नई दिल्ली। अब कैप्टिव खानों से कोयले की 50 फीसदी बिक्री की जा सकेगी। कोयला मंत्रालय ने इसके लिए खनिज रियायत अधिनियम, 1960 में संशोधन किया है। नए नियम निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कैप्टिव खानों दोनों पर लागू होंगे। हालांकि इसमें कुछ शर्तें लागू की गई है।
नये नियम के तहत एक वित्तीय वर्ष में कैप्टिव खदानों द्वारा 50 प्रतिशत तक कोयला और लिग्नाइट की बिक्री अतिरिक्त भुगतान पर की जी सकेगी। हालांकि यह बिक्री तभी होगी, जब उस खदान से जुड़े संयंत्र की कोयले और लिग्नाइट की मांग पूरी हो जाएगी। इस वर्ष की शुरुआत में खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम में इस आशय का संशोधन किया गया था। नए नियम निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कैप्टिव खानों दोनों पर लागू होंगे।
सरकार का मानना है कि अतिरिक्त कोयले की उपलब्धता से बिजली संयंत्रों पर दबाव कम होगा। कोयले के आयात में कमी लाने में भी मदद मिलेगी। कोयले या लिग्नाइट की निर्धारित मात्रा में बिक्री के लिए भत्ता भी पट्टेदारों को कैप्टिव खानों से उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगा।
इसके अलावा बेचे गए कोयले या लिग्नाइट से अतिरिक्त प्रीमियम राशि, रॉयल्टी और अन्य वैधानिक भुगतानों का भुगतान राज्य सरकारों के राजस्व को बढ़ावा देगा। इस कदम से 500 मिलियन टन प्रति वर्ष से अधिक पीक रेटेड क्षमता वाले 100 से अधिक कैप्टिव कोयला और लिग्नाइट ब्लॉकों के साथ-साथ सभी कोयला और लिग्नाइट उत्पादन करने वाले राज्यों को भी लाभ होने की संभावना है।
इसके अलावा सरकार ने किसी सरकारी कंपनी या निगम को कोयला या लिग्नाइट के लिए 50 साल की अवधि के लिए खनन पट्टा देने का भी प्रावधान किया है। 50 साल की अवधि के लिए खनन पट्टों का प्रावधान सरकारी कंपनियों या निगमों को देने से राष्ट्र को कोयला/लिग्नाइट का उत्पादन अबाध रूप से होता रहेगा। इसके जरिए देश को कोयले या लिग्नाइट की उपलब्धता की सुरक्षा मिलती रहेगी। साथ ही, पट्टे के 50 वर्ष की अवधि को 20 वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकेगा।
हालांकि इसकी मांग राज्य सरकार को आवेदन देते समय ही करनी होगी। ऐसा होने से खनन पट्टों की अवधि बढ़ाने के लिए बार-बार दिए जाने वाले आवेदनों की संख्या में कमी आएगी। खनन कार्यों में निरंतरता सुनिश्चित होगी।