- कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने वैज्ञानिकों के साथ किया भ्रमण
BAU : रांची। इस वर्ष गर्मियों की फसल (गरमा फसल) यानी जायद फसल का रकबा घटकर 65.29 लाख हेक्टेयर हो गया है। दलहन और मोटे अनाज (मिलेट्स फसल) की रकबा बढ़ी है। इसका खुलासा कृषि मंत्रालय, भारत सरकार ने 28 अप्रैल, 2023 को जारी आंकड़ों किया है। आंकड़ों के मुताबिक चालु गरमा (जायद) खेती में मोटे अनाज का बुवाई क्षेत्र 10.19 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 10.86 लाख हेक्टेयर बताई गई है। यूएनओ द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष- 2023 में यह एक सकारात्मक संकेत है।
कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह की पहल पर मिलेट्स शोध से जुड़े वैज्ञानिकों ने 18 मार्च, 2023 को गरमा फसल के रूप में प्रोसो मिलेट्स (चिना प्रभेद-जीपीयूपी), लिटिल मिलेट्स (गुन्दली प्रभेद-बिरसा गुन्दली) एवं रागी (प्रभेद – बिरसा मडुआ – 3 एवं बिरसा सफ़ेद मडुआ -1) की बुवाई की। विश्वविद्यालय के कृषि तकनीकी पार्क में के खेतों में तीनों फसलें गर्मी भरी मई माह में लहलहा रही है। इन खड़ी फसलों का कुलपति ने शुक्रवार को निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह, डीन एग्रीकल्चर डॉ डीके शाही एवं 15 सदस्यीय वैज्ञानिकों के साथ भ्रमण किया। मौके पर फसल के प्रदर्शन पर चर्चा एवं फसल के विकास की तकनीकी समीक्षा की।
बीएयू कुलपति की इस पहल से प्रदेश में भी गरमा फसल के रूप में मिलेट्स की सफल खेती संभावना बढ़ गयी है। कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह बताते है कि केंद्र एवं राज्य सरकार मोटे अनाजों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित एवं इसके उत्पादों को बढ़ावा दे रही है। आमतौर पर धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाजों की खेती में सिंचाई और उर्वरक के साथ मजदूरी की लागत खर्च करीब 20% तक कम होती है। मिलेट्ल पर्यावरण के अनुकूल और कम जोखिम वाली फसलें होती हैं। इसीलिए टिकाऊ खेती में इन्हें प्रदेश के शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किये जाने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।
निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने कहा कि प्रदेश में खरीफ मौसम में खरपतवार की अधिकता की वजह से गुन्दली फसल का बढ़िया विकास नहीं होता है। गरमा खेती में गुन्दली फसल का बढ़िया प्रदर्शन एक शुभ संकेत है। मिलेट्स फसलों की मिश्रित खेती से भी किसान लाभ ले सकते हैं। मिलेट्स फसलों में कीटों तथा बीमारियों से लड़ने की क्षमता से भी फसल नुकसान से बचा जा सकता है। डीन एग्रीकल्चर डॉ डीके शाही ने मिलेट्स की खेती में पोषक तत्वों की स्थिरता में वृद्धि और मिट्टी की उर्वरता में सुधार से उत्पादकता में बढ़ोतरी की बात कही।
तकनीकी पार्क में मिलेट्स फसलों को बीएयू में संचालित आईसीएआर-अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (मिलेट्स फसल) के तहत प्रदर्शित किया जा रहा है। परियोजना अन्वेंषक डॉ अरुण कुमार ने बताया कि इस शोध की सफलता से गर्मियों में मिलेट्स फसलों की खेती को बढ़ावा मिलेगा। पोषक गुणों से भरपूर मिलेट्स फसलों की वैज्ञानिक खेती से किसान बढ़िया आय प्राप्त कर सकते है।
राज्य के इच्छुक बिरसा किसान, विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के परियोजना ईकाई में वैज्ञानिकों से निःशुल्क तकनीकी जानकारी ले सकते है। मिलेट्स फसलों का प्रमाणित बीज निर्धारित दर पर खरीद सकते है। भ्रमण के दौरान अनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग की अध्यक्षा डॉ मनिगोपा चक्रवर्ती के अलावा मिलेट्स शोध कार्यो से जुड़े वैज्ञानिकों में डॉ मिलन चक्रवर्ती, डॉ सबिता एक्का, डॉ शीला बारला भी मौजूद थे।