आनंद कुमार सोनी
लोहरदगा/रांची। झारखंड की राजधानी रांची के इटकी रोड स्थित जसलोक हॉस्पिटल पर परिजनों ने झूठ बोलकर मरीज को भर्ती करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मरीज को समुचित ऑक्सीजन भी नहीं दिया गया। इसके कारण उसकी मौत हो गई। महज 12 घंटे में 42,000 रुपये का बिल बना दिया गया। हालांकि अस्पताल के संचालक इन आरोपों को निराधार बताया। उन्होंने कहा कि मरीज गंभीर था। सलाह नहीं मानते हुए परिजन मरीज को दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कर रहे थे। अस्पताल से बाहर एंबुलेंस में शिफ्ट करने के दौरान उसकी मौत हो गई।
जानकारी के मुताबिक सरायकेला खरसावां के चौका निवासी निवासी अरुण गुप्ता को इलाज के लिए जसलोक हॉस्पिटल में भर्ती 5 मई की रात 9 बजे भर्ती कराया गया था। उन्हें टाटा हॉस्पिटल के डॉ सुजीत कुमार ने वेंटिलेटर युक्त हॉस्पिटल में भर्ती करने की सलाह देते हुए यहां रेफर किया था। जसलोक अस्पताल प्रबंधन द्वारा भी बताया गया था कि यहां वेंटिलेटर खाली हो रहा है। इसे बुक करने के लिए 42,000 रुपये जमा करना होगा। तभी रांची में रह रहे परिजनों ने तत्काल यह पैसा जमा करा दिया।
परिजन मुकेश गुप्ता ने बताया टाटा स्थित हॉस्पिटल से मरीज को निकालकर रांची लाने के लिए एंबुलेंस ने 35,000 रुपये लिये। वहीं जसलोक हॉस्पिटल में भर्ती के बाद मेरे मरीज को जेनरल वार्ड में रखा गया। किसी प्रकार की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। वेंटिलेटर आईसीयू आदि भी नहीं दिखा। स्थिति की नजाकत को देखते हुए तुरंत प्लस प्वाइंट हॉस्पिटल में मरीज को भर्ती कराने के लिए बात की गई।

मुकेश ने बताया कि 6 मई की सुबह 9 बजे डॉक्टर के साथ प्लस हॉस्पिटल की एंबुलेंस मरीज को लेने जसलोक हॉस्पिटल पहुंची। मरीज को हॉस्पिटल के ऊपर तल्ले से नीचे उतारने के क्रम में उसकी मौत हो गई। उसे मृत घोषित कर दिया गया। एंबुलेंस के साथ आये डॉक्टर ने बताया कि सिलेंडर में ऑक्सीजन नहीं है। ऑक्सीजन नहीं होने के कारण मरीज का दम घुट गया। इसके बाद परिजनों ने हो-हल्ला भी किया। महज 12 घंटे के लिए 42,000 बिल लिया गया। इसमें 40,000 रुपये सुविधा और इलाज एवं 2000 रुपये रजिस्ट्रेशन के लिए लिया गया।
इस बारे में जसलोक हॉस्पिटल के संचालक डॉ जीतेंद्र सिन्हा ने कहा कि मरीज की स्थिति गंभीर थी। उसका ऑक्सीजन लेवल 50 से 52 फीसदी था। फेफड़ा 70 फीसदी से अधिक संक्रमित हो चुका था। वे पहले से किसी अस्पताल में इलाज करा रहे थे। उन्होंने कहा कि अस्पताल में सभी तरह की सुविधाएं मौजूद है। मरीज को आईसीयू में ही रखा गया था। ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए पाइप लगाई गई है। मरीज को वार्ड से नीचे लाने के लिए छोटा ऑक्सीजन सिलेंडर दिया गया था। मरीज की स्थिति को देखते हुए परिजनों को सलाह दी गई थी कि उन्हें अन्य अस्पताल में नहीं ले जाएं। इसके बाद भी वे मरीज को ले जा रहे थे। फिर अस्पताल के बाहर मरीज की मौत हो गई। उन्होंने कहा कि मानवता के नाते उन्होंने डेथ सर्टिकिकेट तक इश्यू किया।