शांति और सहिष्णुता के पर्याय महात्मा बुद्ध

देश विचार / फीचर
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जी किशन रेड्डी

गौतम बुद्ध किस महापुरुष का नाम है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनका जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ। उनको ज्ञान बोध भी पूर्णिमा के दिन हुआ और उनका महापरिनिर्वाण भी पूर्णिमा के ही दिन हुआ। ऐसा अद्भुत संयोग किसी महामानव के ही जीवन में आता है। भारत जैसे धार्मिक देश में पूर्णिमा का दिन आस्था का प्रतीक है। विश्वास का प्रतीक है। शीतलता का प्रतीक है। शांति का प्रतीक है और प्रकाश का प्रतीक है।

मानव के मन में प्रश्नों का जन्म होना स्वभाविक है। सामान्य लोग उन प्रश्नों का अपने अंदर ही अंत कर देते हैं और कुछ विशेष लोग उन प्रश्नों के उत्तर के लिए ललाहित हो, सब कुछ त्याग कर उनकी खोज में निकल पड़ते हैं। वही लोग मानव से महामानव और महापुरुष बनते हैं। ऐसे ही कुछ प्रश्नों का जन्म राजकुमार सिद्धार्थ के मन में हुआ।

उनके परिवार के लोगों को किसी संत ने कहा कि राजकुमार सिद्धार्थ बड़ा होकर या तो यशस्वी राजा बनेगा या फिर बहुत बड़ा संत बनेगा। परिवार के लोग डर गए और उन्होंने उनको बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ रखा। लेकिन एक दिन वो घर से बाहर निकले और उन्होंने 3 दृश्य देखे। पहला- एक अत्यंत बीमार व्यक्ति, दूसरा- बहुत ही बूढ़ा व्यक्ति और तीसरा- एक मृत व्यक्ति। उनके मन में आया कि मैं बीमार हो जाऊंगा, मैं बूढ़ा हो जाऊंगा और मैं मार जाऊंगा। इन तीन प्रश्नों ने उन्हे बहुत विचलित कर दिया।

फिर वो राजपाट, राजमहल, पत्नी और परिवार को त्याग कर इन प्रश्नों की खोज में निकल पड़े। उन्होंने एक सन्यासी को देखा और मन ही मन सन्यास ग्रहण करने की ठान ली। बस वहीं से राजकुमार सिद्धार्थ की महात्मा बुद्ध बनने की यात्रा प्रारंभ होती है। महात्मा बुद्ध ने बिना अन्न, जल ग्रहण किए करीब 6 साल घोर तपस्या की, उसके बाद वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान बौध हुआ। एक ऐसा ज्ञान जो हजारों वर्षों से इस धरा को प्रकाशमान कर रहा है।

महात्मा बुद्ध इस धरती पर एक ऐसे महान आध्यात्मिक गुरु हुए हैं, जिन्होंने बौद्ध धर्म कि स्थापना कर दुनिया को शांति, करुणा और सहिष्णुता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। इसलिए आज विश्व के अनेक देश बौद्ध धर्म का अनुसरण कर रहे हैं। वर्तमान समय में जब विश्व अशान्ति, आतंकवाद, अनैतिकता और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से ग्रसित हैं तो भगवान गौतम बुद्ध का जीवन दर्शन हमें समाधान का मार्ग दे सकता है। उन्होंने मनुष्य को अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, धैर्य, संतोष और नैतिक मूल्‍यों पर आधारित जीवन जीने की प्रेरणा दी है। पंचशील का उनका सिद्धांत किसी भी मनुष्य के जीवन को सार्थक बना सकता है, जिसमें उन्होंने कहा हिंसा न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ न बोलना और नशा न करना शामिल हैं। इस बात पर उनका विशेष बल रहा कि जीवन में प्रकृति का सम्मान सर्वोपरि है।

नरेंद्र मोदी सरकार भगवान बुद्ध के उपदेशों, संदेशों और विचारों को दुनिया में जन-जन तक पहुँचाने के लिए संकल्पबद्ध है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में बुद्ध पूर्णिमा को राष्ट्रीय उत्सव के रूप मे मनाने का निर्णय किया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस उत्सव को बढ़ावा दिया।

