- आदिवासी समाज का अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर : कुलपति
रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय परिसर स्थित सरना स्थल में गुरुवार को सरना धर्मावलंबियों द्वारा सादगी के साथ सरहुल पर्व उत्सव का आयोजन किया गया। पूजा विधि के साथ कुलपति डॉ ओएन सिंह ने सरना स्थल पर नये सरना झंडा को स्थापित किया। स्थानीय पाहन ने पारंपरिक रीति-रिवाज एवं विधि-विधान से आराध्या देवी धरती माता, ग्राम देवता एवं सरना (साल वृक्ष) की पूजा की। मौके पर पाहन ने कुलपति, विवि के डीन, डायरेक्टर, साइंटिस्ट और सरना धर्मावलंबियों के बीच फूल खोंसी का रस्म पूरा किया।
मुख्य अतिथि कुलपति डॉ ओएन सिंह ने मौजूद सभी सरना धर्मावलंबियों को वासंतिक सरहुल पर्व की शुभकामना एवं बधाई दी। आदिवासी समाज जन्मतः एवं स्वभावतः प्रकृति से प्रेम एवं पूजा करते है। झारखण्ड सहित पड़ोस के राज्यों में मनाया जाने वाला यह वासंतिक पर्व नये साल के शुरूआत का भी प्रतीक है। यह पर्व आदिवासी समाज का अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। इस पर्व के पुन्य प्रताप से प्रकृति की कृपा प्रदेश पर बनी रहेगी। सरना धर्मावलंबियों का जीवन सरना फूल की भांति सदेव खिलता रहेगा।
विशिष्ट अतिथि डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव ने इस पर्व को आगामी पूरे वर्ष के मौसम का सटीक पूर्वानुमान का कृषि क्षेत्र में महत्व को बताया। सदियों से चली आ रही आदिवासी समाज की यह देशज तकनीक आज भी काफी प्रासंगिक है।
डायरेक्टर एक्सटेंशन एजुकेशन डॉ जगरनाथ उरांव ने कहा कि आदिवासी समाज आदि काल से प्रकृति के उपासक रहे है। जल, जंगल, जमीन, पहाड़, पर्वत, नदी, नाला, धरती, सूरज, आकाश एवं पाताल की सदियों से पूजा करते आ रहे है। स्वागत भाषण में डॉ बधनु उराँव ने सरहुल महापर्व को प्रकृति प्रेम, शांति, हरियाली, खुशहाली और समृद्धि का पावन अवसर बताया, धन्यवाद डॉ आरपी मांझी ने दी। मौके पर दिनेश टोप्पो सहित सीमित संख्या में स्थानीय सरना धर्मावलंबी भी मौजूद थे।