संकट की इस घड़ी में प्रवासी मजदूरों को बिना पहचान पत्र भी मुहैया कराएं राशन सामग्री: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संकट की इस घड़ी में प्रवासी मजदूरों की हालत पर चिंता जताते हुए केंद्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार को निर्देश दिया है कि वे प्रवासी मजदूरों को पहचान पत्र न हो, तब भी राशन सामग्री दें। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि एनसीआर के शहरों से जो मजदूर गांव लौटना चाहते हैं, उन्हें सड़क या रेल मार्ग से सुविधा दी जाए। कोर्ट ने तीनों राज्यों को दस दिनों के अंदर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 24 मई को होगी। 

कोर्ट ने निर्देश दिया है कि एनसीआर में सामुदायिक रसोई शुरू हो जिसमें दो बार भोजन देने का इंतजाम किया जाए। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पूरे एनसीआर इलाके में कर्फ्यू और लॉकडाउन होने से प्रवासी मजदूरों को रोजी का संकट हो गया और वे लॉकडाउन बढ़ने की आशंका से अपने गृहनगर जाने लगे हैं। उनसे अपने गृहनगर जाने के लिए प्राइवेट बस मालिक काफी ज्यादा पैसे वसूल रहे हैं। बस मालिक प्रवासी मजदूरों से चार से पांच गुना ज्यादा रकम वसूल रहे हैं। 

प्रशांत भूषण ने कहा कि पिछले साल आत्मनिर्भर भारत स्कीम और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत प्रवासी मजदूरों को राशन देने की व्यवस्था की गई थी। उन्होंने मांग की कि सभी राज्य सरकारें उन प्रवासी मजूदरों को भी राशन उपलब्ध कराएं जिनका नाम खाद्य सुरक्षा कानून या जनवितरण प्रणाली में छूट गया था। उन्होंने मांग की कि ऐसी संकट की घड़ी में जिनके पास पहचान पत्र नहीं हो उन्हें भी राशन दिया जाए।