रांची। बीआईटी मेसरा की जमीन को लेकर विवाद लगातार उठ रहे हैं। इसे सुलझाने के लिए विधानसभा की विशेष समिति का गठन किया गया। इसकी बैठक सभापति स्टीफन मरांडी की अध्यक्षता में हुई। इसमें समिति ने बीआईटी मेसरा के अधिकारियों से अधिग्रहित जमीन के दस्तावेज मांगे। उनसे पूछा कि कब और कितनी जमीन संस्थान मिली थी। बीआईटी के अधिकारी ने कानूनी प्रक्रिया के तहत जमीन अधिग्रहित होने की बात कही।
समिति ने यह जानकारी मांगी
समिति ने यह भी जानने की कोशिश की कि बीआईटी को वन क्षेत्र की जमीन कैसे मिली। किसने इसे दी। इस मामले में समिति वन विभाग से जवाब मांगेगी। बैठक में विधायक लोबिन हेम्ब्रम के अलावा दो अन्य विधायक सदस्य शामिल हुए। विधानसभा में हुई इस बैठक में बीआईटी मेसरा के अधिकारी, वन विभाग और राजस्व निबंधन और भूमि सुधार विभाग के अधिकारी शामिल हुए। समिति की बैठक 27 जून को फिर होगी।
बीआईटी और भूमि सुधार विभाग से इसपर मांगा जवाब
बीआईटी मेसरा द्वारा अधिग्रहित भूमि में सीएनटी-एसपीटी एक्ट का पालन किया गया है या नहीं
सीएनटी की जमीन किन-किन संस्थाओं के लिए अधिकृत किए जाने का प्रावधान है
जो भूमि वर्ष 1948 में बुधिया परिवार द्वारा लीज डीड के माध्यम से 323.50 एकड़ हिंदुस्तान चैरिटी ट्रस्ट को प्राप्त है, फिर वही भूमि वही प्लॉट रकबा 323.50 एकड़ जमीन जो वर्ष 1952 में बिहार सरकार के द्वारा दिनांक 14.5.1952 को गजट के द्वारा दिखाया गया है, वही खाता प्लॉट, रकबा 309.38 एकड़ की जमीन जो 1955 में बिहार सरकार द्वारा प्लॉट, रकबा 309.38 एकड़ की जमीन गजट में वन भूमि दिखाया गया है तो इसका क्या औचित्य है
वर्ष 1988- 89 में बीआईटी मेसरा के नाम से दाखिल खारिज किए जाने का आधार क्या है?
वर्ष 1952 का गजट संख्या 20 दिनांक 21.5.1958 अधिसूचना संख्या बीएल-1RAN3/58-5432 एवं 5-5-1958 में खाता संख्या एवं प्लॉट संख्या का विवरण नहीं है अर्थात गजट अवैध है
वर्ष 1964-65 का गजट संख्या 23 दिनांक 03.06.1964 अधिसूचना संख्या RAL-84-61-62-1312 दिनांक 26.04.1964 से खाता संख्या एवं प्लॉट संख्या का विवरण नहीं है, इसे किस उद्देश्य से पारित किया गया है
प्रकाशित गजट में कोल्हान सिंहभूम एवं हेहल रांची दर्शाया गया है, इसका औचित्य क्या है?
गांव की जमीन के अधिग्रहण का दावा
दावा किया जा रहा है कि बीआईटी मेसरा प्रबंधन ने मेसरा, पंचोली और नवागांव की जमीन अधिग्रहित किया है। इसमें कहा गया है कि 1964-65 में मेसरा, रुदिया और होम्ब्रई मौजा के तीन गांवों की 456.62 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी। इसमें बीआईटी मेसरा प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा आवश्यकतानुसार प्रशासनिक भवन, शिक्षण भवन, संस्थान का छात्रावास, कर्मचारी आवास आदि बनाया गया। खाली भूमि पर रैयत लोग बरसों से घर मकान बनाकर निवास के साथ-साथ खेती-बाड़ी करते आ रहे हैं। अब बीआईटी मेसरा प्रौद्योगिकी संस्थान इन जमीनों को खाली कराकर भवन बनाना चाह रहा है।
मानसून सत्र में उठा था मामला
यह मामला विधायक मथुरा महतो ने पिछले मानसून सत्र के दौरान विधानसभा में उठाया गया था। इधर, रैयतों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण करते समय भू अर्जन कार्यालय के अधिसूचना में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि 12 वर्षों के अंदर जिस प्रयोजन के लिए भूमि अधिग्रहण की गई है वो पूरा नहीं हो पाता है तो इसे रैयतों को वापस कर दी जायेगी।