रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान और डीन एग्रीकल्चर डॉ एसके पाल ने राज्य की कृषि पारिस्थिकी एवं आसन्न खरीफ मौसम को देखते हुए किसानों को टांड़ (ऊपरी) भूमि में खेती को प्राथमिकता देते हुए धान की खेती की तैयारी शुरू को कहा है।
टांड़ भूमि से शुरुआत
डॉ पाल ने बताया कि राज्य में खरीफ मौसम में खेती की शुरुआत ऊपरी (टांड़) भूमि से होती है। किसानों को ऊपरी (टांड़) भूमि में मकई के अलावा दलहनी फसलों में अरहर (कम अवधि वाली), मूंग एवं उरद, तेलहनी फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, तिल, सरगुजा, कुसुम एवं मोटे अनाज वाले फसलों में मड़ुआ (रागी) एवं गुंदली आदि की खेती को प्राथमिकता देनी चाहिए। इन फसलों के साथ अंत: वर्तीय फसलों की खेती वाली तकनीक को अपनाया जा सकता है।
इन किस्मों को चुने
टांड़ भूमि में कम अवधि (90-100 दिनों) वाली धान किस्मों की खेती में बुआई के समय यूरिया खाद का व्यवहार नहीं करें। संकर या कम्पोजिट मकई किस्मों की और हरा भुट्टा के लिए कम अवधि अथवा मध्यम अवधि वाली किस्मों का चयन करें।
धान नर्सरी की तैयारी
बीजस्थली (नर्सरी) को सतह से 5 सेमी ऊंचा और साप्ताहिक अंतराल पर मौसम की अनुकूलता एवं अनुभव के आधार पर 2 से 3 चरण में धान नर्सरी की तैयारी करें। इससे रोपा के समय धान बिचड़ों की उपलब्धता सुलभ होगी। नर्सरी में प्रति हेक्टेयर उन्नत किस्मों के लिए 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर और संकर किस्मों के लिए 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज का प्रयोग करें।100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की नर्सरी में नेत्रजन, स्फूर और पोटाश उर्वरकों में प्रत्येक का एक किलो मात्रा डालें। बीज गिराने के 15 दिनों के बाद पुनः एक किलो नेत्रजन के लिए यूरिया से बिचड़ों का उपरिवेशन करें।
धान की खेती की तैयारी
वर्षा का पानी अधिक समय तक जमा रखने के लिए खेत की मजबूती से मेढ़बंदी करें। धान रोपा से एक सप्ताह पहले खेतों में वर्षा जल जमा करें। रोपाई के पहले खेत में पानी भरकर खेत में जुताई करने से खरपतवार नष्ट हो जाती है।
मध्यम (दोन -2) भूमि में सीधी बुआई (समय पर) के लिए अधिक उपजशील धान किस्मों (125 दिनों की अवधि वाली) एवं रोपाई (समय पर) के लिए कम अवधि की संकर धान किस्मों (120-130 दिनों की अवधि वाली) का चयन करें।
निचली भूमि (दोन -1) में मध्यम अवधि वाले संकर धान किस्मों (120-130 दिनों) एवं अधिक उपजशील वाले धान किस्मों (125 दिनों) की सीधी बुआई को प्राथमिकता दें।