विशेषः मां लक्ष्‍मी के साथ विष्‍णु जी के बजाय क्‍यों की जाती है गणेश जी की पूजा

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रांची। दिवाली पर हम जब भी माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं तो सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा अवश्य करते हैं, जबकि लक्ष्‍मी जी के पति विष्‍णु जी है। तो दिवाली पर लक्ष्‍मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्‍यों की जाती है, आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं वैसे तो भगवान गणेश की पूजा व उनका नाम हर शुभ कार्य से पहले किया जाता हैं लेकिन लक्ष्मी पूजा में उनका महत्व विशेष रूप से होता हैं।

लक्ष्मी की पूजा गणेश के साथ की जाती है क्‍योंकि वह विघ्नविनाशक हैं. इससे एक प्राचीन कथा जुड़ी है। चूँकि लक्ष्मी माता धन, वैभव की माता होती हैं इसलिये उनका मृत्यु लोक में विशेष स्थान था। सभी लोग अन्य देवी-देवता की महत्ता को भुलाकर माता लक्ष्मी को विशेष रूप से प्रसन्न करने में लगे रहते थे, ताकि उनके घर में कभी भी धन की कमी ना हो। अपनी पूजा व महत्व को देखकर माता लक्ष्मी का अहंकार दिनोदिन बढ़ता जा रहा था, जिसका आभास भगवान विष्णु को हो गया था।

एक दिन वैकुंठ धाम में दोनों बैठे बाते कर रहे थे कि तभी माता लक्ष्मी ने अपनी महत्ता के गुणों का बखान करना शुरू कर दिया। माता लक्ष्मी निरंतर अपने गुणों का बखान किये जा रही थी व भगवान विष्णु उन्हें ध्यानपूर्वक सुन भी रहे थे। उनके अहंकार का नाश करने के लिए भगवान विष्णु ने एक सुंदर योजना बनायी। चूँकि माता लक्ष्मी के कोई संतान नही थी इसलिये भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि चूँकि तुम में सभी गुण विद्यमान हैं लेकिन एक चीज़ को छोड़कर। एक नारी तभी पूर्ण मानी जाती हैं जब उसके कोई संतान हो। बिना संतान के हर नारी अधूरी ही रहती हैं।

यह सुनकर लक्ष्मी माता विचलित हो उठी तथा संतान प्राप्ति की लालसा उनमे जाग उठी। अपनी इसी बैचैनी को लेकर वे माता पार्वती के पास गयी। चूँकि माता पार्वती की दो संतान थी एक भगवान कार्तिक व दूसरे भगवान गणेश। माता पार्वती उन्हें अपने दूसरे पुत्र गणेश को गोद देने को तैयार हो गईं, लेकिन उनकी आशंका यह थी कि लक्ष्मी का निवास कभी एक स्थल पर नही होता फिर वह कैसे उनके पुत्र गणेश का ध्यान रख पाएंगी। माता लक्ष्मी हमेशा अपना स्थान बदलती हैं तथा यहाँ से वहां विचरण करती हैं। ऐसे में वे उनके पुत्र गणेश का ध्यान किस प्रकार रख पाएंगी।

तब माता लक्ष्मी ने माता पार्वती को वचन दिया कि चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े लेकिन अपने पुत्र गणेश का ध्यान वे हमेशा रखेंगी। माता लक्ष्मी से यह आश्वासन पाकर माता पार्वती को संतोष पहुंचा व उन्होंने भगवान गणेश को लक्ष्मी माता को गोद दे दिया। भगवान गणेश को पुत्र रूप में पाकर माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुई। तब से ही उन्होंने यह घोषणा कर दी कि उनकी पूजा से पहले गणेश जी को पूजा अनिवार्य होगी।

माता लक्ष्मी के इन कथनों के फलस्वरूप ही उनकी पूजा में हमेशा भगवान गणेश का स्थान अनिवार्य रूप से रहने लगा। जहाँ कही भी माता लक्ष्मी की आराधना की जाती हैं वहां पहले भगवान गणेश को पूजना अनिवार्य होता है।