झीलों की जलकुंभी अब नहीं बनेगी समस्या, जानें वजह

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  • छह लड़कियों ने बनाया बायोडिग्रेडेबल मैट

असम। अब झीलों की जलकुंभी समस्‍या नहीं रहेगी। उसे संपदा के रूप में बदला जा सकेगा। असम के मछुआरे समुदाय की छह युवा लड़कियों ने बायोडिग्रेडेबल और कंपोस्टेबल मैट (चटाई) विकसित किया है। यह जलीय पौधे को समस्या से संपदा में बदल सकती है। ये लड़कियां मछुआरे समुदाय की हैं। यह गुवाहाटी शहर के दक्षिण पश्चिम में एक स्थायी मीठे पानी की झील दीपोर बील के बाहरी हिस्से में रहती हैं। यह रामसार स्थल (अंतर्राष्ट्रीय महत्व की एक दलदली भूमि) और एक पक्षी वन्यजीव अभ्यारण्य के नाम से विख्यात है।

यह झील मछुआरे समुदाय के 9 गांवों के लिए आजीविका का एक स्रोत बनी हुई है, जिन्होंने सदियों से इस बायोम को साझा किया है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से वे जलकुंभियों की अत्यधिक बढोतरी और जमाव से पीड़ित हैं। इन लड़कियों का परिवार प्रत्यक्ष रूप से अपने जीवित रहने के लिए इस दलदली जमीन पर निर्भर है। उनका यह नवोन्मेषण पर्यावरण संरक्षण और डीपोर बील की निरंतरता की दिशा में उल्लेखनीय योगदान दे सकता है। स्थानीय आजीविका भी सुनिश्चित कर सकता है। इस मैट को ‘मूरहेन योगा मैट‘ के नाम से जाना जाता है। इसे जल्द ही एक अनूठे उत्पाद के रूप में विश्व बाजार के सामने प्रस्तुत किया जाएगा।

इस कदम की शुरुआत भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्तशासी निकाय उत्तर पूर्व प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं पहुंच केंद्र (एनईसीटीएआर) की एक पहल के जरिये हुई। इससे कि जलकुंभी से संपदा बनाने के लिए छह लड़कियों के नेतृत्व में एक सामूहिक ‘सिमांग’ अर्थात स्वप्न से जुड़े समस्त महिला समुदाय को इसमें शामिल किया जा सके।

जलकुंभी के गुणों और एक चटाई के प्रकार के उत्पाद की कार्यशील आवश्यकताओं के सभी पहलुओं पर विचार करते हुए योग करने में उपयोग की जाने वाली हाथ से बुनी गई 100 प्रतिशत बायोडिग्रेडेबल एवं 100 प्रतिशत कंपोस्टेबल चटाई पर विविध इकोलोजिकल तथा सामाजिक लाभ उपलब्ध कराने वाले एक माध्यम के रूप में विचार किया गया। फाइबर प्रोसेसिंग तथा प्रौद्योगिकीय उपायों के जरिये यह मैट जलकुंभी को हटाने के जरिये दलदली भूमि की जलीय इकोसिस्टम में सुधार ला सकती है। सामुदायिक भागीदारी के जरिये उपयोगी उत्पादों के टिकाऊ उत्पादन में सहायता कर सकती है और पूर्ण रूप से ‘आत्मनिर्भर’बनने के लिए स्वदेशी समुदायों के लिए आजीविका पैदा कर सकती है।

बुनाई के लिए इसे उपयोग में लाने से पहले जलकुंभी का संग्रह, सूखाना और तैयार करना सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। ‘सोलर ड्रायर‘ के उपयोग जैसे प्रौद्योगिकी के छोटे उपाय किए गए, जिससे सूखाने में लगने वाला समय घटकर लगभग तीन दिनों तक आ गया। यह देश के इस क्षेत्र में लगभग छह महीने लंबे चलने वाले वर्षा मौसम (मई से अक्तूबर) में अक्सर होने वाली भारी वर्षा के कारण समय के होने वाले नुकसान की भी क्षतिपूर्ति कर सकता है।

महिलाओं ने उच्च गुणवत्तापूर्ण, आरामदायक और पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल और कंपोस्टेबल योग मैट विकसित करने के लिए तकनीक, सामग्री और टूल्स के विभिन्न संयोजनों की सहायता से पारंपरिक करघे का उपयोग करने के जरिये जलकुंभी की बुनाई की। इसका परिणाम दूरदराज के तीन गांवों (कियोत्पारा, नोतुन बस्ती और बोरबोरी) की 38 महिलाओं की भागीदारी के रूप में सामने आया है। प्रौद्योगिकी के उपयोग से उत्पादन दर में बढ़ोतरी भी की जा सकती है।

सिमांग कलेक्टिव्स की एक सहायक संस्था  ‘7 वीव्स’ टीम ने कामरूप जिले के लोहरघाट फॉरेस्ट रेंज के स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक सामग्रियों से प्राकृतिक डाइंग पर विशेषज्ञता उपलब्ध कराई। इससे एनईसीटीएआर मैट के लिए विभिन्न पैटर्नों में लाख, प्याज के छिलकों, लोहा तथा जैगरी से प्राकृतिक रूप से डाई किया हुआ कॉटन यार्न शामिल करने में सक्षम हो सका। मैट की बुनी हुई संरचना के अनुकूलन के लिए करघे के विभिन्न इक्विपमेंट में परिवर्तन किया गया।

काम सोरई (दीपोर बील वन्य जीवन अभ्यारण्य का एक निवासी पक्षी पर्पल मूरहेन) के नाम पर इसका नाम ‘मूरहेन योगा मैट रखा गया है, जो एक कॉटन कैनवास के कपड़े के थैले में रखी जाती है। इसमें किसी जिप या मेटल क्लोजर का उपयोग नहीं किया जाता। इसमें एडजस्ट करने वाला स्ट्रैप तथा क्लोजर्स हैं, जिन्हें प्रभावी रूप से बायोडिग्रेडेबिलिटी के अनुरूप बनाया गया है।