कोरोनाकाल में गृह जिला में छात्रों ने पूरा किया रावे पाठ्यक्रम

झारखंड शिक्षा
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  • तीन नये कृषि कॉलेज के 134 छात्र-छात्राओं ने पहली बार पूरा किया कार्यक्रम
  • शिक्षकों ने ऑनलाइन मोड में पूरी की रावे पाठ्यक्रम की अंतर्वीक्षा
  • छात्रों ने शिक्षकों से ग्रामीण कृषि कार्यानुभवों साझा किया

रांची। पूरे देश में लागु एकसमान कृषि शिक्षा मॉडल के अधीन राज्य में पहली बार कृषि स्नातक पाठ्यक्रम में अध्ययनरत चार कॉलेज के 204 छात्र हूनर विकास के लिए स्टूडेंट रेडी प्रोग्राम में भाग लिया। बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह बताते है कि यह छात्रों के कौशल उन्नयन की दिशा में एक पहल है। इसका उद्देश्य कृषि स्नातक छात्रों को शैक्षणिक अध्ययन के दौरान हुनरमंद बनाते हुए व्यावहारिक अनुभव और रोजगार के अनुकूल प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। तीन वर्ष के कक्षा पाठ्यक्रम के बाद चौथे वर्ष छात्रों को फील्ड में व्यावहारिक ज्ञान हासिल करना होता है। कोरोनाकाल के बावजूद बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के चार कृषि कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने 7वें सेमेस्टर में इस प्रोग्राम के अधीन रूरल एग्रीकल्चरल वर्क एक्सपीरियंस (रावे) पाठ्यक्रम पूरा करने में सफल रहे है। 24 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों का यह अनुभव छात्रों के बीच उद्यमिता विकास को बल और राज्य के कृषि विकास को गति देने में मददगार साबित होगी।

लॉकडाउन की वजह से छात्रों को निकटतम गांवों में रावे कार्यक्रम को पूरा करने का निर्देश दिया गया था। पहलीबार कृषि स्नातक छात्रों राज्य के सभी जिलों के गांवों में किसानों से सीधा संपर्क किया। गांवों की परंपरागत एवं देशज खेती तकनीक, कृषि की स्थिति एवं संसाधन, सरकारी योजना, अन्य कृषि उद्यम, कृषि कार्य में परेशानी एवं कठिनाईयों को जाना। जिले में स्थित स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से अनुभवों को साझा किया। इस सर्वे का व्यक्तिगत विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) छात्रों ने संबंधित कॉलेज में जमा कर दी है। छात्रों ने अपनी रिपोर्ट में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि सबंधी स्थिति पर अनेकों जानकारी एवं अनुभवों का उल्लेख किया है।

पाठ्यक्रम समन्यवयक डॉ निभा बाड़ा के मार्गदर्शन में कृषि संकाय के शिक्षकों ने पांच दिनों तक छात्रों के डीपीआर का मूल्यांकन किया। ऑनलाइन इंटरव्यू लिया। इस कार्य में डॉ एमके वर्णवाल, डॉ विनय कुमार, डॉ बीके झा, डॉ आशा सिन्हा, डॉ पूनम होरो, डॉ इरफान अंसारी, डॉ नैयर अली, डॉ नेहा पांडे, अभिलाषा दीपा मिंज, डॉ एसके सिंह, डॉ सर्वेश कुमार व डॉ नीरज कुमार ने सहयोग दिया। कोविड -19 की वजह आयोजित ऑनलाइन इंटरव्यू में छात्रों ने गांवों के अनुभवों को शिक्षकों के समक्ष रखा।

