डॉ मनसुख मंडाविया
कोविड-19 महामारी ने हमारे सामने जटिल चुनौतियां खड़ी कीं, जिसमें स्वास्थ्य के संदर्भ में उभरती स्थितियों के प्रति तुरंत कार्रवाई की मांग की गई। ऐसे समय में आवश्यकता महसूस की गई एक ऐसी व्यवस्था की जिससे देशभर में स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण तैयार किया जाए तथा जिसके माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को भी सुदृढ़ किया जा सके।
अप्रत्याशित सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति (कोविड-19) ने एक देश में मजबूत और त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली के निर्माण के लिए संपूर्ण सरकार और संपूर्ण समाज के दृष्टिकोण की आवश्यकता को दोहराया। महामारी ने आपदा में सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों के महत्व को भी बताया, इसके साथ ही अपनी मौजूदा व्यवस्था की ताकत और कमजोरियों को समझने का भी अवसर दिया।
हमने यह महसूस किया कि स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, निगरानी तंत्र, अनुसंधान को मजबूत करने और आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता तथा आपदा प्रबंधन की क्षमता का निर्माण करने के लिए देश में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है। इस तरह की तैयारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में देश की सहायक बनेगी।
उपरोक्त विषयों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन की शुरूआत की है जिसकी राशि पांच साल के लिए 64,180 करोड़ रुपए की है। मिशन के अंर्तगत सभी स्तर पर स्वास्थ्य संस्थानों का क्षमता का निर्माण किया जाएगा। देश को आत्मनिर्भर बनाने, निगरानी और अनुसंधान प्रदान करने के साथ ही राज्यों को वर्तमान और भविष्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिए प्रभावी ढंग से तैयार करने में सक्षम बनाया जाएगा। पीएम आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन को सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षमताओं का निर्माण करने के लिए तैयार किया जाएगा ताकि वह सभी नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधी सभी सेवाओं को प्रदान करने के लिए तैयार हो सकें। निश्चित रूप से यह मिशन स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक गेम चेंजर साबित होगा।
मिशन में जिला स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं को केन्द्रित किया गया है। विशेष रूप से कमजोर वर्ग से आने वाली महिलाओं और बच्चों के मजबूत स्वास्थ्य तंत्र विकसित किया जाएगा। जिलों को मजबूत करने और आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वहां निगरानी और आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक क्षमताएं हैं और यह सभी सेवाएं आम जनता को प्राथमिक और गंभीर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने में सक्षम हैं।
सभी के लिए उच्च गुणवत्ता वाले प्राथमिक स्वास्थ्य की जरूरत को देखते हुए इसकी सर्व सुलभ पहुंच को रेखांकित किया गया। इसी क्रम में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर ध्यान देने में समक्ष होगें। प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के अंर्तगत तीन पूर्वोत्तर व प्रमुखता वाले राज्यों के ग्रामीण क्षेत्र के 17,788 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर को बुनियादी सहायता प्रदान की जाएगी।
महामारी ने शहरी क्षेत्र को असमान रूप से प्रभावित किया, जिसमें प्रवासियों और अन्य कमजोर उपसमूह के लोग भी शामिल थे। वर्तमान महामारी के प्रबंधन से मिली सीख के आधार पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का सुदृढ़ीकरण और विस्तार करना शहरी क्षेत्रों के लिए एक आवश्यकता के रूप में उभरा है।
इसी को ध्यान में रखते हुए शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी, अरबन लोकल बॉडीज) के सहयोग से 11,044 शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केन्द्रों (शहरी-एचडब्ल्यूसी) के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के विकेन्द्रीकृत वितरण को सक्षम करने की योजना बनाई गई है। यह केन्द्र यूएलबी या अरबन लोकल बॉडीज द्वारा चिन्हित स्लम और संवेदनशील क्षेत्रों के 15,000 से 20,000 की आबादी को सेवाएं प्रदान करेंगे। विशेष सेवाओं की पहुंच बढ़ाने के लिए समुदायों के नजदीक ही नए शहरी पॉलीक्लिनिक भी स्थापित किए जाएगें।
मुफ्त दवाएं, जांच और समुदाय तक टेलीकंसल्टेशन सेवा पहुंचने से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कवरेज और इलाज की गुणवत्ता का विस्तार होगा। इस प्रकार मिशन के माध्यम से मरीजों की कठिनाई को कम करके सार्वभौमिक और व्यापक प्राथमिक इलाज सुनिश्चित किया जाएगा।
