नई दिल्ली। देश में ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) जिओलाइट से ऑक्सीजन पैदा करने की तैयारी कर रहा है। इस खनिज का इस्तेमाल ऑक्सीजन का उत्पादन करने वाले संयंत्र में होता है। कोरोना वायरस की दूसरी खौफनाक लहर के दौरान डीआरडीओ ने कई अस्पतालों में ’तेजस’ ऑक्सीजन प्लांट्स लगाये हैं। अब इसके बाद डीआरडीओ ने एयर इंडिया को दुनिया के कई देशों से जिओलाइट लाने का ऑर्डर दिया है। एयर इंडिया के दो विमान शनिवार को रोम से 35 टन जिओलाइट के साथ उड़ान भर चुके हैं और रविवार तड़के बेंगलुरु के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरेंगे।
इस समय देश ऑक्सीजन की कमी का सामना कर रहा है। कोविड संक्रमण के मामले बढ़ने के कारण कई राज्यों में जरूरत के मुताबिक चिकित्सकीय ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो पा रही है। कोविड-19 महामारी के बीच देश में ऑक्सीजन की आपूर्ति की मांग को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने दुनिया के विभिन्न देशों से ‘जियोलाइट’ आयात करने का फैसला लिया है। प्रेशर स्विंग अब्सॉर्प्शन (पीएसए) ऑक्सीजन संयंत्रों में जिओलाइट का इस्तेमाल होता है। भारत सरकार देश में ऑक्सीजन की आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों से जिओलाइट आयात करने की प्रक्रिया में है। डीआरडीओ को इसके लिए चार्टरर के रूप में नियुक्त किया गया है। एयर इंडिया दुनिया के विभिन्न हिस्सों से डीआरडीओ के लिए जिओलाइट लाएगी। इसके बाद डीआरडीओ ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों से जिओलाइट मंगाने के लिए एयर इंडिया को ऑर्डर दिया है।
एक विशेषज्ञ के अनुसार इस खनिज का इस्तेमाल ऑक्सीजन का उत्पादन करने वाले संयंत्र में होता है। जिओलाइट बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन उत्पादन प्रक्रिया का प्रमुख घटक है। जिओलाइट आधारित ऑक्सीजन कन्सेंट्रेटर प्रणालियों का उपयोग चिकित्सा ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए किया जाता है। जिओलाइट का उपयोग आणविक चलनी के रूप में हवा से शुद्ध ऑक्सीजन बनाने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में नाइट्रोजन का सोखना शामिल होता है, जिससे अत्यधिक शुद्ध ऑक्सीजन और 5 प्रतिशत तक आर्गन निकलता है।
एयर इंडिया के दो विमान शनिवार को रोम से 35 टन जिओलाइट के साथ उड़ान भर चुके हैं और रविवार तड़के बेंगलुरु के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरेंगे। डीआरडीओ की ओर से बताया गया है कि 15 से 18 मई के बीच एयर इंडिया की कुल सात चार्टर उड़ानें रोम से जिओलाइट लाने के लिए निर्धारित की गई हैं। इसके बाद 19 से 22 मई के बीच कोरिया से आठ उड़ानों से ’जियोलाइट’ की खेप बेंगलुरु आएगी। इसके अलावा 20 से 25 मई के बीच अमेरिका के नेवार्क लिबर्टी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ानों को निर्धारित किया है। इसके बाद अगले हफ्तों में अमेरिका, बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स, जापान की राजधानी टोक्यो से जिओलाइट की खेप लाने के लिए एयर इंडिया की चार्टर उड़ानें निर्धारित की गईं हैं।
हालांकि देश में ऑक्सीजन की जरूरत पूरी करने के लिए भारतीय वायुसेना के परिवहन विमान और नौसेना के जहाज लगे हैं जो लगातार विदेशी मित्र देशों से लिक्विड ऑक्सीजन से भरे क्रायोजेनिक कंटेनर, ऑक्सीजन सिलेंडर और ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर ला रहे हैं। डीआरडीओ ने लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस में उड़ान के दौरान ऑक्सीजन पैदा करने के लिए विकसित की गई तकनीक पर मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट (एमओपी) बनाये गए हैं जो प्रति मिनट 1,000 लीटर का उत्पादन करता है। यह प्लांट्स दिल्ली एम्स के ट्रॉमा सेंटर, आरएमएल अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और एम्स, झज्जर (हरियाणा) में लगाये गए हैं। इस तरह के 500 ऑक्सीजन प्लांट तीन माह के भीतर देशभर में पीएम केयर्स फंड से लगाये जाने हैं।
क्या है जिओलाइट
जिओलाइट्स सिलिकॉन, एल्यूमीनियम और ऑक्सीजन से बनी क्रिस्टलीय ठोस संरचनाएं होती हैं जिनका मुख्य रूप से इस्तेमाल भारी पानी को हल्का करने के लिए किया जाता है। भारतवर्ष में इन खनिजों के सुंदर मणिभ राजमहल की पहाड़ियों में, काठियावाड़ में गिरनार पर्वत पर तथा दक्षिण ट्रैप में मिलते हैं। इसकी संरचना मधुमक्खी के छत्ते के समान होती है। इसका उपयोग पेट्रो रासायनिक उद्योगों और चिकित्सा के क्षेत्र में होता है।
यह प्राकृतिक रूप से खनिजों के रूप में दुनिया के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर पाए जाते हैं। जिओलाइट प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं लेकिन बड़े पैमाने पर औद्योगिक रूप से भी उत्पादित होते हैं। जिओलाइट्स का निर्माण करने के लिए कच्चे माल के रूप में सिलिका और एल्यूमिना की जरूरत पड़ती हैं, जो पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे प्रचुर खनिज घटकों में से हैं। यह भारी मात्रा में पानी सोख लेता है, इसलिए तेजी से गर्म करने पर यह बहुत अधिक मात्रा में भाप के रूप में पानी उत्पन्न करता है।