कृषि बाजार शुल्क को लेकर पूरे झारखंड में व्यापारियों का शुरू हुआ विरोध

झारखंड मुख्य समाचार
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रांची। झारखंड में 2 प्रतिशत कृषि बाजार शुल्क लागू करने के राज्य सरकार के निर्णय के विरोध में व्‍यापारी उतर गये हैं। झारखंड चैंबर के आह्वान पर प्रदेश के समस्त जिलों और प्रखंडों में कृषि उपज, वन उपज के थोक एवं खुदरा व्यापारी का आंदोलन 19 अप्रैल से शुरू हो गया है। काला बिल्‍ला लगाकर दुकान में काम किया।

विधानसभा में पारित इस विधेयक के विरोध में फेडरेशन के निर्णय पर राजधानी रांची समेत जामताड़ा, गुमला, मधुपुर, पाकुड़, साहेबगंज, गढ़वा, धनबाद, गिरिडीह, बोकारो, सरिया, गोड्डा, पाकुड, देवघर, जमशेदपुर, चाईबासा, हजारीबाग, चाकुलिया, सरायकेला, दुमका, डाल्टनगंज, खूंटी, मुरहू, सिमडेगा, रामगढ़, लातेहार, पांकी, लोहरदगा समेत प्रायः सभी जिलों में स्थानीय चैंबर के नेतृत्व में खाद्यान्न दुकानों और बाजार मंडियों में व्यापारियों ने काला बिल्ला लगाकर व्यापार संचालित किया। स्थानीय चैंबर द्वारा उपभोक्ताओं को भी इस विधेयक की खामियों के प्रति जागरूक किया गया कि किस प्रकार इस विधेयक के प्रभावी होने के बाद खाद्य वस्तुओं की कीमतों में ईजाफा होगा। इससे उपभोक्ता एवं किसान प्रभावित होंगे।

रामगढ़

विदित हो कि रविवार को झारखंड चैंबर के नेतृत्व में संपन्न सभी व्यापारियों की राज्यस्तरीय बैठक हुई थी। इस विधेयक के विरोध में आम सहमति बनाई गई थी कि यदि राज्य सरकार द्वारा 15 मई तक इस विधेयक को समाप्त करने का निर्णय नहीं लिया जाता तो 16 मई से राज्य में खाद्यान्न की आवक और आपूर्ति व्यवस्था बंद करने के लिए राज्य के खाद्यान्न व्यवसायी बाध्य होंगे।

यह भी सहमति बनाई गई है कि 15 मई तक फेडरेशन चैंबर के निर्देश पर राज्य के सभी जिलों में शांतिपूर्ण ढ़ंग से इस विधेयक को समाप्त कराने के लिए स्थानीय चैंबर ऑफ कॉमर्स एवं खाद्यान्न व्यवसायी संघ द्वारा चरणबद्ध आंदोलन किये जायेंगे। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत ही आज खाद्यान्न व्यापारियों ने काला बिल्ला लगाकर इस विधेयक के प्रति अपना रोष जताया।

चाईबासा

चैंबर अध्यक्ष धीरज तनेजा ने कहा कि राज्य सरकार को अधिक विलंब नहीं करते हुए वर्ष 2015 में कृषि शुल्क को समाप्त करने के कारणों की समीक्षा करनी चाहिए। उस समय के शुल्क के आंकड़ों पर गौर करें तो इस मद में सरकार को प्राप्त होनेवाला राजस्व नगण्य था। प्राप्त राजस्व का अधिकांश हिस्सा स्थापन और वेतन मद में ही समाप्त हो गया। इसकी समीक्षा के बाद ही तत्कालीन सरकार द्वारा इस शुल्क को समाप्त करने का निर्णय लिया गया था।

हालांकि दुखद है कि पूर्व के कारणों की समीक्षा किये बिना ही इस विधेयक को विधानसभा में पारित कर दिया गया। इसके प्रभावी होने से एक तरफ जहां खाद्य वस्तुएं महंगी होगी, वहीं दूसरी तरफ राज्य में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, जीएसटी के रूप में प्राप्त होनेवाले राजस्व की हानि और राइस मिलों का निकटवर्ती राज्यों में पलायन आरंभ हो जायेगा।

देवघर

चैंबर महासचिव राहुल मारू ने कहा कि विरोध प्रदर्शन में व्यापारियों के साथ भारी संख्या में लोगों की सहभागिता यह दर्शाती है कि इस विधेयक के प्रभावी होने के बाद लोगों की प्रताड़ना बढे़गी। यदि राज्य सरकार द्वारा शीघ्र ही इस मामले में संज्ञान नहीं लिया गया तब स्थितियां और विकट होंगी। उन्होंने अवगत कराया कि इस विधेयक के विरोध में बुधवार को भी खाद्यान्न व्यापारी काला बिल्ला लगाकर विरोध जतायेंगे। इसके बाद 21 अप्रैल को व्यापारी अपने-अपने प्रतिष्ठान में पोस्टर लगाकर इस विधेयक का विरोध जताएंगे।

गिरिडीह