रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय आदिवासी किसानों के बीच तिल की खेती को बढ़ावा देगा। इसे लेकर बुधवार को विश्वविद्यालय ने किसानों के बीच तिल की उन्नत किस्म के बीज का वितरण किया। विवि के मुख्य वैज्ञानिक (तेलहन) डॉ सोहन राम ने खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड की सुंदरी पंचायत अधीन रेडूम एवं मनाहातू गांव के 20 आदिवासी किसानों को उन्नत बीज मुहैया कराया। साथ ही वैज्ञानिक तकनीक से तिल की खेती की अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण की जानकारी दी। मौके पर देवेन्द्र सिंह, सुशील भेंगरा, अजित भेंगरा, आसेसन भेंगरा आदि मौजूद थे।
रेडूम गांव के किसान देवलाल झिंगरा ने बताया कि वे वर्षो से तिल की खेती करते हैं। इसके तेल कई घरेलू उपयोग करते है। व्यापारी एवं वैद्य लोगों के बीच इसकी बेहद मांग है। मनाहातू गांव के किसान जयमसी कोंगारी कहते है कि 5 वर्षो से इसकी खेती से जुड़े हैं। उन्नत बीज से अधिक उपज एवं बढ़िया लाभ मिल जाता है। इसकी उपज स्थानीय स्तर पर ही आसानी से बिक जाती है।
डॉ राम ने बताया कि प्रदेश के लिए तिल की कांके सफेद, कृष्णा और शेखर किस्मों को अनुसंशित किया गया है। इसकी बुआई वर्षा आरंभ होने पर मध्य जून से मध्य जुलाई तक की जाती है। बुआई में कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधा से पौधा की दूरी 10 सेमी रखनी चाहिए। बुआई में प्रति हेक्टेयर करीब 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है। इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर 52 किलो यूरिया, 88 किलो डीएपी, 35 किलो एमओपी और 20 किलो सल्फर की दर से उर्वरक का व्यवहार करनी चाहिए। एक हेक्टेयर में खेती से 7 क्विंटल तक उपज मिलती है।
झारखंडराज्य में तेलहनी फसल की खेती की संभावना पर बीएयू के मुख्य वैज्ञानिक (तेलहन) डॉ सोहन राम ने बताया कि प्रदेश की जलवायु और भूमि तेलहनी फसल की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। प्रदेश में इसकी उत्पादकता बढ़ाने की काफी संभावनाएं भी मौजूद है। पूरे देश में झारखंड का सरगुजा उत्पादन में चौथा और तिल उत्पादन में छठा स्थान है। राज्य के 4 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सरगुजा और 13 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में तिल की खेती की जाती है। देश में सरगुजा एवं तिल का उत्पादन काफी कम है।
डॉ राम ने बताया कि देश और विदेशों में इसकी काफी ज्यादा मांग है। विदेशों में सफेद तिल की बहुत ज्यादा मांग है। इसे भारत द्वारा अधिकाधिक निर्यात किया जाता है। इस फसल के गुणकारी तेल को जनजातीय लोग काफी पसंद करते है। इसकी खेती को अन्य फसल के स्थान पर बढ़ावा दिया जा सकता। विवि द्वारा विकसित तिल की किस्म सफेद तिल के बीज की राष्ट्रीय स्तर पर काफी मांग है। भारत सरकार से हर वर्ष इसके बीज का काफी अधिक इंडेंट (मांग पत्र) प्राप्त होता है।