TATA STEEL FOUNDATION की पहल से लौट र‍ही लोगों की आंखों की रोशनी

झारखंड सरोकार
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जमशेदपुर। पोटका निवासी 30 वर्षीय पार्वती करमाकर। यह दो बच्चों की मां है। इन्हें काफी कम उम्र में मोतियाबिंद हो गया था। आम तौर पर ऐसी स्थिति विकसित होने के लिए 30 की कम उम्र है, लेकिन भारत के ग्रामीण और उप-शहरी क्षेत्रों में यह बहुत ही सामान्य घटना है।

कुछ वर्षों से पार्वती की आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। जागरुकता और संसाधनों की उपलब्धता की कमी के कारण वह इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती थी। उसकी दृष्टि की बिगड़ती स्थिति उसके और उसके परिवार के लिए अत्यधिक चिंता और परेशानी का कारण बन रही थी।

टाटा स्टील फाउंडेशन (टीएसएफ) द्वारा मोतियाबिंद शिविर आयोजित किये जाते हैं। इसका उद्देश्य झारखंड और उड़ीसा के समुदायों में ऐसी स्थितियों का पता लगाना और उपचार करना है।

पोटका में शिविर आयोजित करने से पहले फाउंडेशन से जुड़े प्रशिक्षित स्वयंसेवकों ने शिविर के स्थान और उसके आसपास की सामुदायिक जांच की। इस स्क्रीनिंग के माध्यम से पार्वती की पहचान की गई। उन्हें शिविर में आने के लिए कहा गया। शिविर में डॉक्टर उसका सही निदान करने में सक्षम थे। तुरंत उसकी सर्जरी के लिए समय निर्धारित कर सकते थे। तीन महीने पहले उसकी पहली सर्जरी हुई। एक महीने बाद उसकी दूसरी सर्जरी सफलतापूर्वक की गयी। पार्वती ने फिर से पर्याप्त देखने की क्षमता प्राप्त कर ली है। जीवन को सभी रंगों और चमक का आनंद लेते हुए जीने में सक्षम हैं।

झारखंड और उड़ीसा के क्षेत्रों में और आसपास के क्षेत्रों में अंधेपन को कम करने और वंचित समुदायों की आंखों की रोशनी वापस लौटने के प्रयास में फाउंडेशन मोतियाबिंद जांच शिविरों का आयोजन कर रहा है। पिछले दस वर्षों में विभिन्न साझेदारों के माध्यम से 30,000 से अधिक रोगियों की दृष्टि को सफलतापूर्वक बहाल किया है।

मोतियाबिंद सर्जरी कार्यक्रम का विस्तार करने के प्रयास में टाटा स्टील फाउंडेशन ने पोटका जैसे झारखंड और उड़ीसा के विशिष्ट परिचालन ब्लॉकों में मोतियाबिंद को कम करने की योजना बनाई है। अप्रैल के बाद से फाउंडेशन ने पोटका क्षेत्र में 12 शिविरों की मेजबानी की है, जिसमें 85 से अधिक प्रभावित व्यक्तियों का ऑपेरशन किया जा रहा है।

रमानी बाला सिंह एक और ऐसी महिला हैं, जिनसे टाटा स्टील फाउंडेशन ने संपर्क किया। वह पोटका की रहनेवाली एक 50 वर्षीय महिला है, जो एक किसान है। खेतों में रोजाना काम करती है। वह कुछ वर्षों से आंख की रोशनी कम होने से पीड़ित है। इसके कारण व्यावसायिक असफलताओं का सामना कर रही है। संसाधनों की कमी और वित्तीय बाधाओं के कारण, उसके पास अपनी हालत का इलाज कराने के लिए एजेंसी नहीं थी।

रमानी ने फाउंडेशन द्वारा पोटका में आयोजित मोतियाबिंद शिविर के बारे में सुना था। शिविर में डॉक्टरों द्वारा अपनी आंखों की जांच कराने का फैसला किया। तुरंत उसकी जांच की गई। इलाज के लिए उसका ऑपरेशन किया गया। उसकी दृष्टि में आश्चर्यजनक रूप से सुधार हुआ। वह अधिक आरामदायक और सार्थक जीवन जीने में सक्षम है।