छात्रों ने सर्वे रिपोर्ट में शहरों से सटे गांवों के कृषि परिदृश्य में बदलाव को काफी सकारात्मक बताया है। किसान उन्नत नस्ल, कीट एवं रोग प्रबंधन से अवगत है। कुछ किसान एक वर्ष में गरमा, खरीफ एवं रबी मौसम की खेती से जुड़े है। उन्नत खेती तकनीकों को अपना रहे है। फसल उत्पादन के साथ रबी फसल का रकबा बढा है। व्यावसायिक फूलों की खेती भी किसान कर रहे है। बेमौसमी सब्जियों की खेती भी बड़े पैमाने पर हो रही है। सब्जी की खेती में असंतुलित मात्रा एवं अंधाधुध उर्वरकों एवं रसायनों के प्रयोग से टिकाऊ खेती प्रभावित हो रही है। किसानों की आमदनी भी बढ़ी है। इसके बावजूद शहरी आबादी की मांग एवं रोजगार सृजन की दिशा में लाभकारी कृषि तकनीकी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रभावी एवं ठोस प्रयासों से बेहतर परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में सायल हेल्थ मैनेजमेंट, ड्रीप इरीगेशन, प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन तथा नवाचार की दिशा में काफी संभावनाएं मौजूद है।

प्रदेश के सूदूरवर्ती गाँवों में कृषि क्षेत्र में विशेष फोकस के साथ अनेकों संभावनाओं को छात्रों ने इंगित किया है। कृषि विभाग, कृषि विज्ञान केन्द्रों, क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्रों तथा कृषि गतिविधि से जुड़े हितकारकों के कृषि तकनीकी प्रसार की पहुंच गांव–गांव तक पहुंचाने के प्रयास जिला एवं प्रखंड स्तर पर हुए है। परंतु किसानों द्वारा इसे अपनाने की प्रतिशत कम ही है। किसान जानकारी रहने पर भी उन्नत खेती में लागत अधिक होने के कारण तथा धन उपलब्ध न होने के कारण उन्नत बीज खरीद, उर्वरक खरीद व कीटनाशी दवा पर खर्च करने में असमर्थ है। राज्य के सूदूरवर्ती गाँवों में सीमित मात्रा में सब्जी की खेती की जाती है। इसीप्रकार पशु धन की उन्नत किस्म तथा रख-रखाव में भी कमी है। व्यावसायिक एवं लाभकारी खेती के लाभ से किसान नहीं उठा पा रहे है।

छात्रों के मुताबिक प्रदेश के किसान मुख्यतया धान की खेती पर निर्भर है। प्रदेश के रांची, हजारीबाग, रामगढ़, लोहरदगा आदि कुछ जिलों में बहुतायत हाइब्रिड धान किस्मों की खेती की जाती है। सिमडेगा एवं पाकुड़ जिले को छोड़कर अधिकांश जिलों में हाइब्रिड एवं स्थानीय दोनों किस्मों के धान की खेती की जाती है। सिमडेगा एवं पाकुड़ जिले में रासायनिक उर्वरक प्रयोग के बिना स्थानीय धान किस्मों की खेती प्रचलित है। दोनों जिलों की भूमि की उर्वरा शक्ति काफी कम है। किसान कम्पोस्ट खाद के प्रयोग मात्र से खेती करते है।

डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव ने बताया कि स्टूडेंट्स रेडी प्रोग्राम में रांची एग्रीकल्चर कॉलेज से 70, एग्रीकल्चर कॉलेज गढ़वा के 47, एग्रीकल्चर कॉलेज गोड्डा के 45 एवं एग्रीकल्चर कॉलेज देवघर के 42 सहित 204 छात्रों ने भाग लिया। इनमें 71 छात्र एवं 133 छात्राएं शामिल थे। छात्रों ने शिक्षकों के बिना गांवों में सर्वे कार्य किया। किसानों से आधुनिक कृषि तकनीकी ज्ञान को साझा किया।

छात्रों ने कृषि उत्पादन ईकाइयों में बायर, इफको, कृभको, मेधा डेयरी, जेएमएमटी, आईआईएनआरजी एवं मास में औद्योगिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन, प्रोडक्शन, मार्केटिंग, कार्य का माहौल एवं दायित्व के बारे में जाना। इंटरव्यू में पाया गया कि कोविड -19 की वजह से छात्रों के ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव में कमी नहीं देखने को मिली। 8वें सेमेस्टर में स्टूडेंट्स रेडी प्रोग्राम के अधीन छात्रों को जल्द ही एक्सपीरियंस लर्निंग प्रोग्राम से जोड़कर हैंड्स ओंन एक्सपीरियंस, एंड टू एंड, प्रोजेक्ट डेवलपमेंट माध्यम से उद्यमिता के गुर सिखाये जायेंगे।