रांची। झारखंड की राजधानी रांची जिले के चान्हो प्रखंड के कमाती गांव और अनगड़ा प्रखंड के मुनगाडीर गांव में एकदिवसीय जागरुकता अभियान एवं वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (BAU) के निदेशालय अनुसंधान अधीन संचालित आईसीएआर-एआईसीआरपी (बकरीपालन) और आईसीएआर-एआईसीआरपी (कुक्कुट पालन) के टीएसपी कार्यक्रम के अधीन कार्यक्रम किया गया।
इस दौरान परियोजना अन्वेंषक एवं डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने दोनों गांवों के जनजातीय किसानों को ग्रामीण स्तर पर बेहतर आजीविका के साधन एवं पोषण सुरक्षा के लिए उन्नत बकरी एवं कुक्कुट पालन प्रौद्योगिकी की जानकारी दी। किसानों को बकरी की उनत नस्ल ब्लैक बंगाल और कुक्कुट (मुर्गी) की संकर नस्ल झारसिम का वैज्ञानिक विधि से प्रबंधन एवं लाभों के बारे में बताया गया।
डॉ प्रसाद ने बताया कि झारखंड में बकरीपालन एवं नस्ल सुधार के लिए ब्लैक बंगाल नस्ल सबसे उत्तम पाया गया है। बीएयू में संचालित आईसीएआर- एआईसीआरपी (बकरीपालन) अधीन पूरे प्रदेश में बकरी नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जहां ब्लैक बंगाल बकरी का प्रजनन बीटल नस्ल बकरे से कराकर बकरी नस्ल सुधार को बढ़ावा दिया जा रहा है।
वहीं, बीएयू द्वारा विकसित कुक्कुट (मुर्गी) संकर नस्ल ‘झारसिम’, स्थानीय देशी मुर्गियों की अपेक्षा डेढ़ से दोगुनी लाभकारी है। उन्होंने कहा कि बकरी एवं कुक्कुट पालन में वैज्ञानिक विधि से रख-रखाव एवं बीमारियों की जानकारी एवं ससमय टीकाकरण से अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
कार्यक्रमों के दौरान डॉ सुशील प्रसाद एवं डॉ निशांत पटेल ने दोनों गांवों के 10-10 जनजातीय किसानों को 2-2 ब्लैक बंगाल नस्ल का बकरा वितरित किया, ताकि स्थानीय स्तर पर बकरी नस्ल सुधार को बढ़ावा मिले। अन्य 10-10 जनजातीय किसानों को ‘झारसिम’ नस्ल की 10-10 मुर्गियों का वितरण किया। लाभुक किसानों को दाना बर्तन, पानी बर्तन, एक महीने के आहार का दाना मिश्रण एवं आवश्यक दवाइयों को भी मुफ्त वितरित किया गया।
इस अवसर पर डॉ निशांत पटेल, मृत्युन्जय कुमार सिंह, तुलसीदास महतो, विनोद ठाकुर, जितेन्द्र बैठा, राजू विश्वास एवं काली लोहरा आदि भी मौजूद थे। कार्यक्रम के सुनियोजित संचालन में चान्हो के प्रदीप कुजूर एवं अनगडा के मालीया बेदिया ने सहयोग दिया। बताते चले कि इससे पूर्व दोनों गावों के जनजातीय किसानों को पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय में बकरीपालन एवं कुक्कुट पालन की उन्नत प्रौद्योगिकी पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण भी दिया गया था।