जीवनशैली में बदलाव लाकर कैंसर की आशंका को किया जा सकता है न्‍यूनतम

विचार / फीचर
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डॉ मनोहर अगनानी

इस वर्ष 4 फरवरी ‘वर्ल्ड कैंसर डे’ की थीम ‘क्लोज द केयर गैप’ पर केन्द्रित है। ‘कैंसर’ शब्द का जिक्र मात्र ही जेहन में सिहरन पैदा कर देता है। ऐसे में जिन्हें कैंसर हो जाता है और जो लोग उनकी सेवा सुश्रुषा करते हैं, उनकी मनःस्थिति को तो बयां ही नहीं किया जा सकता। फिर कैंसर केयर से सम्बंधित विभिन्न चरणों, जैसे- डायग्नोसिस, सर्जरी, रेडियोथैरेपी, कीमोथैरेपी और पैलीएटिव केयर व्यवस्था में कुछ ‘गैप’ हों, तो कैंसर के मरीज़ों और रिश्तेदारों की निराशा का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। इस दृष्टि से इस वर्ष की थीम प्रासंगिक है, क्योंकि किसी भी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए केयर के मापदंडों पर शत-प्रतिशत खरा उतरना एक नामुमकिन सा आदर्श मात्र है।

किसी व्यवस्था में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव होगा, तो कोई व्यवस्था बहुत खर्चीली होगी। कहीं लोगों की जीवनशैली और परिवेश में कैंसर के रिस्क फैक्टर बहुतायत में होंगे। कहीं आम जनता का ‘हेल्थ सीकिंग बिहेवियर’ एक चुनौती होगी। साथ ही, कैंसर प्रभावितों को टर्मिनल स्टेज में पैलीएटिव केयर दे पाना भी एक बड़ी जरूरत है। निष्कर्ष यही है कि कैंसर केयर के हर स्तर पर अपेक्षा और वास्तविकताओं में गैप होंगे ही। कहीं ज्‍यादा, तो कहीं कम।

इस परिपेक्ष्य में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017), आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के साथ कैंसर के क्षेत्र में किए जा रहे विशिष्ट प्रयासों का यहां उल्लेख करना प्रासंगिक है। आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, भारत सरकार द्वारा कोम्प्रीहेंसिव प्राइमरी हेल्थ केयर सुनिश्चित करने की एक सुविचारित रणनीति है। देश में सभी उप-स्वास्थ्य केन्द्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के रूप में क्रियान्वित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य हमारे प्रधानमन्त्री ने दिया है।

आज देश में 89,000 से अधिक हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के माध्यम से प्रिवेंटिव, प्रोमोटिव एवं कॉम्प्रीहेंसिव प्राइमरी हेल्थकेयर दी जा रही है। आशा एवं एएनएम द्वारा घर-घर जाकर 30 वर्ष से अधिक आयु की आबादी का पांच प्रमुख बीमारियों हाइपरटेंशन, डायबिटीज और ओरल, ब्रेस्ट एवं सर्वाइकल कैंसर के प्रारम्भिक लक्षणों के आधार पर पहचान का काम किया जा रहा है। साथ ही कैंसर से बचाव के लिए जीवनशैली में परिवर्तन के लिए अपेक्षित जानकारी भी दी जा रही है। निष्कर्ष के रूप में ये कहा जा सकता है कि कैंसर केयर के प्रारम्भिक स्तर पर गैप को क्लोज किए जाने का भरपूर प्रयत्न किया जा रहा है। इस प्रयास के सकारात्मक परिणाम भी परिलक्षित हो रहे हैं।

हमारे देश में नेशनल प्रोग्राम फ़ॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ कैंसर, डायबिटीज, कार्डियो-वस्कुलर डिजीज एंड स्ट्रोक के माध्यम से कैंसर के प्रमुख कारणों की रोकथाम एवं नियंत्रण का प्रयास भी किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य कैंसर के प्रति जन जागरुकता स्थापित करने, जीवन शैली में सुधार करने के लिए जनमानस को प्रोत्साहित करने के साथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं जिला अस्पतालों में एनसीडी क्लिनिक संचालित करना है। जिला अस्पतालों में सीटी स्कैन, एमआरआई, मेमोग्राफी, हिस्टोपैथोलॉजी सेवाओं का विस्तार कर कैंसर के शुरुआत में ही पहचानने सम्बंधी गैप को भी खत्म किया जा रहा है।

‘आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ के माध्यम से देश की बड़ी आबादी को कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा चुनिन्दा सरकारी एवं प्राइवेट अस्पतालों के माध्यम से मुहैया कराई जा रही है। फिर देश में नए मेडिकल कॉलेज स्थापित करने, जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में उन्नयन करने की प्रधानमंत्री की सोच भी सेकेंडरी केयर को सुदृढ़ करने में कामयाब हो रही है। इसी प्रकार टर्शियरी केयर का विस्तार करने के लिए चरणबद्ध रूप से देश में 22 एम्स स्थापित किए जा रहे हैं।

साथ ही टर्शियरी कैंसर केयर सेंटर्स स्कीम के तहत स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट और टर्शियरी कैंसर केयर सेंटर्स स्थापित करने के लिए अनुदान दिया जाता है, जिसका उपयोग कैंसर के निदान एवं उपचार करने, कैंसर से सम्बंधित परीक्षण करने, रिसर्च गतिविधियां संचालित करने, पैलिएटिव केयर सुविधा उपलब्ध कराने और कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम में सहभागिता करने के लिए किया जा सकता है। झज्जर (हरियाणा) में 700 बिस्तर वाले ‘नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट’ और कोलकाता में 460 बिस्तर वाले ‘चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट’ भी प्रारंभ किए गए हैं। ये सभी प्रयास कैंसर केयर में सर्जरी, रेडियोथेरेपी, कीमोथैरेपी आदि क्षेत्रों में गैप क्लोज़ करने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

हमारे देश में कैंसर की रोकथाम के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, वह ऐतिहासिक हैं। इन प्रयासों में सुधार की गुंजाइश तो हमेशा रहेगी, लेकिन अब बहुत बड़ी जिम्मेदारी हमारे देश के जनमानस, जिनमें से अधिकांश युवा हैं, की भी है, ताकि वो अपनी जीवनशैली को इस तरह से अपनाएं कि कैंसर की सम्भावना को न्यूनतम किया जा सके। संतुलित भोजन करें, योग और व्यायाम को अपनाएं। तम्बाकू एवं शराब का सेवन ना करें। उनकी यह कोशिश ना सिर्फ उन्हें कैंसर की आशंका से बचाएगी, अपितु सीमित सेवाओं को गुणवत्ता पूर्वक, कैंसर रोगियों को समय पर उपलब्ध कराकर इस वर्ष की थीम ‘क्लोज द केयर गैप’ को भी चरितार्थ कर सकेगी।

डॉ मनोहर अगनानी

(लेखक स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय, भारत सरकार में अपर सचिव हैं)