- झारखंड के दो पिछड़े जिलों में बायोटेक हब-किसान हब परियोजना की शुरुआत
रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) मुख्यालय में मुख्य बायोटेक किसान हब तथा झारखण्ड के दो पिछड़े जिले गिरिडीह एवं साहेबगंज में बायोटेक हब-किसान हब परियोजना की शूरुआत की गयी है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग से वित्त संपोषित इस परियोजना का संचालन विवि मुख्यालय स्तर पर निदेशालय प्रसार शिक्षा और जिला स्तर पर स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) द्वारा किया जायेगा। इस दो वर्षीय परियोजना की लागत राशि 155.71 लाख रुपये है। इसके तहत बीएयू मुख्यालय को 59.71 लाख और हर केवीके को 48-48 लाख की सहायता राशि मिलेगी।
बीएयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ जगरनाथ उरांव को परियोजना फेसीलीटेटर और चतरा केवीके प्रभारी डॉ रंजय कुमार सिंह, साहेबगंज केवीके प्रभारी डॉ अमृत कुमार झा और गिरिडीह केवीके प्रभारी डॉ देवकांत प्रसाद को परियोजना का सह मुख्य अन्वेंषक बनाया गया है।
प्रत्येक केवीके द्वारा जिले के 100 आदिवासी किसानों के 100 हेक्टेयर भूमि में उन्नत कृषि तकनीकी (जैविक कृषि) के माध्यम से बेमौसमी सब्जी खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। प्रत्येक केवीके द्वारा 80 आदिवासी किसानों के 16 समूहों में मशरूम की खेती का प्रत्यक्षण कराया जायेगा। इसी तरह प्रत्येक केवीके जिले में 100 उन्नत नस्ल के पशुओं में बकरी एवं सूकर का वैज्ञानिक प्रबंधन से पालन के लिए आदिवासी किसानों को प्रदान किया जाएगा। सबंधित तकनीकी विषयों पर केवीके द्वारा दो वर्षो में 1200 आदिवासी लाभुकों को प्रशिक्षित किया जायेगा।
डॉ उरांव ने बताया कि परियोजना में समयबद्ध रणनीतिक तहत स्थानीय किसानों की प्राइमरी एवं सेकेंडरी समस्याओं का कृषि पारिस्थिकी विश्लेषण, तकनीकी एवं प्रशिक्षण में आदिवासी किसानों एवं संस्थानों के बीच लिंकेज की स्थापना, अंतर्मिलन के माध्यम से वैज्ञानिक, किसान एवं मार्केट लिंकेज की स्थापना, प्रत्यक्षण के प्रभाव व अंगीकरण का मुल्यांकन, वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के फील्ड एवं संस्थान में प्रशिक्षण, प्रगतिशील पुरूष एवं महिला किसानों को चिन्हित तथा मास मीडिया, न्यूज पेपर, टीवी एवं रेडियो के माध्यम से गतिविधियों को बहुप्रचारित किया जायेगा।
कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि बायोटेक किसान हब समावेशी खेती पर आधारित है। परियोजना के तहत आदिवासी किसानों को जिले के उपयुक्त लाभकारी कृषि प्रणाली मॉडल से जोड़ा जायेगा। जो संस्थान, वैज्ञानिक, किसानों एवं बाजार लिंकेज के माध्यम से आदिवासी किसानों की आजीविका एवं पोषण सुरक्षा में मददगार साबित होगी। इसकी सफलता जिले के किसानों को प्रेरणा देने में सहायक होगी।