वैज्ञानिक सोच से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की जरूरत : निदेशक अनुसंधान

कृषि झारखंड
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  • झारखंड में प्राकृतिक खेती की संभावनाएं और अवसर पर प्रशिक्षण सह कार्यशाला का समापन

रांची। देश की खाद्यान जरूरत को पूरा करने में हरित क्रांति की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह तत्कालीन समय की मांग थी, जिससे देश खाद्यान्न मामले में आत्मनिर्भर हुआ। हालांकि अत्यधिक रासायनिक उर्वरक और कीटनाशी रसायन के प्रयोग से खेत की मिट्टी का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। तैयार खाद्य पदार्थ से मनुष्य और जानवरों की सेहत पर बुरा प्रभाव देखने को मिल रहा है, जिसे देखकर केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की पहल की जा रही है।

किसानों की 20 प्रतिशत भूमि में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की पहल की जा सकती है। हाल के दिनों में प्राकृतिक खेती पर काफी जोर दिया जा रहा है। इस खेती के प्रति किसान जागरूक हो रहे हैं, उन्हें तत्कालीन सफलता भी मिली है। इसके बावजूद झारखंड में प्राकृतिक खेती तकनीक को आगे बढ़ाने में वैज्ञानिक सोच एवं शोध की नितांत आवश्यकता होगी। उक्त बातें झारखंड में प्राकृतिक खेती की संभावनाएं और अवसर विषयक 3 दिवसीय प्रशिक्षण सह कार्यशाला के समापन के अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बीएयू निदेशक अनुसंधान डॉ अब्दुल वदूद ने कही। मौके पर प्रतिभागी वैज्ञानिकों को प्रमाण-पत्र प्रदान किया।

विशिष्ट अतिथि निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ जगरनाथ उरांव ने कहा कि रामकृष्ण मिशन के मार्गदर्शन में रांची जिले के अनगड़ा प्रखंड के नागड़बेड़ा गांव के किसान प्राकृतिक खेती तकनीक से सफल खेती कर रहे हैं। राज्य की जैव विविधता और भूमि की स्थिति को देखते हुए विभिन्न जिलों के किसानों के खेतों में परीक्षण जरूरी है। उन्होंने सभी जिलों के केवीके वैज्ञानिकों को अग्रिम फसल प्रत्यक्षण के माध्यम से परीक्षण के उपरांत कृषि प्रसार प्लेटफॉर्म से बढ़ावा देने पर जोर दिया।

अपर निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ एस कर्माकार ने वैज्ञानिकों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में उपयुक्त स्थल, उपयुक्त क्षेत्र, उपयुक्त भूमि, उपयुक्त फसल, उपयुक्त फसल किस्म एवं स्थानीय उपयुक्त प्राकृतिक संसाधनों पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया। उन्होंने केवीके वैज्ञानिकों को जिले के अनुकूल एवं उपयुक्त विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन एवं शोध-प्रसार सबंधी परियोजना प्रस्ताव तैयार करने की बात कही।

तीन दिनों की ट्रेनिंग फीडबेक में प्रतिभागी डॉ अरविंद कुमार ने प्राकृतिक खेती में वैज्ञानिक इनपुट के समावेश की जरूरत बताई। प्राकृतिक खेती में पोषक तत्व के महत्‍व एवं प्रबंधन पर प्रकाश डाला। राज्य की बहुतायत अम्लीय भूमि में प्राकृतिक खेती की उपयोगिता पर ध्यान देना होगा। उन्होंने राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में भावी रणनीति को रखा। डॉ अरविंद कुमार मिश्रा ने राज्य के विभिन्न जिलों में किसानों के खेतों में प्राकृतिक खेती के वेलीडेशन की जरूरत बताई। डॉ एचसी लाल ने कहा कि इस प्रशिक्षण सह कार्यशाला से वैज्ञानिकों में प्राकृतिक खेती के प्रति जागरुकता एवं इच्छा की भावना का सृजन हुआ है। इस खेती में उपज की गुणवत्ता और भूमि में लाभकारी माइक्रोबियल पोपुलेशन एवं अवयवों पर शोध एवं शोध डाटाबेस सृजन की जरूरत है।

स्वागत एवं धन्यवाद डॉ रंजय कुमार सिंह ने किया। मौके पर डॉ अशोक सिंह, डॉ विनय कुमार, डॉ अजय कुमार द्रिवेदी, डॉ राजीव कुमार, डॉ ललित दास, डॉ जयंत लाल, डॉ सुधीर झा एवं  डॉ शंकर कुमार सिंह सहित 24 जिलों के 40 केवीके वैज्ञानिक मौजूद थे।