Rabies : पागल जानवरों के काटने से होने वाली एक जानलेवा बीमारी

विचार / फीचर देश सेहत
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डॉ सुशील प्रसाद

रैबीज एक विषाणुजनित संक्रामक बीमारी है। यह वायरस संक्रमित पशुओं के काटने और खरोंचने से मनुष्यों में फैलता है। यह एक जानलेवा रोग है। इसकी रोकथाम के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 28 सितंबर को विश्व रैबीज दिवस मनाया जाता है।

रैबीज की रोकथाम की नींव फ्रांस के प्रसिद्ध जीव विज्ञानी लुई पाश्चर ने रखी थी। उन्होंने विश्व में रैबीज का पहला टीका विकसित किया था। उन्हीं की पुण्यतिथि पर प्रत्येक वर्ष विश्व रैबीज दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत 28 सितंबर, 2007 को एलायंस फॉर रैबीज कंट्रोल एवं सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन, यूएसए और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से की गई थी। डब्ल्यूएचओ ने वर्ष 2022 के लिये इस दिवस का थीम ‘रैबीज फैक्ट, नॉट फियर रखा है। इसका उद्देश्य पूरे विश्व में वर्ष 2030 तक रैबीज बीमारी के प्रकोप को खत्म करना है।

रैबीज का वायरस अधिकांशः रैबीज से पीड़ित जानवरों जैसे-कुत्ता, बिल्ली, बंदर आदि की लार में मौजूद रहता है। आंकड़ों के अनुसार मनुष्यों के लगभग 99 प्रतिशत मामलों में रैबीज की मुख्य वजह कुत्ते का काटना होता है।

रैबीज की मुख्य वजह न्यूरोट्रोपिक लाइसिसिवर्स नामक वायरस होता है, जो मनुष्य सहित सभी प्रकार के गर्म खून वाले जीवों को प्रभावित कर सकती है। यह विकार संक्रमित जानवर की लार द्वारा प्रेषित होता है, जो लार ग्रंथियों और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है। यह मुख्यतः पागल जानवर के काटने और और खरोंचने से होता है।

रैबीज के लक्षण दिखाई देने की समयावधि चार दिनों से लेकर दो वर्ष तक या कभी-कभी उससे भी अधिक हो सकती है। इसलिये इसके घाव के वायरस को जल्द से जल्द हटाना जरूरी होता है। इसके घाव को तुरंत पानी और साबुन से धोना चाहिये और इसके बाद एंटीसेप्टिक का उपयोग करना चाहिये, ताकि किसी भी प्रकार के संक्रमण की संभावना को कम किया जा सके।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पूरी दुनिया में हर वर्ष 59,000 लोगों की रैबीज बीमारी की वजह से मौत होती हैं। उनमें से 90 प्रतिशत लोगों को रैबीज से संक्रमित कुत्ते के काटने से रैबीज बीमारी हुआ होता है।

भारत में प्रत्येक साल रेबीज बीमारी से 18,000 से 20,000 लोगों की मौत होती है। इन मौतों में से अधिकतर बच्चे होते हैं।

झारखंड में हर साल 50 से ज्यादा मौतें कुत्ता काटने से होती रही है। रांची में हर साल इससे मौतें होती हैं। मौतें भले ही ज्यादा नहीं हैं, मगर कुत्ता काटने का इलाज बहुत महंगा है। रैबीज के टीके लगाने पर गुर्दों पर बुरा असर पड़ता है।

लोगों में जागरुकता में कमी और अक्सर चिकित्सा सुविधाओं आभाव की वजह से मृत्यु होती हैं। ज्यादातर इस बीमारी से मृत्यु का रिकॉर्ड तक नहीं होता है। अगर सड़क पर रहने वाले कुत्तों को भी पहले से रेबिज का टीका लगाया जाए तो राज्य को रेबिज मुक्त किया जा सकता है। इसके लिए सरकार के साथ विभिन्न निगम और एनजीओ को अपने-अपने स्तर पर कार्य करने की जरूरत है।

रैबीज का खतरा होने पर जीवन की सुरक्षा के लिए तुरंत रैबीज का टीका लगवा लेना चाहिए। यह कुत्तों के काटने से मनुष्य में फैलता है, इसलिए कुत्तों को भी रैबीज का टीका लगवाने की आवश्यकता है।

(लेखक बिरसा कृषि विश्‍वविद्यालय के अधीन संचालित वेटनरी कॉलेज के डीन हैं।)