भारतीय कृषि में झलकती आधुनिकता, पुरानी प्रथाओं पर घटी निर्भरता

विचार / फीचर
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शोभा करंदलाजे

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय कृषि एक युगांतकारी दौर में है। इस दौरान किसान बिना किसी बाधा के विभिन्न कल्याणकारी उपायों और योजनाओं का अधिकतम लाभ प्राप्त कर रहे हैं। सत्ता में आने के बाद से वर्तमान सरकार ने देश की कृषि क्षेत्र की निर्भरता को समाप्त कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्रांतिकारी प्रयास किए हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के क्रम में पिछले सात वर्षों के दौरान कृषि क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गयी है, जो 2013-2014 के लिए 21,933.50 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 के लिए 1,23,017.57 करोड़ रुपये हो गयी है।                   

किसान कल्याण इस सरकार की प्राथमिकता रही है। कृषि नीतियां, किसानों के कल्याण पर केंद्रित हैं, जो उन्हें बिना किसी बाधा या हिचकिचाहट के लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाती हैं। उदाहरण के लिए भारत के इतिहास में पहली बार, पीएम किसान सम्मान निधि के तहत किसान अपने बैंक खातों में सीधे आर्थिक सहायता प्राप्त कर रहे हैं, उनकी फसलों में हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति पीएम फसल बीमा योजना से की जा रही है, मृदा स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से मिट्टी की उर्वरता में सुधार किया गया है, किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा से उनके ऋण समाप्त हुए हैं, आदि। 16 लाख करोड़ रुपये के निर्धारित लक्ष्य में से, केसीसी के माध्यम से 14 लाख करोड़ रुपये के ऋण पहले ही वितरित किए जा चुके हैं। 

फसलों की लागत के अनुरूप न्यूनतम समर्थन मूल्य को प्रणालीबद्ध तरीके से बढ़ाया गया है। एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के लिए सबसे प्रभावी प्रयास डीबीटी रहा है, जिससे बिचौलियों से छुटकारा पाने में और इच्छित लाभार्थियों को लाभ पहुंचाने में मदद मिली है। एमएसपी के माध्यम से रिकॉर्ड खरीद की गई है और इस सुविधा की पेशकश अन्य फसलों के लिए भी की गयी है, ताकि किसान फसल-विविधता के लिए प्रेरित हो सकें और उच्च उपज वाली फसलों का चयन कर सकें।

महामारी भी सरकार को आर्थिक सहायता देने से नहीं रोक पाई है। इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री ने अपनी जनसभाओं में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि कोविड महामारी के दौरान भी किस प्रकार 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की आर्थिक सहायता हस्तांतरित की गयी थी।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय देश भर में 10,000 किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) स्थापित करने के लिए गंभीरता से काम कर रहा है, ताकि किसानों को उद्यमी बनने संबंधी सुविधा उपलब्ध करायी जा सके।

खाद्य तेल के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने के लिए, उन राज्यों में खाद्य तेलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जहां परिस्थितियां अनुकूल हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय तिलहन एवं ऑयल पाम मिशन (एनएमओओपी) के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र पर विशेष जोर देते हुए, पाम ऑयल की खेती के लिए रकबे का विस्तार किया गया है। इस सम्बन्ध में, पूर्वोत्तर राज्यों की क्षमता का आकलन करने के उद्देश्य से, असम में पहली बार एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था, ताकि खाद्य तेल के आयात पर देश की निर्भरता को समाप्त किया जा सके। पाम ऑयल के रकबे का विस्तार हुआ है और प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की गयी हैं।

अपने नवीनतम निर्णय में मंत्रालय ने उत्पादन, मिट्टी की उर्वरता और फसलों में विविधता लाने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके तहत 15 अनुकूल राज्यों के 343 लक्षित जिलों में 8 करोड़ से अधिक किसानों को निःशुल्क हाइब्रिड बीज वाली मिनी बीज किट वितरित की जा रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ठोस प्रयास किये जा रहे हैं।  

ये सारे कदम सिर्फ कागज पर ही सिमटे हुए नहीं हैं, बल्कि जमीन पर साकार भी हुए हैं और मेरे पास यह बताने के लिए वास्तविक जीवन से जुड़ी अनगिनत कहानियां हैं कि कैसे मोदी सरकार की किसान केंद्रित नीतियों से देशभर के किसान लाभान्वित हो रहे हैं। निर्णय लेने वाले तंत्र को विकेंद्रीकृत कर दिया गया है। उन स्थानों को जो कभी अधिकारियों के लिए आरक्षित हुआ करते थे, किसानों के लिए खोल दिया गया है। नारियल विकास बोर्ड द्वारा अब एक किसान को अपना अध्यक्ष बनने की अनुमति देना, इसका सबसे बड़ा सबूत है।

सांडों एवं हल के साथ भारतीय किसानों के दरिद्र और लहूलुहान होने की धारणा अब बाकी नहीं रही। आधुनिक तकनीकों और परिष्कृत सहयोगी प्रणालियों के उपयोग के जरिए खेती अब प्रगतिशील हो गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा विकसित भारत में जलवायु परिवर्तन को सहन करने और कुपोषण से लड़ने की विशिष्टताओं वाले बीज को  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया था। जलवायु के अनुकूल बीजों की ये 35 किस्में कुपोषण से निपटने में भी मदद करेंगी।

