कृषि उत्पादकता बनाए रखने में सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन सहायक : डॉ एसके सिंह

झारखंड
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  • बीएयू में डॉ एसएन सक्सेना मेमोरियल व्याख्यान का आयोजन

रांची I मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्वों के घटते भंडार पर कम ध्यान देने से प्रमुख फसलों के उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है। हाल के वर्षों में गहन फसलोत्पादन में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है। फसल उत्पादकता में इस ठहराव को पोषक तत्वों की असंतुलित आपूर्ति से जोड़कर देखा जा रहा है। बढ़ती आबादी एवं सीमित भूमि संसाधनों से आने वाले वर्षों में पर्याप्त खाद्यान्न का उत्पादन एक बड़ी चुनौती होने वाली है। इन तत्वों के तत्काल प्रबंधन की आवश्यकता जताई जा रही है। आधुनिक कृषि में इष्टतम फसल उत्पादकता के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों के भी अनुप्रयोग पर जोर दिया जा रहा है। उक्त बातें 7वें डॉ एसएन सक्सेना मेमोरियल व्याख्यान- 2021 के मौके पर बतौर मुख्य वक्ता बीएचयू, वाराणसी के मृदा विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ एसके सिंह ने कही। वे फसलोत्पादन में सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता, कमी के निदान और वर्तमान स्थिति विषयक व्याख्यान में 27 सितंबर को बोल रहे थे।

डॉ सिंह ने कहा कि सूक्ष्म पोषक तत्वों की मिट्टी में कमी की स्थिति के आकलन में झारखंड एवं अन्य अम्लीय भूमि वाले राज्यों में 35-60 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है। बहु-सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी देश में कृषि उत्पादकता की स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा है, जो कीट आक्रमण सिंड्रोम एवं अनिश्चित मौसम के झटके विशेषज्ञों को भी दुविधा में डाल देती है। उच्च उत्पादकता, बेहतर पोषण गुणवत्ता और गहन कृषि प्रणालियों की स्थिरता और खोई हुई मिट्टी की उत्पादकता की बहाली के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का कुशल प्रबंधन अनिवार्य हो गया है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका सही स्रोत, सही दर, सही विधि और सही उपयोग करना है। इसके लिए प्रबंधन की रणनीतियों जैसे केलेटेड, फोर्टिफाइड, अनुकूलित और फ्रिटेड उर्वरकों के उपयोग के अलावा जैव-रिलीज स्मार्ट उर्वरक एवं जैविक मैट्रिक्स का उपयोग जैसे नवाचारों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। फसल उत्पादन में नैनो-उर्वरक, सूक्ष्म पोषक उर्वरकों के कुशल उपयोग के रूप में उभर कर सामने आया हैं।

अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि वर्तमान में सूक्ष्म पोषक तत्व मानव की खाद्यान एवं पोषण सुरक्षा से सीधे तौर से जुड़ा है। विवि द्वारा झारखंड के 15 जिलों के शोध आकलन में करीब 50 प्रतिशत भूमि में बोरोन और 20 से 30 प्रतिशत भूमि में जिंक की कमी पाई गई है। संकर धान किस्मों में 5 से 7.5 किलो प्रति हेक्टेयर जिंक का प्रयोग लाभप्रद पाया गया है। झारखंड के अम्लीय भूमि की उर्वरता काफी दयनीय है। ऐसी भूमि में समेकित पोषक तत्व प्रबंधन में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग क्वालिटी फ़ूड और मानव व पशु स्वास्थ्य हेतु बेहतर विकल्प होगा।

व्याख्यान का आयोजन वेबिनार मोड में रांची चैप्टर ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑ। सॉइल साइंस, नई दिल्ली एवं डिपार्टमेंट ऑफ सॉइल साइंस एंड एग्रीकल्चरल केमिस्ट्री, बीएयू के संयुक्त तत्वावधान किया गया। स्वागत करते हुए अध्यक्ष (मृदा विज्ञान) डॉ डीके शाही ने भूमि में सूक्ष्म पोषक तत्वों की बढती कमी एवं प्रबंधन में अनदेखी मृदा वैज्ञानिकों एवं किसानों के लिए चिंता का विषय बताया। उन्होंने इस उभरती समस्या से निपटने के लिए क्षेत्र अनुकूलित उर्वरकों से अवगत कराया।

व्याख्यान का संचालन मुख्य मृदा वैज्ञानिक डॉ बीके अग्रवाल ने किया। मुख्य वक्ता डॉ सिंह की जीवनी से परिचित कराया। धन्यवाद मृदा वैज्ञानिक डॉ पी महापात्र ने दिया। व्याख्यान में देशभर के करीब 240 सॉइल साइंटिस्ट एवं विषय से जुड़े पीजी व पीएचडी छात्रों के साथ डॉ ए वदूद, बीएयू के विभिन्न विभागों के चेयरमैन/ विभागाध्यक्ष एवं वैज्ञानिकों ने भाग लिया।