कृषि प्रणाली में पशुधन का समावेश किसानों के लिए लाभकारी : कुलपति

कृषि झारखंड
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  • बीएयू में 21 दिवसीय राष्ट्रीय रि‍फ्रेशर्स कोर्स का समापन

रांची। पूरे देश के विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए सिंचित एवं असिंचित स्थिति के अनुकूल करीब 60 एकीकृत कृषि प्रणाली को चिन्हित एवं विकसित किया गया है। वैज्ञानिकों ने अनुसंधान में देश के किसानों की आय बढ़ाने में एकीकृत कृषि प्रणाली सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम पाया है। सिंचित एवं असिंचित स्थिति में एकीकृत कृषि प्रणाली में पशुधन जैसे गाय, भैंस, बकरी, सूकर, मुर्गी, मछली एवं बत्तख पालन गतिविधियों के समावेश को बेहद उपयोगी बताया है। कृषि प्रणाली में पशुधन प्रबंधन के नवीनतम तकनीकों के समावेश से किसानों की आय दोगुनी करने के बेहतर विकल्प मौजूद है। इससे देश में छोटे एवं सीमांत किसानों की बेहतर आजीविका एवं पोषण सुरक्षा को बल मिलेगा। उक्त बातें बीएयू के कॉलेज ऑफ वेटनरी साइंस एंड एनिमल हसबैंडरी द्वारा ऑफलाइन एवं ऑनलाइन मोड में आयोजित 21 दिवसीय राष्ट्रीय रि‍फ्रेशर्स कोर्स के समापन पर बतौर मुख्य अतिथि कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कही।

बतौर विशिष्ट अतिथि डीन पीजी डॉ एमके गुप्ता ने किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में विश्वविद्यालय के प्रयासों को रेखांकित किया। इसे विचारों को साझा करने और उपयोगी जानकारियों के सृजन का अवसर बताया।

विशिष्ट अतिथि अपर निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने स्थान विशेष आधारित कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने और जैविक कृषि एवं मधुमख्खी पालन को शामिल करने एवं पर्यावरण प्रदूषण को न्यून करने वाली तकनीकों के समावेश करने की बात कही।

विशिष्ट अतिथि डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने किसानों की सतत आय में बढ़ोतरी का पशुधन सशक्त माध्यम बताया। बायोगैस एवं कम्पोस्ट उत्पादन, सतत कृषि विकास एवं पर्यावरण सुरक्षा के साथ-साथ फसल उत्पादन की वृद्धि, मिट्टी का स्वास्थ्य बनाये रखने, प्राकृतिक खेती और जैविक कृषि में पशुधन विशेष महत्त्व पर प्रकाश डाला। कहा कि एकीकृत कृषि प्रणाली से किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास पशुधन के बिना अधूरा है। फसलों की तरह पशुधन का न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण किये जाने पर जोर दिया।

बतौर विशिष्ट अतिथि डीन फॉरेस्ट्री डॉ एमएस मल्लिक ने आईसीएआर-नाहेप के अधीन एकीकृत कृषि प्रणाली पर शोध एवं विस्तार पर प्रकाश डाला।

मौके पर उड़ीसा कृषि विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ सुमन कुमार जोशी ने 21 दिवसीय कोर्स में प्रतिभागियों के फीडबेक को प्रस्तुत किया। कोर्स का आयोजन बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ वेटनरी साइंस एंड एनिमल हसबैंडरी द्वारा आईसीएआर : नाहेप-कास्ट परियोजना तथा नेशनल एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट को-ऑपरेटिव लिमिटेड, जम्मू एंड कश्मीर के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इसमें पूरे देश के कृषि विश्वविद्यालयों एवं आईसीएआर संस्थानों के प्राध्यापक, वैज्ञानिक, शोधार्थी एवं पीएचडी छात्रों सहित 297 प्रतिभागियों ने भाग लिया। बीएयू से 30 वैज्ञानिक और शोधार्थियों ने भाग लिया, जिसे आईसीएआर : नाहेप-कास्ट परियोजना ने प्रायोजित किया।

समापन समारोह का ऑनलाइन संचालन डॉ वाईएस परमार कृषि विश्वविद्यालय की डॉ दीक्षा शर्मा ने कि‍या। स्वागत आईजी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के डीन और कोर्स के कार्यकारी निदेशक डॉ रत्ना नशीन एवं धन्यवाद कोर्स डायरेक्टर एवं कार्यकारी सचिव डॉ रविन्द्र कुमार ने किया। मौके पर डॉ बीके अग्रवाल, डॉ ओएन पांडे, डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती, डॉ राजू प्रसाद, डॉ स्वाति सहाय एवं डॉ नैयर अली आदि मौजूद थे।