बाढ़ चेतावनी प्रणाली को दुरुस्त करने की जरूरत : राज्यपाल

झारखंड
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  • बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में लैंडस्केप प्रबंधन पर तीन दिवसीय सम्मेलन शुरू

रांची। राज्यपाल सह कुलाधिपति रमेश बैस ने कहा कि देश में बाढ़ चेतावनी प्रणाली को दुरुस्त करने की जरूरत है। उन्‍होंने अटल बिहारी वाजपेयी के सपनों के अनुरूप मौसमी और सदाबहार नदियों को एक दूसरे से जोड़ने पर जोर दिया। वह 22 सितंबर को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए बोल रहे थे। इसका विषय ‘बाढ़ एवं जलाशय अवसादन रोकने के लिए भूदृश्य प्रबन्धन’ है।

राज्‍यपाल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से समाज और अर्थव्यवस्था का हर क्षेत्र प्रभावित होता है। इसकी सर्वाधिक मार किसानों पर पड़ती है, क्योंकि वे इस परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने की तकनीक और संसाधनों से लैस नहीं है।

बैस ने कहा कि गर्मी का रिकॉर्ड टूट रहा है। वर्ष 2019 अब तक का सबसे गर्म साल रहा, जबकि 2010 से 2019 का दशक सबसे गर्म रहा। पूर्वी और उत्तरी राज्यों के अलावा अब राजस्थान में भी बाढ़ आ रही है। आवश्यकता है कि गर्मी में सूख जाने वाली नदियों को बाढ़ वाली नदियों से जोड़ा जाए, ताकि बाढ़ और सुखाड़ से निबटने में सरकारी राशि के खर्च को न्यूनतम किया जा सके। वैज्ञानिकों को किसानों के बीच जाकर उनकी समस्याओं और परिस्थितियों को समझना होगा। उन्नत तकनीक और बीज उपलब्ध कराना होगा।

स्वागत करते हुए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बीएयू की प्रमुख गतिविधियां और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। कहा कि झारखंड में मृदा अपरदन की समस्या बढ़ती जा रही है, जिससे प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हो रही है। असम और मेघालय के बाद सर्वाधिक वर्षा झारखंड में होती है। आवश्यकता उस वर्षा जल के समुचित प्रबंधन की है। इस सम्मेलन की अनुशंसाओं से केंद्र एवं राज्य सरकारों को लाभकारी कृषि योजना बनाने में मदद मिलेगी।

झारखंड के ग्रामीण विकास सचिव डॉ मनीष रंजन ने कहा कि दुनिया की 52% भूमि और दक्षिण एशिया की 78% भूमि डिग्रेडेशन से प्रभावित है। इससे उत्पादन और संस्कृति का क्षरण तो हो ही रहा है खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित हो रही है। गरीबों का पलायन बढ़ रहा है। भूमि एवं जल संरक्षण प्रयासों को एक जन आंदोलन का रूप देना होगा। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग जैसी नवीनतम सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना होगा।

अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान के कंट्री रिप्रेजेंटेटिव और आईसीआर के पूर्व उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) डॉ एके सिक्का ने कहा कि भूमि और जल, दोनों प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए एकीकृत प्रयास करना होगा। सेडिमेंटेशन बढ़ने से जलाशयों की भंडारण क्षमता कम हो रही है और नदियों से बार-बार बाढ़ आ रही है। इसका प्रकृति आधारित समाधान ढूंढना होगा।

भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (देहरादून) के निदेशक डॉ एम मधु भी मंच पर उपस्थित थे।

इस अवसर पर पलामू के प्रमंडलीय आयुक्त डॉ जटाशंकर चौधरी, डॉ केपी गोरे, डॉ टीके सरकार, डॉ सीपी रेड्डी सहित लगभग 20 लोगों को प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में उनके विशिष्ट योगदान के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया। इसकी घोषणा आयोजक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ पीआर ओजस्वी ने की।

सम्मेलन के स्थानीय आयोजन सचिव डॉ बीके शाही ने धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन शशि सिंह ने किया। भाग ले रहे प्रतिनिधियों के लिए शाम में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। शास्त्रीय गायिका श्रुति देशमुख, नर्तकी भारती कुमारी और बीएयू के विभिन्न संकायों के छात्र-छात्राओं ने मनमोहक प्रस्तुति दी।

सम्मेलन में आईसीएआर के विभिन्न शोध संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और अन्य स्वायत्तशासी संस्थानों के 300 से अधिक वैज्ञानिक एवं पदाधिकारी भाग ले रहे हैं।

सम्मेलन का आयोजन इंडियन एसोसिएशन ऑफ सॉइल एंड वॉटर कंजर्वेशनिस्ट्स (भारतीय मृदा एवं जल संरक्षणविद संघ), देहरादून द्वारा  भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (देहरादून), बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (रांची), महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान (मोतिहारी) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (हजारीबाग), दामोदर घाटी निगम (हजारीबाग) और झारखंड सरकार के मृदा संरक्षण निदेशालय एवं झारखंड राज्य वाटरशेड मिशन के सहयोग से किया जा रहा है।

सम्मेलन के आयोजन सचिव भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ गोपाल कुमार और डॉ देवाशीष मंडल हैं।