रांची। झारखंड का राजनीति समीकरण तेजी से बदल रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी डगमगाती नजर आ रही है। कुर्सी बचाने के लिए वे विशेषज्ञों से लगातार राय ले रहे हैं। वह सुप्रीम कोर्ट की शरण में भी गये हैं। इस बीच उनके उतराधिकारी को लेकर भी पार्टी में मंथन चल रहा है। वर्तमान स्थिति में गुरुजी शिबू सोरेन के नाम पर सहमति बनती दिख रही है।
स्टे लेने के प्रयास में हेमंत
चुनाव आयोग ने खनन लीज मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस थमाया है। उसका जवाब देने की मंगलवार यानी 10 मई अंतिम तारीख थी। जवाब देने के लिए हेमंत सोरेन ने आयोग से समय मांगा था। आयोग ने 10 दिन का समय दिया था। इसकी समय सीमा भी आज खत्म हो रही है। उनकी सदस्यता खत्म करने के मामले में आयोग निर्णय ले सकता है। हालांकि पहले ही हेमंत सोरेन सुप्रीम कोर्ट का रूख कर चुके हैं। वहां से स्टे लेने का प्रयास करेंगे।
बसंत भी हैं मुश्किल में
दुमका विधायक बसंत सोरेन को भी नोटिस भेजा गया है। उनके खनन कंपनी में पार्टनर होने को लेकर जवाब मांगा गया है। उनकी विधायकी पर भी खतरा है। इस कंपनी पर सरकार का आठ करोड़ रुपये बकाया है। ऐसे में हेमंत सोरेन की विधायकी जाने के बाद बसंत सोरेन का भी सीएम बनना मुश्किल है।
सीता पर दांव मुश्किल
जानकारों का कहना है कि विधायकी खत्म होने पर हेमंत सोरेन का सीता सोरेन पर दांव लगाना मुश्किल है। सीता सोरेन के बगावती तेवर को वह देख रहे हैं। उनकी बेटियों ने दुर्गा सोरेन सेना का गठन कर अलग राह पकड़ ली है। सीएम की कुर्सी मिलने के बाद सीता सोरेन अलग राह पकड़ सकती हैं। कई तरह के अलग फैसले ले सकती हैं। यह हेमंत सोरेन को नागवार गुजरेगा। कई मामले में सीता सोरेन के पीछे भी जांच एजेंसी लगी हुई है।
पार्टी में बगावत का खतरा
झामुमो नेताओं का कहना है कि हेमंत सोरेन इस बात से वाकिफ हैं सीएम की बागडोर किसी अन्य के हाथ में जाने पर पार्टी में भी बगावत हो सकती है। लोबिन हेंब्रम सहित कई नेता पहले ही बगावत का बिगुल फूंक चुके हैं। ऐसे में वह खतरा नहीं मोल लेना चाहेंगे। इस मामले को लेकर लगातार पार्टी के अंदर चर्चा हो रही है।
एक तीर से कई निशाना
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाकर हेमंत एक तीर से कई निशाना साध सकते हैं। शिबू के नाम पर पार्टी में आसानी से सहमति बन जाएगी। सत्ता की बागडोर सोरेन परिवार के हाथ में ही रहेगी। हेमंत की बात को शिबू सोरेन नहीं टालेंगे। बागवती तेवर दिखा रहे पार्टी के विधायक भी शांत हो जाएंगे। कांग्रेस के बिदके विधायक भी साथ आ जाएंगे।
राज्यसभा चुनाव का दबाव
आने वाले दिनों में झारखंड में दो सीटों पर राज्यसभा का चुनाव भी होना है। ऐसे में हेमंत सोरेन पर दबाव है। कांग्रेस सीट पर अपना दावा ठोक चुकी है। ऐसे में विधायकों की अलग राग अलापने पर राज्यसभा सीट जीतने पर संकट आ सकता है। ऐसे में सहयोगी दल भी नहीं चाहेंगे हैं कि ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो।
छह माह रह सकते हैं सीएम
बिना विधायक बने भी शिबू सोरेन छह माह मुख्यमंत्री रह सकते हैं। उन्हें छह माह के भीतर विधायक बनकर विधानसभा पहुंचना होगा। अभी मांडर विधानसभा में उप चुनाव होना है। इस सीट पर बंधु तिर्की जीते थे। आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल होने पर उन्हें विधायकी गंवानी पड़ी। वह अभी कांग्रेस में हैं। सरकार पर संकट आने पर उसे बचाने के लिए कांग्रेस यह सीट झामुमो को दे सकती है। यहां से शिबू सोरेन को उम्मीदवार बनाया जा सकता है।
गठबंधन दल नहीं हारा उप चुनाव
सरकार बनने के बाद राज्य में कई उप चुनाव हुए। इसमें गठबंधन दल के प्रत्याशियों ने सभी पर जीत हासिल की। दुमका, मधुपुर, बेरमो तीनों उप चुनाव में भाजपा की हार हुई। ऐसे में उम्मीदवार बनने पर शिबू सोरेन के साथ तमाड़ वाला वाक्या दोहराये जाने की संभावना ही कम है। यहां से शिबू सोरेन की जीत की पूरी संभावना है। फिर, सरकार पर कोई आंच नहीं आएगी। वह कार्यकाल पूरा कर लेगी।