खट्टी इमली से ग्रामीण महिलाओं के जीवन में घुल रही आजीविका की मिठास

झारखंड
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  • राज्य में इमली उत्पादन और प्रसंस्करण से जुड़कर बेहतर आमदनी कर रहीं ग्रामीण महिलाएं
  • जंगल से प्राप्त वनोपज से मामूली लागत से हो रही अच्छी आय

रांची। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के निर्देश पर झारखंड में उपलब्ध वनोपजों के जरिए सुदूर गांव में रहने वाले लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी का प्रयास रंग ला रहा है। राज्य के वन प्रदेशों में इमली के पेड़ों की अधिकता अब रोजगार का जरिया बन रहा है। खूंटी के शिलदा गांव की सुशीला मुंडा रौशनी इमली संग्रहण का कार्य कर खुशहाल है। पिछले वर्ष एक टन इमली के संग्रहण से सुशीला को 40 हजार रुपये की आमदनी हुई। सुशीला कहती हैं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि जंगलों में मुफ्त में उपलब्ध इमली से इतनी कमाई हो सकती है।

सिमडेगा के ठेठईटांगर स्थित केसरा गांव की लोलेन समद इमली संग्रहण एवं प्रसंस्करण का काम कर रही हैं। लोलेन समद के पास इमली के सात पेड़ है, जिससे हर साल उन्हें लगभग तीन टन इमली की उपज प्राप्त होती है। लोलेन को इमली उत्पादन के जरिये साल भर में एक लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है। इससे वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने में समर्थ हो पा रही हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि राज्य की ग्रामीण महिलाएं इमली की खटास से अपने जीवन में आजीविका की मिठास घोल रही हैं।

सशक्तिकरण परियोजना बनी सहायक

ग्रामीण विकास विभाग के तहत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी अंतर्गत महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना ग्रामीण महिलाओं के लिए इमली संग्रहण एवं प्रसंस्करण का कार्य कर अच्छी आमदनी उपलब्ध कराने में सहायक बन रहा है। इमली के संग्रहण के ज़रिये महिलाएं मामूली लागत से अच्छा मुनाफा प्राप्त कर रही हैं। वर्तमान में राज्य के पांच जिलों सिमडेगा, रांची, गुमला, पश्चिमी सिंहभूम और खूंटी में महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के अंतर्गत 14,731 किसान इमली उत्पादन एवं प्रसंस्करण के कार्य से जुड़े हैं। महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के द्वारा किसानो को प्रशिक्षण और आधुनिक उपकरणों के जरिए प्रसंस्करण का प्रशिक्षण दिया गया है। पिछले वर्ष राज्य की 11 हजार महिला किसानों द्वारा 112 मीट्रिक टन इमली का संग्रहण कर तकरीबन 39 लाख से ज्यादा का व्यापार किया गया। वर्तमान में 14,731 महिला किसानों द्वारा 309 मीट्रिक टन इमली का संग्रहण कर उसका व्यापार करने का लक्ष्य रखा गया है, उसमे से अबतक 86 मीट्रिक टन इमली को संग्रहित कर प्रसंस्करित किया जा रहा है। आने वाले दिनों में इस पहल के जरिए और अच्छी कमाई होने की उम्मीद है।

इमली संग्रहण से सशक्त होती आजीविका

लोलेन बताती हैं, परियोजना के तहत उत्पादक समूह के माध्यम से इमली का संग्रहण और बिक्री का कार्य हो रहा है। इससे पहले हाट-बाजार में जाकर इमली बेचनी पड़ती थी। लागत बढ़ने से एवं सही कीमत नहीं मिलने से मुनाफा कम होता था। अब ऐसा नहीं है। अब फसल का सही दाम भी मिलता है और फसल को बेचने के लिए गांव से दूर भी नहीं जाना पड़ता। हम सिकैचर आदि आधुनिक उपकरण से फसल की कटाई करते हैं और वजन मशीन का भी उपयोग आसानी से कर लेते हैं। ग्रामीण सेवा केंद्र के माध्यम से हम इमली के बीज को निकालकर प्रसंस्करण कर इमली केक बना कर बेच रहे है, जिसकी बाज़ार में काफी मांग है।

पलाश ब्रांड के जरिए हो रही है इमली की बिक्री

महिला किसान परियोजना के अंतर्गत इमली उत्पादन से जुड़ी महिला किसान इमली प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से इमली केक बनाने का कार्य भी कर रही हैं। इन प्रसंस्करण इकाइयों में ग्रामीण महिलाएं इमली से बीज निकालने से लेकर पल्प तैयार कर इमली के केक बनाने का सारा काम आधुनिक मशीनों के जरिये कर रही हैं। प्रसंस्करण इकाइयों में काम करने वाली महिलाओं को दैनिक मानदेय भी प्राप्त होता है, जिससे उनकी अतिरिक्त कमाई भी हो जाती है। इमली के केक पलाश ब्रांड के तहत बाजार में उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे महिला किसानों की अच्छी कमाई हो रही है। ग्रामीण सेवा केंद्र के जरिए प्राकृतिक रूप से राज्य में उपलब्ध इमली का प्रसंस्करण कर पलाश ब्रांड के तहत राज्य के विभिन्न पलाश मार्ट एवं सेल काउंटर पर बिक्री की जा रही है। पलाश ब्रांड के ज़रिये झारखण्ड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की महिला उद्यमियों द्वारा निर्मित वनोपज उत्पादों को एक नयी पहचान और बाज़ार में लोकप्रियता प्राप्त हो रही है। राज्य के विभिन्न स्थानों पर 11 ग्रामीण सेवा केंद्र के जरिए समुदाय आधारित इमली संग्रहण एवं प्रसंस्करण का कार्य किया जा रहा है। इन ग्रामीण सेवा केंद्रों का संचालन ग्रामीण महिलाओं के संगठन के द्वारा किया जाता है। वहीं पलाश ब्रांड के तहत अच्छी पैकेजिंग एवं मार्केटिंग कर इमली की कीमत भी अच्छी मिल रही है।