काटी ने पोटका में समुदायों की संस्कृति को दिलाई पहचान

झारखंड खेल
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पूर्वी सिंहभूम। जनजातीय संस्कृति और पहचान को संरक्षण और प्रोत्साहन देने की अपनी पहल टाटा स्टील फाउंडेशन कर रहा है। इसके तहत भूमिज और संथाल जनजातियों द्वारा फसल कटाई के मौसम के बाद खेले जाने वाले जमीनी स्तर के खेलों को सक्रिय और पहचान दिलाने का प्रयास कर रहा है। इस क्रम में काटी के लिए भी पहल किया जा रहा है।

फाउंडेशन हर साल जनवरी से मार्च तक खेल को प्रोत्साहन देने और आदिवासी संस्कृति के खेलों के प्रति झुकाव की रक्षा के लिए झारखंड और ओडिशा में लघु स्तर के लीग का आयोजन करता रहा है।

पूर्वी सिंहभूम के पोटका ब्लॉक के रहनेवाले भूषण सरदार एक काटी विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने कई वर्षों तक इस खेल को सक्रिय रूप से खेला है। अब एक प्रशिक्षक की भूमिका निभा रहें हैं। भूषण बताते हैं, ‘मैंने अपना पूरा बचपन काटी खेलने के साथ बिताया था। हालांकि, लगभग 30 साल पहले एक ऐसा भी दौर था जब हमारे समुदाय के बच्चों ने काटी जैसे खेल को खेलना बंद कर दिया था। जब से फाउंडेशन ने इन लीग और कक्षाओं की शुरुआत की है, मैंने देखा है कि बच्चों ने एक बार फिर काटी खेलना शुरू कर दिया है।‘

वह अब पोटका के बच्चों और किशोरों को इस खेल में प्रशिक्षित करते हैं। यह एक समुदाय आधारित खेल है और इन बच्चों को प्रदर्शनी मैच खेलने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है जहां स्थानीय आदिवासी समुदायों के सदस्य एकजुट होते हैं और काटी का आनंद लेते हैं। इसने इन समुदायों के भीतर मजबूत संबंध बनाने में मदद की है और साथ ही उनके जीवन जीने के तरीके और संस्कृति को संरक्षित किया है।

भूषण कहते हैं, ‘अगर हम बच्चों को ये खेल नहीं सिखाते हैं, तो एक बार फिर इस खेल का अस्तित्व मिट जाएगा। काटी जैसे खेल हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए और इसे आगे बढ़ाना चाहिए। टाटा स्टील फाउंडेशन के प्रयास से, हम इस खेल को पुनर्जीवित करने में सक्षम थे। अब हमें इसे फिर जीवित रखने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करना चाहिए।‘

फाउंडेशन ने अकादमियों की स्थापना की है जहां बच्चे और वयस्क दोनों खेल सकते हैं। झारखंड और ओडिशा में अब प्रत्येक राज्य में लगभग आठ केंद्र हैं। काटी के अलावा फाउंडेशन सेक्कोर, चूर, बहूचोर और रामडेल सहित अन्य खेलों को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रहा है।