प्रत्येक तीन माह पर KVK के कामकाज की होगी समीक्षा

झारखंड
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  • बीएयू के प्रसार शिक्षा परिषद् की 38वीं बैठक में बोले कुलपति

रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ एससी दुबे ने कहा कि कृषि विज्ञान केन्द्रों (KVK) की गतिविधियां ज्यादा नियोजित और वैज्ञानिक ढंग से चलें। इसके लिए वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक नियमित अंतराल पर होगी। प्रत्येक तीन माह पर केवीके के कामकाज की समीक्षा की जाएगी। सभी केवीके में बायोमैट्रिक उपस्थिति पद्धति दुरुस्त की जाएगी। इन केन्द्रों को अपने प्रशासनिक एवं वित्तीय प्रक्रिया में व्यापक बदलाव लाना होगा। कामकाज का बेहतर प्रलेखीकरण करते हुए राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करने का प्रयास करना होगा। डॉ दुबे शनिवार को विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा परिषद् की 38वीं बैठक को संबोधित कर रहे थे।

डॉ दुबे ने कहा कि केवीके को किसानों को उत्पादन एवं आय बढाने के लिए ना केवल उपयुक्त तकनीक और प्रशिक्षण देना है, बल्कि उस तकनीक को कृषक समुदाय ने कितना अपनाया। उनकी आय एवं सामाजित-आर्थिक दशा में क्या सुधार हुआ, इसका वैज्ञानिक आकलन भी करना है। बीज उत्पादन भी केवीके का एक प्रमुख उद्देश्य है, इसलिए क्षेत्रवार और जिलावार आकलन होना चाहिए कि‍ कहां किन फसलों के किन प्रभेदों के कितने बीज की आवश्यकता हैI बीएयू राज्य की आवश्यकता के लिए प्रजनक बीज उत्पादन करने में सक्षम है। प्रत्येक केवीके को अपनी विशिष्ट तकनीक के लिए अलग पहचान बनानी होगी।

कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी), जोन- IV, पटना के निदेशक डॉ अंजनी कुमार ने झारखण्ड की बीज नीति बनवाने की दिशा में आवश्यक प्रयास करने का आग्रह कुलपति से किया, ताकि जिला स्तर पर स्थापित 24 कृषि विज्ञान केंद्र अपने मैनडेट के अनुरूप बीज उत्पादन का कार्य कर सकें। उन्होंने बीएयू और राज्य के आइसीएआर संस्थानों से अपनी प्रौद्योगिकी की सूची अटारी को उपलब्ध करने का भी आग्रह किया, ताकि केवीके के माध्यम से उनके समुचित प्रसार की गति बढ़ सके। उन्होंने केवीके प्रमुखों को अपने जिले के किसानों की विशिष्ट गुणवाले अनाज, फल, सब्जी और जंगली पौधों की प्रजातियों का पंजीकरण प्रस्ताव लाने का निर्देश दिया, ताकि उनके संरक्षण का लाभ सम्बंधित किसानों को मिल सके।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (हजारीबाग) के विशेष कार्य पदाधिकारी डॉ विशाल नाथ ने कहा कि केवीके को केवल प्रशिक्षण केंद्र के रूप में नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी रिसोर्स सेंटर के रूप में काम करना करना होगा। ड्रैगन फ्रूट झारखंड में सफलतापूर्वक पैदा हो सकता है, किन्तु ग्रीष्मऋतु के 42-45 डिग्री तापक्रम में भी यह कैसे बेहतर, टिकाऊ और सुरक्षित उत्पादन दे, इसके लिए समुचित तकनीक पर काम करना होगा। बीएयू के 10 केवीके में मदर प्लांट नर्सरी स्थापित की गयी थी, उसे दुरुस्त किया जाना चाहिए I

मौके पर तीन प्रगतिशील किसान भरत महतो, अशोक भुइयां और तुलसी महतो को सम्मानित किया गया। डॉ अमृत कुमार झा, डॉ अशोक कुमार, डॉ आरती वीणा एक्का, डॉ संजय पाण्डेय और डॉ शुभ्रांशु शेखर ने विभिन क्षेत्रों के कृषि विज्ञान केन्द्रों की उपलब्धियों का ब्यौरा प्रस्तुत किया।

निदेशक प्रसार शि‍क्षा डॉ जगरनाथ उरांव ने अतिथियों का स्वागत और डेयरी टेक्नोलॉजी कॉलेज के एसोसिएट डीन डॉ आलोक कुमार पाण्डेय ने धन्यवाद किया। संचालन शशि सिंह ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के निदेशक, अधिष्ठाता, वैज्ञानिक उपस्थित थे।

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