माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर चर्चा, चुप्‍पी तोड़ खुलकर बात करने का आह्वान

झारखंड
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  • यूनिसेफ ने राउंड टेबल कांफ्रेंस का किया आयोजन

रांची। यूनिसेफ झारखंड ने ‘स्वनीति इनीसिएटीव’ के सहयोग से माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर ‘एमएचएम को जानिए चुप्पी तोड़िए’ विषय पर एक राउंड टेबल कांफ्रेंस का आयोजन 4 अगस्‍त को किया। झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महतो ने मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। विभिन्न विधानसभा क्षेत्र के लगभग 10 विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह, उमा शंकर अकेला, अमित कुमार मंडल, पुष्पा देवी, नेहा तिर्की, किशुन कुमार दास, नारायण दास, दीपक बिरुआ, रामचंद्र सिंह और विनोद कुमार सिंह ने भी अपने विचार प्रकट किए।

इनके अलावा यूनिसेफ झारखंड की प्रमुख डॉ कनिनिका मित्रा, यूनिसेफ की कम्यूनिकेशन, एडवोकेसी एवं पार्टनरशिप ऑफिसर, आस्था अलंग, जल एवं स्वच्छता विशेषज्ञ कुमार प्रेमचंद, जल एवं स्वच्छता अधिकारी लक्ष्मी सक्सेना और स्वनीति इनिशिएटिव की ट्रस्टी उमा भट्टाचार्जी ने भी सम्मेलन में हिस्सा लिया।

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘हमें महिलाओं के माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के बारे में बात करने की जरूरत है। हैरानी की बात यह है कि अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं के बीच, माहवारी स्वास्थ्य के बारे में ज्यादा बात नहीं की जाती है। अब वक्त आ गया है कि इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ी जाए। बात किया जाए। हालांकि, माहवारी स्वच्छता को लेकर लोगों के दृष्टिकोण में सुधार हुआ है, लेकिन माहवारी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता को सुनिश्चित करने में पुरुषों की भूमिका को और बढ़ाने की जरूरत है। पुरूष, माहवारी स्वास्थ्य को घरों, समुदायों, स्कूलों एवं कार्यस्थलों पर प्रभावी ढंग से सुनिश्चित करने में महिलाओं का सहयोग कर सकते हैं। पुरुष अपनी विभिन्न भूमिकाओं जैसे कि पति, पिता, भाई, छात्र, साथी, शिक्षक, नियोक्ता एवं नीति निर्माता के रूप में माहवारी स्वच्छता को लेकर महिलाओं के अनुभवों को प्रभावित करते हैं।’

अध्‍यक्ष ने कहा, ‘सुरक्षित माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के लिए जल एवं स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच अत्यंत महत्वपूर्ण है। झारखंड में आदिवासी बहुल दूर-दराज के क्षेत्रों में बुनियादी स्वच्छता एवं पानी के बुनियादी ढांचे को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप असुरक्षित माहवारी स्वच्छता की समस्या उत्पन्न होती है। इस प्रकार, हमें माहवारी स्वास्थ्य के मुद्दे को बुनियादी ढांचे तथा पानी एवं स्वच्छता की उपलब्धता के दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है।‘

डॉ कनिनिका मित्रा ने कहा, ‘माहवारी पूरी तरह से एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन अभी भी यह एक सामाजिक वर्जना बनी हुई है। माहवारी से जुड़े मिथकों का प्रभाव इसके प्रबंधन पर भी पड़ता है, जिसके कारण लैंगिक समानता में बाधा उत्पन्न होती है। कई लड़कियों तथा महिलाओं को उनके पीरियड्स के दौरान सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया जाता है। उनकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है और उन्हें अशुद्ध समझा जाता है। इसका सीधा असर लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। माहवारी स्वच्छता एक ऐसा विषय बना हुआ है, जिस पर सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि कई महिलाएं भी चर्चा करने में असहज महसूस करती हैं। इसलिए हमें इन वर्जनाओं को तोड़ना चाहिए और माहवारी स्वच्छता की चर्चा को बढ़ावा देना चाहिए।’

इस दौरान यूनिसेफ झारखंड के जल एवं स्वच्छता विशेषज्ञ कुमार प्रेमचंद ने माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर एक क्विज ‘माहवारी स्वच्छता प्रबंधन को जानिए चुप्पी तोड़िए’ का भी संचालन किया। यूनिसेफ झारखंड की जल एवं स्वच्छता विशेषज्ञ लक्ष्मी सक्सेना ने माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर एक तकनीकी प्रस्तुति दी।