नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने दिल्ली बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार के पूर्व के प्रस्ताव के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की आलोचना की है। रमेश ने कहा कि जब सरकार कृषि कानूनों से पीछे हट ही रही है तो फिर कानून को लेकर अब तक क्यों अड़ी थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक दिन पहले हुई सर्वदलीय बैठक में डेढ़ साल तक कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने के केंद्र के पूर्व के प्रस्ताव को फिर दोहराया था। प्रधानमंत्री ने आंदोलनरत किसानों को फिर से वार्ता की मेज पर लौटने का विकल्प देकर स्पष्ट किया था कि सरकार स्थायी समाधान निकालने के लिए प्रतिबद्ध है। आंदोलनरत किसानों का भ्रम दूर करने के लिए सरकार तीनों कृषि कानूनों का अमल डेढ़ साल तक रोकने के अपने प्रस्ताव पर भी कायम है।
जयराम रमेश ने रविवार को ट्वीट कर कहा कि दिल्ली की सीमा पर ठंड, बारिश और पुलिस के अत्याचार सहने वाले किसानों की परवाह नहीं करने वाले प्रधानमंत्री अब कहते हैं कि 18 महीने के लिए तीन कृषि कानून विराम पर हैं। उन्होंने कहा कि हमेशा की इस बार भी सरकार ने चालाकी दिखाई है, लेकिन अगर वाकई सरकार किसानों की बेहतरी चाहती है तो इन कानूनों की जांच के लिए एक संसद समिति को क्यों नहीं सौंपती? वैसे भी 18 महीने रोक के समय के बीच ये बेहतर विकल्प है और संसद को वापस रिपोर्ट भी किया जाएगा।
जयराम रमेश के इस सुझाव का कांग्रेस के दो अन्य नेताओं शशि थरूर और विवेक तनख़ा ने तारीफ की है। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद शशि थरूर ने कहा कि यह एक वैध प्रश्न है। कृषि कानूनों को पहली बार ही संसद की स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए था। अब भी सरकार कानूनों को वापस ले सकती है और उन्हें पुन: जांच के लिए समिति को भेज सकती है। वहीं राज्यसभा सदस्य विवेक तनखा ने कहा कि यह अच्छा विचार है अगर सरकार माने तो। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का पीछे हटने का कोई इरादा नहीं है, वो सिर्फ अपने कार्यक्रम के मुताबिक बोल रहे थे। किसानों की समस्या सुनने और समाधान का उनका कोई मन नहीं है। इस सरकार की वार्ता का एकमात्र उद्देश्य किसानों को विभाजित करना और उन्हें थकाना है।