उनके द्वारा दिया गया ज्ञान विश्व के लिए शांति और एकता की शक्ति बन सकता हैं। विगत वर्ष बुद्ध पूर्णिमा विश्व शांति और कोरोना महामारी से राहत के लिए समर्पित थी। दुनिया जब मुश्किल दौर से गुजर रही थी, उस समय भारत के साथ एकजुट होकर बोधगया-भारत, लुंबिनी-नेपाल, कैंडी-श्रीलंका, भूटान, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, मंगोलिया, रूस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और ताइवान के प्रमुख बौद्ध मंदिरों में विश्व शांति के लिए एक साथ प्रार्थनाएँ आयोजित की गई। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भगवान बुद्ध सार्वभौमिक हैं क्योंकि वो अपने भीतर से शरुआत करने के लिए कहते हैं। क्योंकि जब कोई व्यक्ति स्वयं प्रकाशित होता है, तो वह दुनिया को भी प्रकाश देता है। इसलिए बुद्ध दर्शन में ‘अप्प दीपो भव’ भारत के आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा है।

बौद्ध धर्म को दुनिया के चार बड़े धर्मों में से एक माना जाता है। दुनिया में लगभग 50 करोड़ से अधिक लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं और उनमें से 90% दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया में रहते हैं। इसके बाद भी, यह अनुमान है कि हर साल 0.005% से कम बौद्ध तीर्थयात्री यात्रा के लिए भारत आते हैं। चूंकी बौद्ध विरासत भारत में सर्वाधिक है, इसलिए भारत की आजादी के 75 वर्षों में हमारा संकल्प अधिकाधिक बौद्ध तीर्थ यात्रियों को भारत दर्शन कराना है और इस दिशा में भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय काम कर रहा है।

पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत बौद्ध सर्किट बनाया तथा बौद्ध सर्किट विकास के लिए 325.53 करोड़ रुपये की 5 परियोजनाओं को मंजूरी दी। जिसमें सांची-सतना-रीवा-मंदसौर-धार का विकास, श्रावस्ती-कुशीनगर और कपिलवस्तु का विकास,बोधगया में कन्वेंशन सेंटर का निर्माण, जूनागढ़-गिर सोमनाथ- भरूच- कच्छ- भावनगर- राजकोट- मेहसाणा का विकास तथा आंध्र प्रदेश के शालिहुंडम- थोटलाकोंडा- बाविकोंडा- बोज्जानकोंडा- अमरावती- अनुपु में बौद्ध सर्किट का विकास हुआ है। भगवान बुद्ध के जीवन का संबंध जिन राज्यों से रहा बौद्ध सर्किट में उन्हे जोड़ा गया है। जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात और आंध्र प्रदेश शामिल हैं। बौद्ध सर्किट विकास में कनेक्टिविटी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स, सांस्कृतिक अनुसंधान, विरासत और शिक्षा, जन जागरण, संचार और एक्सेस को शामिल किया है।

दुनिया भर से आने वाले बौद्ध भिक्षुओं और तीर्थ यात्रियों को यात्रा में आसानी हो इसके लिए भारत सरकार ने कुशीनगर, उत्तर प्रदेश में लगभग 260 करोड़ रुपये की लागत से अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया है। साथ ही बौद्ध सर्किट में आईआरसीटीसी द्वारा “बुद्ध पूर्णिमा एक्सप्रेस” स्पेशल ट्रेन भी शुरू की गई है।  पर्यटन मंत्रालय, विकास क्षमता बढ़ाने पर भी निरंतर कार्यरत है, इस दिशा में हमने थाई, जापानी, वियतनामी और चीनी भाषाओं में भाषाई पर्यटक सूत्रधार प्रशिक्षण को शामिल किया है।

वर्ष 2018 और 2020 के बीच 525 लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है और वर्ष 2020 से 2023 के बीच 600 अन्य लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा। इससे विशेष रूप से विदेश से आने वाले बौद्ध तीर्थ यात्रियों को भाषाई कनेक्टिविटी में मदद मिलेगी। देश के कई विशिष्ट संस्थानों में बौद्ध धर्म से संबंधित पाठ्यक्रमों को पढ़ाया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2021 में अमेरिका का दौरा किया, उस समय 157 कलाकृतियां और पुरावशेष को भारत वापस लाया गया था। जिसमें 16 कलाकृतियां और पुरावशेष बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने भगवान गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन को आधार मानकर वैश्विक शांति, बंधुत्व और सहिष्णुता के प्रति अपनी जबाबदारी सुनिश्चित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। भारत अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, ऐसे में महात्मा गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन को आत्मसात कर, हम एक नए भारत और अतुल्य भारत का निर्माण करने में सफल होंगे।

(लेखक भारत सरकार के संस्कृति, पर्यटन एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री हैं)