टाटा स्‍टील का संवाद : भूमि व वन संरक्षण और अधिकारों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर हुई चर्चा

झारखंड
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जमशेदपुर । पारंपरिक और उभरते संरक्षण अभ्यासों के परस्पर-विनिमय को सुविधाजनक बनाने के लिए संवाद के सातवें संस्करण के तीसरे दिन डिजिटल प्लेटफार्मों पर बातचीत का एक सिलसिला देखा गया। इनमें भूमि और वन अधिकारों के संरक्षण के लिए संवैधानिक कानूनों की समझ को गहरा करने के उद्देश्य से की गयी चर्चा थी। इस क्षेत्र के कई विशेषज्ञ उन तरीकों पर चर्चा करने के लिए एक साथ आए, जिनमें आदिवासी समुदाय प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर तरीके से उपयोग करते रहे हैं और सह-अस्तित्व के अनुकरणीय मॉडल पेश करते हैं।

एक अन्य सत्र में डॉ भूषण पटवर्धन, प्रोफेसर जी हरिराममूर्ति, डॉ उन्नीकृष्णन पयप्प्पल्लीमना और डॉ सरीन एनएस समेत भारतीय और अंतरराष्ट्रीय वैद्यों ने आदिवासी प्रथा एवं अभ्यासों को व्यापक बनाने के तरीकों पर चर्चा की। उन्होंने आधुनिक और पारंपरिक औषधीय अभ्यासों के बीच संतुलन बनाने पर भी विचार विमर्श किया।

‘एक्शन रिसर्च कलेक्टिव’ में शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों ने भूमि और जल से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए एक साथ आए। झारखंड के वाटरमैन के नाम से मशहूर पद्म सोमेन उरांव ने संसाधनों के संरक्षण के अपने अनुभव को साझा किया। हिमांशु कुलकर्णी, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर व सेक्रेट्री, एडवांस सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट, पुणे ने बताया कि कैसे जमीन से जुड़ कर डेटा और रिसर्च को ध्यान में रखते हुए एक्शन रिसर्च करना चाहिए।

‘समुदय के साथ’ फिल्म प्रदर्शन खंड में चेंताई खियामनियुंगन की फिल्म ‘विविधता में शक्ति’ प्रदर्शित की गई। प्रदर्शन के बाद दर्शकों को फिल्म निर्माता के साथ बातचीत करने का अवसर मिला। नागालैंड के कृषि अभ्यासों पर आधारित इस फिल्म पर उनकी चर्चा ने पारंपरिक कृषि पद्धतियों में गहरी अंतर्दृष्टि दी। युवा पीढ़ी के ज्ञान को समृद्ध किया। 120 से अधिक स्कूली विद्यार्थी भी सत्र में शामिल हुए और पैनलिस्टों के साथ बातचीत की।

एक अन्य शो में लद्दाख के चांग्पा जनजाति के कलाकारों ने जबदो नृत्य प्रस्तुत किया। सिक्किम के भूटिया जनजाति ने ताशी शबद्रो गीत के गायन और नृत्य द्वारा प्रकृति के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की। गुजरात के रथवास, केरल के मालवेटुवंस और हिमाचल के किन्नौरियों ने अपने त्योहारों के मांगलिक नृत्य प्रस्तुत किए।

पश्चिम बंगाल से आए उरांव जनजाति ने असारी रोपा अंगनाई नृत्य के माध्यम से बारिश का आह्वान किया। शाम को दर्शकों ने फेदहेड्स बैंड द्वारा ऑल्ट-फोक-रॉक के एक मिश्रित रूप का आनंद लिया। यह संगीत तंखुल नगाओं की विलुप्त होती संस्कृति एव उनकी परंपराओं को प्रेरित और पुनर्जीवित करने का एक प्रयास था, जिनका कभी उनके पूर्वज अभ्यास किया करते थे।

कारीगरों के ‘मास्टरक्लास’ में ओडिशा से हो जनजाति के दीनबंधु सोरेन और रेणुका बोदरा ने गोंड और सौरा चित्रों की मूल बातें बताने के लिए डिजिटल माध्मय से संवाद के साथ जुड़े।

संवाद इकोसिस्टम ने पिछले 6 वर्षों में भारत के 27 राज्यों और 18 देशों के 117 जनजातियों के 30,000 से अधिक लोगों को एक साथ लाया है। दूर-दराज के क्षेत्रों के लिए क्षेत्रीय संवाद की अवधारणा को 2016 में अधिक-से-अधिक आदिवासी समुदायों तक पहुंचने और उनकी अनसुनी आवाजों को दुनिया के पटल पर लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।