बारिश की कमी : मंत्री ने बीएयू से आकस्मिक कृषि योजना पर मांगा तकनीकी सहयोग

झारखंड
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  • एक्सटेंशन एजुकेशन काउंसिल की बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा

रांची। कृषि विकास में कृषि प्रसार तंत्रों की महती भूमिका रही है। कृषि एवं किसान हित में कृषि वैज्ञानिकों को कृषि विश्वविद्यालय एवं संबद्ध संस्थानों से अधिक जुड़ाव होना जरूरी है। आज पूरे देश का कृषि प्रसार तंत्रों विशेषकर कृषि विज्ञान केन्द्रों से सीधा लगाव एवं अपेक्षाएं हैं। कृषि विश्वविद्यालय को वैज्ञानिकों से काफी उम्मीदें हैं। काउंसिल में गत वर्ष की कार्य योजनाओं की कार्रवाई प्रतिवेदन पर गहन समीक्षा होनी चाहिए। 5 वर्षों से फार्मर्स फर्स्ट प्रोग्राम से दो गांवों के किसानों को काफी लाभ हुआ है। इस प्रोग्राम के तकनीकी हस्तांतरण में अन्य गांवों के जनजातीय किसानों को शामिल किया जाय। इस कार्यक्रम में वैज्ञानिकों की भागीदारी को बढ़ाना होगा। उक्त बातें कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने 36वीं एक्सटेंशन एजुकेशन काउंसिल बैठक में कही।

इससे पहले काउंसिल की बैठक का कुलपति ने दीप प्रज्जवित कर उद्घाटन किया। प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा प्रकाशित हाइलाइट्स ऑफ एक्सटेंशन एचीवमेंट 2021-22 पुस्तिका का विमोचन किया। मौके पर कुलपति एवं विशिष्ट अतिथियों द्वारा उत्कृष्ट कृषि कार्यों के लिए किसानों में प्रदीप कुजूर, राजेश महतो, पूनम तिर्की एवं बलराम महतो को सम्मानित किया गया।

कुलपति ने कहा कि प्रत्येक केवीके द्वारा चालू खरीफ मौसम में उन्नत धान नर्सरी स्थापित कर धान के बिचड़ों को मुहैया करने का प्रयास किया जाय। राज्य में वर्षापात में कमी और विषम मौसम के प्रति राज्य सरकार काफी गंभीर एवं किसानों की संवेदनाओं के प्रति चिंतित है। कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय से आकस्मिक कृषि योजना के संदर्भ तकनीकी सहयोग एवं मार्गदर्शन की आवश्यकता जताई है। इस दिशा में त्वरित कदम के लिए कृषि विश्वविद्यालय के सभी वैज्ञानिकों को तैयार एवं तत्पर रहने की आवश्यकता है।

बैठक में आईसीएआर-अटारी (पटना) के निदेशक डॉ अंजनी कुमार ने हर एक कृषि विज्ञान केन्द्रों में स्थित फार्म के एक-एक एकड़ भूमि में जैविक कृषि एवं प्राकृतिक कृषि मॉडल का प्रदर्शन अनिवार्य बताया। उन्होंने केन्द्रों को राज्य सरकार, नाबार्ड, एनएचएम एवं आरकेवीआई की योजनाओं में कन्वर्जेन्स और जिला प्रशासन के सहयोग से जिले में एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल स्थापित करने तथा अमृत सरोवर योजना निर्माण से जुड़ने पर बल दिया।

मौके पर काउंसिल के एक्सपर्ट निदेशक प्रसार शिक्षा (रानी लक्ष्मी बाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी) डॉ एसएस सिंह ने कृषि विज्ञान केन्द्रों के बीच सफल तकनीकी को बढ़ावा देने में सशक्त कम्युनिकेशन पर बल दिया। उन्होंने झारखंड कृषि के परिवेश में केन्द्रों को वर्षा जल प्रबंधन व अम्लीय भूमि प्रबंधन तकनीकी, उपराऊ भूमि में धान की जगह अन्य कम अवधि व कम पानी वाली फसलों की खेती, क्षमतावान फसल एवं फल की खेती व निचली भूमि के धान परती भूमि में रबी फसलों की को बढ़ावा और तकनीकी प्रत्यक्षण को विशेष प्राथमिकता देने की बात कही।

एक्सपर्ट विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापक (मत्स्य प्रसार, वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ एनिमल एंड फिशरीज साइंस, कोलकाता) डॉ एसएस दाना ने स्थानीय परिवेश एवं मांग के उपयुक्त तकनीकों के अंगीकरण में उत्पादन, आय सृजन एवं सामाजिक आर्थिक आवश्यकता पर ध्यान देने की बात कही। उन्होंने एकीकृत कृषि तकनीकी में कृषक समुदाय के हित में तकनीकों अवयवों के अदला-बदली पर बल दिया।

पशुपालन निदेशक डॉ शशि प्रकाश झा, हार्प पलांडू के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एके सिंह, डीन एग्रीकल्चर डॉ एसके पाल, डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद, डीन फॉरेस्ट्री डॉ एमएस मल्लिक ने भी अपने विचारों को रखा। स्वागत में निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ जगरनाथ उरांव ने वर्ष 2021–22 में कृषि प्रसार कार्यक्रमों की उपलब्धियों, अपर निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ एस कर्माकार ने 35वीं एक्सटेंशन एजुकेशन काउंसिल की कार्रवाई का प्रतिवेदन दिया। केवीके चतरा के प्रधान डॉ रंजय कुमार सिंह ने धन्‍यवाद किया।

24 जिलों में कार्यरत केवीके की वर्ष 2021–22 में जिलास्तरीय कृषि प्रसार कार्यक्रमों की उपलब्धियों को प्रस्तुत किया। काउंसिल की तकनीकी सत्र देर शाम तक चली। तकनीकी सत्रों में प्रसार उपलब्धियों की समीक्षा एवं भावी प्रसार रणनीति पर अनुमादन दिया गया। बैठक का संचालन बिरसा हरियाली रेडियो की समन्यवयक शशि सिंह ने कि‍या।

मौके पर डॉ एमएस यादव, डॉ एके सिंह, डॉ डीके शाही, डॉ पीके सिंह, डॉ सोहन राम, डॉ रीशम, डॉ बीके अग्रवाल, बीएयू मुख्यालय के वैज्ञानिकों सहित बीएयू द्वारा संचालित 16 केवीके और 8 गैर बीएयू संचालित केवीके प्रधान भी मौजूद थे।