उपयुक्त फसलों की खेती के बारे में एक निश्चित समय के भीतर सही निर्णय लेने में किसानों की मदद करने के उद्देश्य से निजी उद्यमों के साथ कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके परिणामस्वरूपे किसानों को अत्यधिक उपज प्राप्त हुई। किसानों को लॉजिस्टिक्स और खरीद संबंधी सहायता प्रदान कर उन्हें बेहतर कीमत पाने के लिए उपयुक्त बाजार का चयन करने में समर्थ बनाया जाएगा।

18 राज्यों और 3 केन्द्र-शासित प्रदेशों में 1000 से अधिक मंडियों को ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) में शामिल किया गया है, जिससे बाजारों में अस्थिरता कम हुई है और एक एकीकृत बाजार तक पहुंच संभव हुई है। इसके अलावा, किसान रेल ने दुर्गमता की समस्या को कम करते हुए बाजार का विस्तार किया है। यह रेल कम से कम समय में ग्राहकों को खेतों से ताजा कृषि उत्पाद पहुंचा रही है।

कृषि समकालीन अत्याधुनिक तकनीकों से ओत-प्रोत है और इससे जुड़ी शुरुआती प्रथाएं धीरे- धीरे खत्म होती जा रही हैं। विशेषज्ञता, ऊर्जा और उत्साह से लैस पेशेवर लोग खेती के क्षेत्र में कदम रख रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजारों की खोज करते हुए फसलों का मूल्यवर्धन कर रहे हैं। डिजिटल कृषि मिशन, जिसे 2021-25 की अवधि के लिए निर्धारित किया गया है, के तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन, रोबोट रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीक जैसे उन्नत मशीनीकरण का इस्तेमाल किया जाएगा। कुल 5.5 करोड़ किसानों का एक डेटाबेस तैयार कर और उनके भूमि के रिकॉर्ड को जोड़कर एक अनूठी किसान आईडी बनाने की कवायद शुरू की गई है।

जैविक खेती को लोकप्रिय बनाया गया है और कृषि के क्षेत्र में अपनी छाप छोडने वालों को  मान्यता एवं शीर्ष नागरिक पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। सरकार ने कई ऐसी महिला किसानों को शीर्ष पुरस्कारों से सम्मानित किया है, जिन्होंने खेती को नया रूप दिया है और अपनी भरोसेमंद तकनीकों के साथ दूसरों को भी जोड़ा है।

उन सभी फसलों को प्रमुखता दी गई है, जो सतत कृषि के लिए सहायक हो सकती हैं। इसके साथ ही कृषि के पारंपरिक तरीकों को भी बचाए रखने की कोशिश की गई है। ‘एक जिला, एक उत्पाद’, अंतरराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से देश के प्रत्येक जिले से निर्यात की क्षमता वाले कम से कम एक कृषि उत्पाद की पहचान करने की एक महत्वाकांक्षी योजना है। एक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि एक ओर जहां नागालैंड का राजा मिर्च लंदन में बेचा जाता है, त्रिपुरा से कटहल जर्मनी और लंदन निर्यात किया जाता है और असम का लाल चावल अमेरिका में उपलब्ध है, वहीं उत्तर प्रदेश के कानपुर के जामुन को ब्रिटेन में बेचे जाने की तैयारी की जा रही है। निश्चित रूप से यह देश की कृषि के इतिहास में एक अनूठी कवायद है।

उन सभी फसलों को प्रमुखता दी गई है, जो सतत कृषि के लिए सहायक हो सकती हैं। इसके साथ ही कृषि के पारंपरिक तरीकों को भी बचाए रखने की कोशिश की गई है।

केन्द्र और राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों के बीच समन्वय को सुचारु बनाने के उद्देश्य से संबंधित राज्यों के साथ आयोजित अपनी समीक्षा बैठकों में, मैंने स्पष्ट रूप से कृषि उत्पादों की निर्यात संबंधी मांग को पूरा करने के लिए एक अलग सेल बनाने के लिए कहा है। सरकार के कड़े फैसलों के सार्थक परिणाम सामने आए हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण जम्मू-कश्मीर में देखने को मिला है। पिछली यात्रा के दौरान, मुझे वहां के स्थानीय किसानों के साथ बातचीत करने और उस क्षेत्र की कृषि से जुड़ी संभावनाओं के बारे में खुद को अवगत कराने का अवसर मिला था। यह क्षेत्र विश्व प्रसिद्ध केसर का उत्पादन करता है, और यहां की चेरी विदेशी बाजारों में अपनी जगह बना रही है। सरकार जम्मू-कश्मीर के किसानों की आय दोगुनी करने में उनकी हरसंभव मदद कर रही है और इसके लिए केसर पार्क में कामकाज शुरू किया जा रहा है। इस कदम के साथ, कभी एक लाख रुपये में बिकने वाला केसर अब ढाई लाख रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है।

भारत ने किसानों की आय को दोगुना करने के अपने पूर्व निर्धारित लक्ष्य को साकार करने के उद्देश्य से वैश्विक मंच पर कदम रखा है और वर्ष 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष’ के रूप में मनाने के अपने प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र से अनुमोदित कराने में सफल रहा है। पोषक तत्वों से भरपूर यह फसल, जिसे कभी गरीब आदमी की फसल कहा जाता था, वैश्विक बाजार में अपनी जगह बना रही है। इस फसल की ख़ासियत यह है कि इसे बहुत कम पानी की जरूरत होती है और इसे अर्ध-शुष्क भूमि में उगाया जा सकता है।

एक आत्मनिर्भर कृषि तथा अन्नदाताओं के कल्याण के हमारे संकल्प की पुष्टि करने और ‘मोदी हैं, तो मुमकिन है’ पर जोर देने की दृष्टि से उपलब्धियों इस सूची और आगे जारी रखा सकता है।

(लेखक केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री हैं)