वर्तमान में हमारी ब्लॉक स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं ज्यादातर क्लीनिक सेवाओं तक सीमित हैं। कोविड19 महामारी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ब्लॉक स्तर पर स्वास्थ्य पर ध्यान न देने की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में बाधा उत्पन्न हुई। मौजूदा अक्षमता को दूर करने और उप जिला स्तर पर आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए योजना में 3,382 ब्लॉक सार्वजनिक हेल्थ यूनिट स्थापित करने का प्रस्ताव है।
देश में महामारी का बोझ बढ़ने के साथ ही जिला और उप जिला स्तर पर उच्च गुणवत्ता युक्त प्रयोगशालओं की भी जरूरत महसूस की गई। सार्वजनिक स्वास्थ्य सर्विलांस की सीमित क्षमता को देखते हुए समग्र डायग्नोस्टिक और सर्विलांस को विकसित और मजबूत करने के लिए 730 जिलों में एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला (आईपीएचएल) स्थापित करने के लिए निवेश किया जा रहा है। इससे जिला और उप-जिला स्तरों पर प्रयोगशालाओं से व्यापक निगरानी प्रणाली के साथ एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान मिलेगा।
महामारी के दौरान हमने देखा कि अस्पताल की इमारतों के एक हिस्से को संक्रामक रोगों के लिए चिन्हित करने संबंधी प्रावधान न होने पर आवश्यक सेवाओं पर गंभीर प्रभाव महसूस किया गया। इसी बात को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या आकार के आधार पर 50-100 बेड के 602 क्रिटिकल केयर सेंटर ब्लॉक व जिला स्तर पर स्थापित किए जाएंगे। ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था भविष्य की आपदा या सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातस्थितियों में पर्याप्त रूप से काम आ सके। पांच लाख से कम आबादी के जिलों में रेफरल लिंक स्थापित करके उन्हें सहायता प्रदान की जाएगी। इसके अतिरिक्त मिशन के अंर्तगत 12 केन्द्रीय अस्पतालों/संस्थानों में 150 बेड के क्रिटिकल केयर ब्लॉक तैयार किए गए हैं, जो राज्यों को तकनीकि सहायता पहुंचाने में संरक्षक संस्थान के रूप में काम करेगें।
कोविड19 की चुनौतियों का सामना करते हुए देश के उत्कृष्ट केन्द्रीय संस्थानों ने न केवल चिकित्सा पेशेवरों का विश्वास बनाने के लिए परामर्श प्रदान किए, बल्कि टेरिटरी स्तर की स्वास्थ्य सेवा वितरण में भी सक्रिय भूमिका निभाई। वर्तमान में यह संस्थान टेरिटरी स्वास्थ्य सेवा में सहयोग प्रदान करते हैं, लेकिन संक्रामक रोगों से निपटने के लिए इसे मजबूत करने की आवश्यकता है। इस अंतर को दूर करने के लिए 12 केंद्रीय संस्थानों में 150 बिस्तरों वाले क्रिटिकल केयर अस्पताल ब्लॉक स्थापित किए जाएंगे।
जिला स्वास्थ्य सुविधाओं पर आईसीयू और ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ 37,000 नए क्रिटिकल केयर बेड उपलब्ध होंगे, जिससे आने वाले पांच वर्षों में सभी जिलों को क्रिटिकल केयर प्रदान करने में आत्मनिर्भर होने का हमारा सपना साकार हो जाएगा।
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के अंर्तगत देश भर में 4000 से अधिक प्रयोगशालाओं और व्यापक निगरानी प्रणाली के साथ एक आत्मनिर्भर भारत बनाने का लक्ष्य रखा गया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों का प्रभावी ढंग से पता लगाने, जांच करने और उनका मुकाबला करने के लिए पचास अंर्तराष्ट्रीय प्रवेश बिंदुओं (एंट्री प्वाइंट्स) पर स्वास्थ्य इकाइयों को मजबूत किया जाएगा।
इस मिशन के साथ भारत एशिया का ऐसा पहला ऐसा देश होगा जिसके पास दो कंटेनर आधारित मोबाइल अस्पतालों के साथ आपातकालीन तंत्र होगा तथा स्वास्थ्य टीमों को आपातकालीन/संकट की स्थिति में तुरंत तैनात किया जा सकेगा।
पीएमएबीएचआईएम के तहत कोविड19 और अन्य संक्रामक रोगों पर अनुसंधान के लिए निवेश को भी लक्षित किया गया है। जिसमें बायोमेडिकल अनुसंधान भी शामिल है, जो महामारी के लिए कम और मध्यम अवधि में संक्रमण की जानकारी दे सके। जानवरों और मनुष्यों में संक्रामक रोग के प्रकोप को रोकने, पता लगाने और प्रतिक्रिया के लिए वन हेल्थ एप्रोच के तहत क्षमता विकसित करने के साक्ष्य उत्पन्न करना भी योजना में शामिल है।
इसके अलावा एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) और राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र जैसी पहल संस्थानों में विशेषज्ञता, ज्ञान साझा करने और भविष्य में तेजी से विस्तार और सुविधा प्रदान करने में सक्षम होगी।
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के माध्यम से लाभ का फायदा उठाने, कमियों को दूर करने और तैयारियों के लिए नवाचारों तकनीकि को स्थापित कर एक सुदृढ़ भारत बनाने की रणपीति तैयार की गई है। इस बावत पीएमएबीएचआईएम एक गेम चेंजर के रूप में, नियमित और आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण की सुरक्षा तथा संकट प्रबंधन के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ करने के साथ आवश्यक हथियार के रूप में हमारे पास होगी। इस प्रकार हमारे जिलों और राज्यों को स्वावलंब बना कर हम देश को पूरी तरह से आत्मानिर्भर बना सकेगें।
(लेखक केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हैं। यह उनके निजी विचार हैं)