पटना। बड़ी खबर बिहार से है। बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन गुरुवार को सदन में CAG का रिपोर्ट रखा गया।
डिप्टी सीएम तार किशोर प्रसाद ने सदन में रिपोर्ट पेश किया। CAG की रिपोर्ट में नीतीश सरकार को लेकर बड़ा खुलासा किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2021 तक नीतीश सरकार ने 92 हजार 687 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा ही नहीं किया है। यही नहीं, 2004-05 के बाद पहली बार 11,325 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व का घाटा हुआ है।
सीधे शब्दों में कह सकते हैं कि राबड़ी देवी के शासन काल के बाद नीतीश राज में पहली बार इतना बड़ा राजकोषीय घाटा का सामना करना पड़ा है।
CAG की रिपोर्ट में बताया गया है कि ₹29827 करोड़ का राजकोषीय घाटा दर्ज किया गया है। यह पिछले साल की तुलना में ₹15,103 करोड़ बढ़ गया है। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान राज्य को 2004-05 के बाद दूसरी बार ₹11,325 करोड़ से अधिक के राजस्व घाटा का सामना करना पड़ा है।
CAG की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार का प्राथमिक घाटा वर्ष 2019-20 में ₹3,733 करोड़ से बढ़कर 2020-21 में ₹17,343 करोड़ हो गया। यह पिछले वर्ष की तुलना में साल 2020-21 में राजस्व प्राप्ति में 3.17 फीसदी की वृद्धि हुई है।
इस प्रकार पिछले साल की तुलना में कुल ₹3,936 करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं, राजस्व व्यय में 10.69 फीसदी यानी ₹13,476 करोड़ की वृद्धि हुई है। 2020-21 में पूंजीगत व्यय पिछले वर्ष की तुलना में ₹ 5,905 करोड़ ( 47.99 फीसदी ) की वृद्धि हुई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष की तुलना में सार्वजनिक ऋण में ₹ 29,035 करोड़ की वृद्धि हुई। CAG के अनुसार, बकाया कर्ज बजट के आकार के करीब पहुंच रहा है, क्योंकि 2020-21 में राज्य सरकार का कुल खर्च ₹165696 करोड़ था, जबकि कर्ज ₹ 177214.85 करोड़। CAG की रिपोर्ट के अनुसार, 31 मार्च 2021 तक ₹92,687.31 करोड़ के उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित थे।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अधिक मात्रा में उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित रहना राशि के दुरुपयोग और धोखाधड़ी के जोखिम को बढ़ाता है। अगर सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो CAG ने अपनी रिपोर्ट में गड़बड़ी की ओर इशारा किया है।
CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2021 तक डीसी बिल प्रस्तुत नहीं होने के कारण कुल 26,504 एसी विपत्र, जिसकी राशि ₹13459.71 करोड़ लंबित थे। CAG का कहना है कि अग्रिम राशि का समायोजन नहीं होना, धोखाधड़ी हो सकता है।