेत्र में पार्किंग, शॉपिंग सेंटर व अन्य यात्री सुविधाओं का निर्माण होना है। मुख्यमंत्री की मौजूदगी में केंद्रीय गृहमंत्री इन कार्यों का शिलान्यास करने के साथ ही रोप-वे परियोजना का लोकार्पण करेंगे।

श्रद्धालुओं के लिए बना रोप-वे

विंध्य क्षेत्र में मां अष्टभुजा एवं मां कालीखोह मंदिर पर्वत श्रृंखला पर स्थित होने के कारण श्रद्धालुओं को दर्शन में कठिनाई होती थी। इसे देखते हुए यूपी सरकार ने 13.14 करोड़ रुपये की लागत से रोप-वे का निर्माण कराया है। मां अष्टभुजा मंदिर स्थित 296 मीटर लंबा रोप-वे 47 मीटर की ऊंचाई पर ले जाता है। मां कालीखोह मंदिर स्थित रोप-वे 37 मीटर की ऊंचाई तक ले जाता है। इसकी लंबाई 167 मीटर है । रोप-वे से श्रद्धालुओं को काफी सुविधा होगी।

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बढे़ंगें रोजगार के अवसर

स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया कराने के मामले में पर्यटन सर्वाधिक संभावनाओं वाला क्षेत्र है। विंध्यधाम में पर्यटकों/श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के मद्देनजर होने वाले कार्यों से भी स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके बढ़ेंगे। होने वाले निर्माण कार्यों में स्थानीय श्रमिकों को अल्पकालिक रोजगार मिलेगा। सुंदरीकरण के बाद सुविधा और सुरक्षा का बेहतर माहौल मिलने से श्रद्धालुओं/पर्यटकों की संख्या और उनके रहने का समय बढ़ने से स्थायी स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

हिंदुओं की आस्था का केंद्र

विंध्य क्षेत्र ऐतिहासिक, आध्यात्मिक एवं प्राकृतिक धरोहरों से समृद्ध अनूठा क्षेत्र है। यहां एक ओर विंध्य पर्वत श्रृंखला है। दूसरी ओर ऐतिहासिक किलों-भवनों, गुफाओं, भित्तिचित्रों, शैलाश्रयों, अति प्राचीन जीवाश्मों, मनोरम वन्यजीवन व कल-कल करते झरने प्राकृतिक रूप से इसे बेहद सुंदर बनाते हैं। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक आदिशक्ति माँ विंध्यवासिनी देश और दुनिया के हिंदुओं की आस्था का केंद्र है।

मंदिर को लेकर ये मान्‍यता

मान्यता है कि इस शक्तिपीठ का अस्तित्व सृष्टि का आरंभ होने के पूर्व से है। प्रलय के बाद भी रहेगा। यहां जगतजननी देवी के तीन रूपों के दर्शन का सौभाग्य भक्तों को प्राप्त होता है। त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती का रूप धारण करती हैं। विंध्याचल ही दुनिया में एक मात्र ऐसा स्थान है, जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं।

पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व

पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है। नवरात्र में यहां देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं। विंध्य क्षेत्र कजली के लिए भी प्रसिद्ध है। इसे माँ कजला देवी के साथ जोड़ कर देखा जाता है।  कजला देवी माँ विंध्यवासिनी देवी का ही दूसरा नाम है। मां विंध्यवासिनी देवी के मंदिर में झरोखों से दर्शन कर कजली टीका लगाने की परंपरा आज भी है।