- हड़ताल के लाभ और हानि का कर चुका है आकलन
रांची। कोयला कामगारों के 11वें वेतन समझौते को लेकर जेबीसीसीआई की 8वीं बैठक 3 जनवरी को कोलकाता में होनी है। अब तक हुई बैठक बेनतीजा निकली है। प्रबंधन और यूनियन के बीच मिनिमम बेनीफीट गारंटी (एमजीबी) को लेकर गतिरोध कायम है। इस बैठक में इसे दूर करने का प्रयास हो सकता है।
गतिरोध के बीच प्रबंधन इस वेतन समझौते में यूनियन को मनमाफिक एमजीबी देने के मूड में नहीं है। दरअसल, प्रबंधन का मानना है कि वर्तमान परिस्थिति उसके अनुकूल है। वह हड़ताल के लाभ और हानि का आकलन भी कर चुका है। ऐसे में वह कम से कम एमजीबी में यह वेतन समझौता कर सकता है।
बीते दिनों सीसीएल में हुए एक कार्यक्रम में शामिल होने आए कोल इंडिया के डीपी विनय रंजन ने कहा था कि पूरे कोल इंडिया में 65 फीसदी उत्पादन आउटसोर्सिंग से हो रहा है। सीसीएल के सीएमडी के मुताबिक यहां भी महज 35 प्रतिशत उत्पादन कंपनी के कामगार कर रहे हैं। कई कंपनियों में तो 90 फीसदी उत्पादन आउटसोर्स से हो रहा है।
ऐसे में प्रबंधन का मानना है कि कोयला कामगारों के हड़ताल पर चले जाने के बाद भी कोयला उत्पादन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। कामगारों के हड़ताल पर चले जाने से वेतन सहित अन्य मद में पैसे की अच्छी खासी बचत प्रबंधन को होगा। संभव है कि हड़ताल के दिनों में मशीन से अपेक्षाकृत अधिक उत्पादन हो जाए।
कोल इंडिया में वर्तमान में हर विभाग में लाखों ठेका श्रमिक कार्यरत हैं। हालांकि प्रबंधन सिर्फ माइनिंग से जुड़े ठेका श्रमिकों को ही हाई पावर कमेटी की अनुशंसा के आलोक में मजदूरी का भुगतान किया जा रहा है। अन्य को काफी कम मजदूरी मिलती है। कई कंपनियों में तो कमेटी की तय मजदूरी भी नहीं दी जा रही है। ठेका श्रमिकों को यूनियन अब तक एकजुट नहीं कर पाई है।
इस स्थिति में ठेका श्रमिक हड़ताल पर नहीं जाएंगे। यूनियन के सदस्य उन्हें डराकर कुछ देर के लिए उत्पादन बंद करा सकते हैं। हालांकि सुरक्षा बलों की तैनाती कर देने पर उनका यह कदम भी काम नहीं जाएगा। जरूरत के लायक उत्पादन हो जाएगा।
वर्तमान में पावर प्लांटों में कोयला का पर्याप्त स्टॉक है। ऐसी स्थिति में एक-दो दिन डिस्पैच बाधित रहने पर भी बिजली उत्पादन और सप्लाई पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है। हड़ताल खत्म होने के बाद अतिरिक्त रैक से जरूरत वाले पावर प्लांटों को कोयला भेजा जा सकता है।
कोल इंडिया के डीपी ने यह भी कहा था कि हर साल करीब 10 हजार कामगार रिटायर हो रहे हैं। रिटायरमेंट के कगार पर पहुंचने वाले कामगारों का हर दिन का वेतन करीब 4 से 5 हजार होता है। उनके हड़ताल करने पर इतनी राशि का सीधा नुकसान है। इसके अलावा पेंशन, ग्रेच्युटी, लीव इनकैशमेंट सहित अन्य लाभ पर भी प्रभाव पड़ेता है।
यही कारण है कि रिटायमेंट के चार से पांच साल बचे होने पर कामगार हड़ताल करने से परहेज करते हैं। वर्तमान में ऐसे कामगारों की संख्या हजारों में है। यूनियन प्रतिनिधियों के रोकने के बाद भी वह किसी तरह दफ्तर में चले जाते हैं।
इसके अलावा यूनियन हड़ताल को लेकर एकमत नहीं होते हैं। हड़ताल में शामिल नहीं होने वाली यूनियन के सदस्य हर हाल में ऑफिस जाते हैं। इस वस्तुस्थिति से प्रबंधन पूरी तरह अवगत है। यही कारण है कि कम से कम एमजीबी वेतन समझौता फाइनल करने के फिराक में प्रबंधन है।