रांची। संतमत सत्संग समिति के संस्थापक स्वामी व्यासानंद महाराज ने कहा कि ध्यान की महिमा बहुत है। किसी वजह से फैला हुआ पाप हो तो वह ध्यान से समाप्त हो जाता है। दान करने से ध्यान को बल मिलता है। इसको बीज कर्म कहते हैं। वे रविवार को रांची में श्रद्धालुओं के बीच प्रवचन दे रहे थे।
स्वामी ने कहा कि हम तीर्थ उपवास करते हैं। वह हमारे सहायक कर्म हैं। प्रकाश खोलने का प्रत्यक्ष रूप है। जिस तरह स्वर्ग में प्रकाश होता है, उसी तरह नरक में प्रकाश नहीं होता है। अंदर के प्रकाश की अगर एक चिंगारी भी दिख जाए तो सारे दुख नष्ट हो जाते हैं।
जब धन की बहुत बड़ी आमदनी होती है तो लोग उसे ईश्वर की कृपा या गुरु की कृपा मानते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है। सच्ची कृपा तब बनती है, जब लोगों का भजन में मन लगने लगे। तब समझ जाइए कि गुरु की कृपा हो गई।