स्‍वाईन फीवर ने बढ़ाई सूकर पालकों की टेंशन, करें ये जरूरी उपाय

कृषि झारखंड
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रांची। स्वाईन फीवर एक महामारी रोग है। यह सूकर में पाया जाता है। इस बीमारी का ज्यादातर प्रकोप गर्मी और बरसात के मौसम में होता है। सूकरों में स्‍वाईन फीवर के मामले बढ़ गये हैं। इसके कारण सूकर पालकों की टेंशन भी बढ़ गई है। इससे बचने के उपाय वैज्ञानिकों ने बताया है।

बीएयू के पशु चिकित्सक (सूकर पालन) डॉ रविन्द्र कुमार बताते है कि प्रदेश के सूकरों की संख्या के मामले में पूरे देश में झारखंड का दूसरा स्थान है। पशु जनगणना 2019 के मुताबिक प्रदेश में सूकरों की संख्या 12.8 लाख है। यह राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी लोगों की आजीविका एवं पोषण सुरक्षा का मुख्य स्रोत है।

 डॉ कुमार ने बताया कि प्रदेश में गर्मी और बरसात की शुरुआत से इस महामारी का प्रकोप दि‍खने लगा है। यह खतरनाक बीमारी तेजी से एक सूकर से दूसरे में फैलती है। इस बीमारी से सूकरों में मृत्य दर 90 प्रतिशत से अधिक पाई जाती है। ज्यादातर सूकर पालक इसके लक्षणों को नहीं समझ पाते। अचानक सूकरों की मौत हो जाती है।

सूकरों में तेज बुखार, शारीरिक तापमान 105 से 106 डिग्री फारेनहाइट, खाना नहीं खाना, शरीर में चकते एवं कमजोरी का होना स्वाईन फीवर बीमारी का प्रमुख लक्षण है। यह एक विषाणु जनित रोग है, जो कभी भी हो सकता है। इस बीमारी में कोई भी दवा बहुत कम कारगर होती है। पशु चिकित्सक की सलाह से बुखार कम करने के साथ एंटीबायटिक और विटामिन की दवा दी जा सकती है।

इस रोग से सूकरपालकों को काफी नुकसान होता है। इससे बचाव का सबसे बेहतर विकल्प उचित समय पर सूकरों का टीकाकरण है। इससे बचाव के लिए पहला टीका सूकरों के दो माह के उम्र में और प्रत्येक वर्ष एक बार टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए।