- हरा चारा फसल उत्पादन पर किसानों का प्रशिक्षण आयोजित
रांची। बीएयू के निदेशालय अनुसंधान के अधीन संचालित आईसीएआर-अखिल भारतीय समन्वित हरा चारा फसल परियोजना केंद्र ने किसानों के लिए एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया। जनजातीय उपयोजना अधीन इस कार्यक्रम में चान्हो प्रखंड के लुन्डरी गांव के 60 से अधिक आदिवासी किसानों ने भाग लिया।
कार्यक्रम में परियोजना प्रभारी डॉ योगेन्द्र प्रसाद ने मवेशियों को स्वस्थ रखने, दुग्ध की गुणवत्ता एवं दुग्ध उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी में हरा चारा फसल का महत्व एवं उत्पादन तकनीक पर विस्तार से जानकारी दी। बताया कि हरे चारे में पशु स्वास्थ्य के लिए जरूरी विटामिन, प्रोटीन एवं खनिज लवण प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है।
डॉ प्रसाद ने कहा कि झारखंड में हरे चारे की काफी कमी है, खासकर अभी के सुखाड़ में पशुओं के आहार के लिए हरे चारा फसल उत्पादन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पशु आहार में हरा चारा को शामिल कर दुधारू पशुओं से किसान बेहतर लाभ तथा हरा चारा फसल को बेचकर भी किसान दोहरा लाभ ले सकते है।
शस्य वैज्ञानिक डॉ वीरेंद्र कुमार ने मवेशियों को सालोंभर हरा चारा की उपलब्धता के लिए बहुवार्षिक चारा फसलों में नेपियर, गिन्निया, दिनानाथ घास, सदाबहार घास, स्टाईलों, मार्मेल घास, सेटारिया,चारा बादाम एवं पारा घास की अहम भूमिका की जानकारी दी। बहुवार्षिक फसल के साथ मौसमी चारा में ज्वार, मकई, जई, बरसीम एवं राजमूंग के उत्तम प्रभेद एवं शस्य तकनीक को अपनाकर हरा चारा वर्षभर प्राप्त करने की सलाह दी।
शस्य वैज्ञानिक डॉ नर्गिस कुमारी ने किसानों को प्रति गाय/मवेशी 30 किलोग्राम प्रति दिन उपयोगिता के हिसाब से सही समय पर हरा चारा फसलों की बुआई करने की सलाह दी।
पौधा प्रजनक डॉ कमलेश्वर कुमार ने वार्षिक/मौसमी दलहनी व गैर दलहनी हरे चारे का योजनाबद्ध शस्य तकनीक का पालन करते हुए मध्यम खेतों से सालों भर हरा चारा उत्पादन करने की सलाह दी। उन्होंने किसानों को आगामी रबी मौसम में चारा फसल के साथ चना फसल की खेती तकनीक को अपनाने का परामर्श दिया।
स्वागत में गांव की मुखिया नीलम उरांव ने मवेशियों को हरा चारा खिलाकर कम लागत में अधिक लाभ लेने की सलाह दी। किसान/पशुपालकों अपनी जरूरत के मुताबिक हरा चारा फसल उत्पादन को प्राथमिकता देने पर जोर दिया।