रांची। झारखंड यूपीए गठबंधन ने राज्यपाल रमेश बैस पर बड़ा हमला किया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लेकर कई सवाल दागे हैं। यूपीए गठबंधन की ओर से मंत्री चंपाई सोरेन सहित अन्य ने 28 अगस्त को प्रेस से बात की। इस मौके पर गठबंधन दलों के मंत्री और विधायक मौजूद थे।
यूपीए ने कहा कि Representation of the People Act 1951, Section 9 (A) के अंतर्गत हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने की अटकले लगायी जा रही है। ऐसे मामले में आज तक कभी भी किसी की सदस्यता रद्द नहीं हुई तो फिर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर ऐसा बर्ताव क्यूं?
क्या कारण है कि चुनाव आयोग के पत्र पर राज्यपाल ने अभी तक अपना मंतव्य नहीं दिया है? ऐसी क्या कानूनी सलाह है, जो वे नहीं ले पा रहे हैं? यह तो सरासर लोकतंत्र और जनता का अपमान है।
क्या समय काटकर राजभवन विधायकों की खरीद-फरोख्त को हवा देना चाहते हैं? हमने महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में भी राज्यपाल के पद की गरिमा को गिरते हुए देखा है। यह दुर्भाग्य पूर्ण है। हम किसी की अनुकंपा पर सरकार में नहीं आये हैं।
बड़ा दुखद है कि राज्य में एक बाहरी गैंग काम कर रहा है। नीचे से ऊपर तक बैठे इस गैंग के सभी लोगों में एक समानता है। इनके मकसद में झारखंड और झारखंड के लोगों के प्रति इनके मन में थोड़ा सा भी स्नेह नहीं है।
भाजपा एवं इनकी अनुषंगी संस्थाओं को क्या नहीं पच रहा है? एक आदिवासी राज्य का मुख्यमंत्री बना हुआ है। वह इन्हें नहीं पच रहा है या हम भारत सरकार से झारखंड के हक के लिए लड़ रहे हैं। वह इन्हें नहीं पच रहा है। झारखंडी अगर किसी के सम्मान में झुकना जानता है तो अपने हक के लिए दूसरों को झुकाना भी जानता है।
अराजक स्थिति की ओर राज्य को धकेलने से बचें। आदिवासी-दलित के अधिकार के संरक्षण का जिम्मा राज्यपाल के कंधों पर संविधान ने दिया है।