भगवान बिरसा के गांव उलीहातू में बांस की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देगा बीएयू

कृषि झारखंड
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  • आदिवासी किसानों को बांस की खेती, प्रबंधन एवं मूल्यवर्द्धन पर दिया गया प्रशिक्षण

रांची। बिरसा कृषि विश्‍वविद्यालय भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू गांव में बांस की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देगा। इसके मद्देनजर विश्वविद्यालय अधीन कार्यरत वानिकी संकाय के वनवर्द्धन एवं कृषि वानिकी विभाग ने किसानों को बांस की खेती, प्रबंधन एवं मूल्यवर्द्धन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण दिया। आईसीएआर के जनजातीय उपपरियोजना के अधीन कृषि वानिकी एवं वृक्षारोपण कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश के जनजातीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के उद्देश्य से चलाया जा रहा है। आदिवासी बहुल उलीहातू गांव में विवि अनेकों शोध एवं प्रसार के कार्यक्रम चला रहा है।

कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह के निर्देश पर डीन वानिकी डॉ एमएस मल्लिक के नेतृत्व में बीएयू वैज्ञानिकों का दल उलीहातू पहुंचा। प्रशिक्षण पूर्व गांव के 20 आदिवासी किसानों को धान की उन्नत किस्म आईआर-64 (डीआरटी-1) और 50 आदिवासी किसानों को अरहर की उन्नत किस्म बिरसा अरहर-1 के प्रमाणित बीज का वितरण किया गया।

डीन वानिकी ने कहा कि प्रदेश का ग्रामीण आदिवासी समाज परंपरागत तरीके से बांस की खेती एवं व्यवसाय से जुड़ा है। विवि द्वारा बांस की परंपरागत खेती के स्थान पर वैज्ञानिक तरीके से व्यावसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। किसानों ने बेहतर किस्मों के बांस की खेती बंजर एवं गैर उपजाऊ भूमि में करना शुरू कर दिया है। यह किसानों के आय में बढ़ोतरी मददगार साबित हो रही है। इससे गांवों में रोजगार को भी बढ़ावा मिला है।

डीन ने कहा कि प्रदेश का आदिवासी समाज बांस की शिल्प कला में निपुण है। उलीहातू में वैज्ञानिक प्रबंधन से बांस की खेती काफी संभावना है। इससे ग्रामीण कुटीर उद्योग स्थापित करने को बढ़ावा मिलेगा। बरसात में बांस की खेती से किसान अच्छा लाभ कमाया जा सकता है।

डॉ बसंत उरांव ने झारखंड में पाए जाने वाली बांस की प्रजाति एवं उन्नत प्रजाति के बांस की उपयोगिता एवं वैज्ञानिक प्रबंधन एवं मूल्यवर्द्धन के तकनीकों के बारे में बताया। कहा कि अन्य पेड़ों के मुकाबले बांस के पेड़ 30 फीसदी अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है। इसमें मिट्टी की उपजाऊ वाली ऊपरी परत का संरक्षण और बंजर भूमि को सुधारने की क्षमता हैं। इसकी पत्तियां भूमि पर चादर की तरह फैली रहती है, जो भूमि में नमी का संरक्षण करता है। बांस का पेड़ मि‍ट्टी का संरक्षण और वायु एवं जल के शुद्धिकरण में सहायक है।

डॉ ज्योतिष केरकेट्टा ने बांस की व्यावसायिक खेती के विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी। कहा कि बांस के पौधें में अनेकों औषधीय गुण मौजूद होते है। वैज्ञानिकों के अनुसार बांस के शूट कैंसर रोकने में भी काफी प्रभावी होते हैं। बांस आधारित उद्योग से ग्रामीण आजीविका की सुरक्षा की जा सकती है। स्थानीय कलाकार एवं समाजसेवी सुखराम पहान एवं ओरमांझी से ट्रेनर जीतन देवी ने भी अपने विचारों को रखे।

पशु चिकित्सा शिविर का आयोजन

मौके पर पशु चिकित्सा शिविर का भी आयोजन किया गया। पशु चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ बधनु उरांव ने कहा कि उलीहातू गांव में पशुपालन आजीविका का दूसरा सबसे बड़ा साधन है। उन्होंने गांव के लोगों को बरसाती मौसम में विभिन्न पालतू पशुओं में पाये जाने वाले रोग एवं बीमारी के लक्षण, देखरेख, वैज्ञानिक प्रबंधन एवं बीमारी से बचाव के बारे में बताया।

मौके पर बिरसा मुंडा के परपोते सुखराम मुंडा ने बीएयू द्वारा उनकी मांग पर धान एवं अरहर के उन्नत किस्म के वितरण के प्रति आभार जताया। प्रशिक्षण में उलीहातू गांव में करीब 70 स्थानीय आदिवासी लोगों ने भाग लिया।