रांची। झारखंड में हेमंत सरकार अभी एक्शन में है। हाल में राज्य के कर्मियों को पुरानी पेंशन योजना लागू होने के बाद एक और नई खुशखबरी देने की तैयारी सरकार कर रही है।
जी हां ! लगभग दो लाख राज्यकर्मियों के लिए कैश लेस स्वास्थ्य बीमा करने की कवायद शुरू हुई है़। विधानसभा की प्रत्यायुक्त समिति की पहल के बाद इस दिशा में स्वास्थ्य विभाग ने प्रक्रिया आगे बढ़ायी है़।
25 अक्तूबर 2014 में राज्य सरकार ने राज्यकर्मियों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ देने का संकल्प जारी किया था। पिछले 22 वर्षों से सरकार का यह संकल्प लागू नहीं हो पाया है।
इधर माले विधायक विनोद सिंह के सभापतित्व वाली प्रत्यायुक्त समिति ने इस मामले में पहल की। समिति का कहना था कि 22 वर्षों से एक संकल्प जस का तस पड़ा है। सरकार तय करे कि इसे लागू करना है या नहीं।
स्वास्थ्य विभाग का कहना था कि कई कर्मचारी संगठन इसे लेकर सहमत नहीं हैं। इसके बाद समिति ने निर्देश दिया कि नये सिरे से कर्मचारी संगठनों से बात की जाये। बुधवार को प्रत्यायुक्त समिति की बैठक हुई।
सभापति विनोद सिंह को स्वास्थ्य विभाग ने कर्मचारी संगठनों से हुई वार्ता को लेकर रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग सारे संगठन स्वास्थ्य भत्ता की जगह बीमा योजना को लेकर सहमत हैं।
समिति की बैठक में कार्मिक विभाग के संयुक्त सचिव भी मौजूद थे। समिति ने स्वास्थ्य बीमा योजना लागू करने की दिशा में आगे की कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया है।
यहां बता दें कि फिलहाल राज्य के कर्मियों को एक हजार के हिसाब से स्वास्थ्य भत्ता देय है़। कैश लेस स्वास्थ्य बीमा के बाद यह सुविधा बंद हो जाएगी। वर्तमान समय में राज्यकर्मियों की घटना-दुर्घटना में घायल होने पर दावेदारी के हिसाब से खर्च का भुगतान होता है़।
एम्स में इलाज की दर से सरकार भुगतान करती है़। निजी अस्पतालों में इलाज कराने के बाद कई बार कर्मचारियों को ज्यादा खर्च करना पड़ा है़। नयी योजना अगर लागू होती है, तो कर्मी निजी अस्पतालों में इलाज करा पायेंगे।
स्वास्थ्य विभाग इस योजना को लेकर मापदंड तय करेगा, जिसके आधार पर एजेंसी के चयन की प्रक्रिया होगी। विभागीय मापदंड के आधार पर सरकार राज्यकर्मियों के लिए अस्पतालों के नाम का पैनल भी तैयार कर सकती है।
राज्य सरकार ने 2014 में एक संकल्प जारी कर इस योजना को लागू करने की बात कही थी। यह मामला लंबे समय से लंबित पड़ा हुआ है़। समिति पर राज्य में नियम-परिनियम को लागू कराने की जवाबदेही है़। यह मामला जब समिति में आया, तो उस दिशा में पहल की गयी। राज्य के आला अधिकारियों को पूरे मामले में स्थिति स्पष्ट करते हुए आगे की कार्रवाई करने को कहा गया है।