जमीन धंसने के बाद बनाई गई थी यह सूर्य मंदिर, छठ में उमड़ते हैं श्रद्धालु

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  • आसपास के इलाकों में प्रचलित है कथा

प्रेम कुमार मिश्रा

गया । जिले के गुरुआ थाना रोड स्थित मध्य विद्यालय के समीप पवित्र स्थल सूर्य मंदिर और नई तालाब स्थित है। इस तालाब में छठ करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। भगवान सूर्य की उपासना कर मन्‍नत मागते हैं। बुजुर्गों का मानना है कि जो भी श्रद्धालु यहां सच्चे मन से छठ पर्व करते है, उनकी मनोकामना अवश्‍य पूरी होती है। यही वजह है कि चैती और कार्तिक छठ करने वाले श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां जुटते हैं। छात्र संघ द्वारा बड़े पैमाने पर यहां लाइट और साउंड की व्यवस्था भी की जाती है।

मंदिर निर्माण में बारे में कथा प्रचलित

सूर्य मंदिर निर्माण के बारे में यहां एक कथा प्रचलित है। इस बारे में पंडित शंभु पाठक बताते हैं। उनके मुताबिक यहां एक प्रेमी अग्रवाल नामक व्‍यक्ति थे। लोग उन्‍हें प्रेमु साह के नाम से जानते थे। उन्‍हें एक सपना आया था। सपने में भविष्‍यवाणी हुई कि गुरुआ गढ़ के समीप से जो पईन निकलकर सीधा उतर जाती है, उसमें अपार धन छुपा हुआ है। कुछ ही दूरी पर तालाब भी है। उस जगह पर पहुंचते ही उक्त जमीन धंस जायेगी। मिलने वाले धन से सूर्य मंदिर बनाने की बात कही गई थी।

सपने पर लोगों को नहीं हुआ विश्‍वास

उस सपने के बारे में श्री साह ने लोगों को बताया। इसपर किसी को विश्वास नहीं हुआ। इसके बाद भी गांव के दस-बीस लोग उक्त तालाब के पास गये। वहां पहुंचे ही वहां की जमीन सचमुच धंस गई। ऐसा चमत्कार होने से लोगों में विश्वास बन गया। इसके बाद लोगों ने आपस में सहयोग कर पहले पईन की सफाई की। पईन की सफाई करने के दौरान भारी मात्रा में सोना-चांदी और गगरी मिले। इसके बाद गांव के लोगों ने पहले तालाब का सौंदर्यकरण कराया। इसके बाद सूर्य मंदिर का भी निर्माण कराया।

सारथी के साथ भगवान भास्‍कर की मूर्ति‍

उक्त जगह पर आज भी सारथी अरुण के साथ भगवान भास्‍कर की संगमरमर की मूर्ति‍ स्थापित है। मंदिर के बाहर में अंजनी पुत्र हनुमान की मूर्ति है। सूर्य मंदिर की दक्षिण दिशा में शिव परिवार का मंदिर है। यह भी बताया जाता है कि शिव मंदिर के दक्षिण एक कुंआ है, उसमें बीच तालाब तक अंदर-अंदर सुरंग गलि‍यारी है।

बतातें चलें कि यह छठ तालाब की ऊपरी चारों दिशाओं में बट, आम, पीपल के वृक्ष भी हैं। यहां महिलाएं ने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए बटसाबित्री की पूजा अर्चना करती हैं। बट के फेरे लेती हैं। वर्ष 1942 में तालाब के दक्षिण में महत्तम साव द्वारा मध्य विद्यालय की स्थापना की गई है।