- पूर्वी लद्दाख के काराकोरम दर्रे से 3 मार्च को शुरू होगा अर्मेक्स-21 स्कीइंग अभियान
- उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रा तक लगभग 1,500 किलोमीटर का इलाका चिह्नित
नई दिल्ली। भारतीय सेना उत्तरी सीमाओं पर भारत के वैध क्षेत्रीय दावों को सार्वजनिक और मजबूत करने के लिए पर्वतारोहण अभियानों के साथ-साथ अनुसंधान अध्ययनों पर जोर दे रही है। स्कीइंग अभियान की शुरुआत 3 मार्च को लद्दाख के काराकोरम दर्रे से होगी और उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रा तक लगभग 1,500 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। सेना का यह अभियान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने पिछले हफ्ते पूर्वी लद्दाख की सीमा पर समझौते के तहत हुई विस्थापन प्रक्रिया को ’न कोई हारा, न कोई जीता’ की तर्ज पर दोनों देशों के लिए ‘विजयी स्थिति’ करार दिया था।
उत्तरी सीमाओं पर भारतीय क्षेत्र को हथियाने के लिए शुरू की गई चीन की विस्तारवादी नीति का सेना ने अतिरिक्त बलों और हथियारों की तैनाती करके प्रभावी ढंग से मुकाबला किया है। अब पर्वतारोहण और अन्य अभियानों के माध्यम से एकजुट होकर इन क्षेत्रों में भारत की उपस्थिति दिखाने की आवश्यकता है। क्षेत्रीय दावों को मजबूत करने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) दोनों के साथ अनुसंधान अध्ययनों को बढ़ावा देने और उनके प्रकाशन को बढ़ावा देने की आवश्यकता महसूस की गई है। इसमें दस्तावेजीकरण, स्थानों की जियोटैगिंग और साक्ष्य-निर्माण भी शामिल होगा।
सेना के सूत्रों का कहना है कि अर्मेक्स-21 नामक स्कीइंग अभियान काराकोरम दर्रे से लिपुलेख दर्रे तक लगभग 80-90 दिनों तक चलेगा। एलएसी के साथ चलने वाला यह अभियान लद्दाख, हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में लगभग 1,500 किलोमीटर की दूरी को कवर करेगा। पर्वतारोहण के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित सैन्यकर्मी 14 हजार फीट से लेकर 19 हजार फीट तक की पारंग ला, लमखागा और मलारी जैसी कई पहाड़ियों और ग्लेशियर पर स्कीइंग अभियान चलाएंगे। एलएसी और आईबी की चोटियों पर ऐसे और अभियानों की योजना भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन और अन्य पर्वतारोहण संस्थानों के साथ मिलकर बनाई जाएगी जिसमें सेना के साथ-साथ आम नागरिकों और विदेशी व्यक्तियों की भी भागीदारी होगी। इस तरह के अभियान दूरदराज के इलाकों में पर्यटन और वहां की आबादी को मुख्यधारा में शामिल होने के लिए बढ़ावा देंगे।
भारतीय सेना यह स्कीइंग अभियान ऐसे समय में शुरू करने जा रही है जब पूर्वी लद्दाख में चीन से 10 महीने पुराने सैन्य टकराव में दोनों देशों की सेनाओं ने फरवरी के मध्य तक पैन्गोंग झील के दोनों ओर विस्थापन प्रक्रिया पूरी की है। अब इसके बाद पूर्वी लद्दाख के अन्य विवादित क्षेत्र गोगरा, हॉट स्प्रिंग्स, डेमचोक और डेप्सांग मैदानों में विस्थापन प्रक्रिया शुरू करने के लिए भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच 20 फरवरी को 10वें दौर की वार्ता लगभग 16 घंटे तक हो चुकी है। दोनों देशों का मानना है कि पैन्गोंग झील क्षेत्र से सेनाओं की वापसी के बाद अन्य इलाकों के मुद्दों का भी समाधान करने का रास्ता निकलेगा।
दोनों पक्ष महत्वपूर्ण सर्वसम्मति का पालन करने, संचार और संवाद जारी रखने, जमीनी स्थिति को स्थिर और नियंत्रित करने पर सहमत हुए हैं। दोनों पक्ष शेष मुद्दों पर संयुक्त रूप से पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान निकालने को राजी हुए हैं ताकि सीमा क्षेत्रों में शांति बनी रहे।
चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी के साथ 23 विवादित और संवेदनशील क्षेत्र चिह्नित किये गए हैं, जो कई वर्षों से लगातार परिवर्तन और सैन्य तैनाती का सामना कर रहे हैं। लद्दाख में पैन्गोंग झील, ट्रिग हाइट्स, डेमचोक, डमचेले, चुमार और स्पैंगगुर गैप हैं। अरुणाचल प्रदेश में नमखा चू, सुमदोरोंग चू, आसफिला, दिचू, यांग्त्से और दिबांग घाटी में तथाकथित फिश टेल-I और II क्षेत्र हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के मध्य क्षेत्र में बाराहोती, कौरिक और शिपकी ला शामिल हैं। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी इन सीमा क्षेत्रों में तेजी से सैन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी मुखर हो गई है। भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच उत्तरी सिक्किम के नकु ला क्षेत्र में पिछले साल 9 मई को और फिर इस साल 20 जनवरी को हाथापाई हो चुकी है।
सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने पिछले हफ्ते पूर्वी लद्दाख की सीमा पर समझौते के तहत हुई विस्थापन प्रक्रिया को ’न कोई हारा, न कोई जीता’ की तर्ज पर दोनों देशों के लिए ‘विजयी स्थिति’ करार दिया था। सेना प्रमुख ने कहा कि हमने अब तक जो हासिल किया है, वह बहुत अच्छा है और बहुत अच्छा परिणाम है। चीन के साथ हमारे संबंध उसी दिशा में विकसित होंगे जिसे हम विकसित करने की इच्छा रखते हैं, क्योंकि दो पड़ोसी सीमा पर शांति चाहते हैं, कोई भी अनिश्चित सीमाओं को नहीं चाहता है। उन्होंने कहा कि लद्दाख मुद्दे से हमें अपनी अस्थिर सीमा की प्रकृति पर विचार करना चाहिए और क्षेत्रीय अखंडता के लिए चुनौतियों का सामना करना चाहिए। सेना प्रमुख ने यह भी कहा कि अभी भी नए खतरे मौजूद हैं, विरासत में मिलीं चुनौतियां पूरी तरह दूर नहीं हुई हैं।